Sunday, 31 March 2019

पंचतंत्र की कहानी- बड़े नाम का चमत्कार (Panchtantra Story- Bade Naam Ke Chamatkar)


Panchtantra Story
बहुत साल पहले एक जंगल में हाथियों का झुंड रहता था. उस झुंड के सरदार का नाम चतुर्दंत था, दो बहुत विशाल, पराक्रमी, गंभीर और समझदार था. सब उसके संरक्षण में सुखी थे. वह सबकी समस्याएं सुनता और उनका हल निकालता था. उसकी नज़र में छोटे-बड़े सब बराबर थे, वो सबका ख़्याल रखता था. एक बार इलाके में भयंकर सूखा पड़ा. कई सालों से बारिश नहीं होने के कारण सारे नदी-तालाब सूख गए थे. पेड़-पौधे भी मुरझा गए थे, ज़मीन फट गई, चारों और हाहाकार मच गया. हर कोई बूंद-बूंद के लिए तरसने लगा. हाथियों ने अपने सरदार से कहा, “सरदार, कोई उपाय सोचिए. वरना हम सब प्यासे मर जाएंगे. हमारे बच्चे तड़प रहे हैं.”
हाथियों का सरदार पहले से ही सारी बातें जानता था, मगर उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि इस समस्या का क्या समाधान निकाला जाए. सोचते-सोचते उसे बचपन की एक बात याद आई और सरदार चतुर्दंत ने कहा, “मुझे ऐसा याद आता हैं कि मेरे दादाजी कहते थे, यहां से पूर्व दिशा में एक तालाब है, जिसका पानी कभी नहीं सूखता. हमें वहां चलना चाहिए.” सभी को आशा की किरण नज़र आई.
हाथियों का झुंड चतुर्दंत द्वारा बताई गई दिशा की ओर चल पड़ा. बिना पानी के दिन की गर्मी में सफ़र करना कठिन था, अतः हाथी रात को सफ़र करते. पांच रातों के बाद वे उस तालाब तक पहुंच गए. सचमुच तालाब पानी से भरा था. सारे हाथियों ने खूब पानी पिया और जी भरकर तालाब में डुबकियां लगाई.
उसी इलाके में खरगोशों की भी घनी आबादी थी. हाथियों के आ जाने से उनकी शामत आ गई. ढेर सारे खरगोश हाथियों के पैरों-तले दब गए. उनके बिल भी हाथियों ने रौंद दिए. खरोगोशों के बीच हाहाकार मच गया. ज़िंदा बचे हुए खरगोशों ने एक सभा बुलाई. एक खरगोश बोला, “हमें यहां से भागना चाहिए.”
एक तेज़ स्वभाव वाला खरगोश भागने के हक़ में नहीं था. उसने कहा, “हमें अक्ल से काम लेना चाहिए. हाथी अंधविश्वासी होते हैं. हम उन्हें कहेंगे कि हम चंद्रवंशी हैं. तुम लोगों ने जो खरोगोशों को मारा है इससे देव चंद्रमा नाराज़ हैं. यदि तुम लोग यहां से नहीं गए तो चंद्रदेव तुम्हारा विनाश कर देंगे.”
एक अन्य खरगोश ने उसका समर्थन किया, “चतुर ठीक कहता है. उसकी बात हमें माननी चाहिए. लंबकर्ण खरगोश को हम अपना दूत बनाकर चतुर्दंत के पास भेंजेगे.” इस प्रस्ताव पर सब सहमत हो गए. लंबकर्ण एक बहुत चतुर खरगोश था. सारे खरगोश समाज में उसकी चतुराई की धाक थी. बातें बनाना भी उसे खूब आता था. बात से बात निकालते जाने में उसका जवाब नहीं था. जब खरगोशों ने उसे दूत बनकर जाने के लिए कहा, तो वह तुरंत तैयार हो गया. खरगोशों पर आए संकट को दूर करके उसे ख़ुशी ही होगी. लंबकर्ण खरगोश चतुर्दंत के पास पहुंचा और दूर से ही एक चट्टान पर चढ़कर बोला, “गजनायक चतुर्दंत, मैं लंबकर्ण चंद्रमा का दूत उनका संदेश लेकर आया हूं. चंद्रमा हमारे स्वामी हैं.”
चतुर्दंत ने पूछा, “भई, क्या संदेश लाए हो तुम?”
Panchtantra Story
लंबकर्ण बोला, “तुमने खरगोश समाज को बहुत हानि पहुंचाई है. चन्द्रदेव तुमसे बहुत नाराज़ हैं. इससे पहले कि वह तुम्हें श्राप दे दें, तुम यहां से अपना झुंड लेकर चले जाओ.”
चतुर्दंत को विश्वास न हुआ. उसने कहा, “चंद्रदेव कहां है? मैं खुद उनके दर्शन करना चाहता हूं.”
लंबकर्ण बोला, “उचित है. चंद्रदेव असंख्य मृत खरगोशों को श्रद्धांजलि देने स्वयं तालाब में पधारकर बैठे हैं, आईए, उनसे मिल लीजिए और ख़ुद ही देख लीजिए कि वे कितने ग़ुस्से में हैं.” चालाक लंबकर्ण चतुर्दंत को रात में तालाब पर ले आया. वो पूर्णिमा की रात थी. तालाब में चंद्रमा की परछाई दिख रही थी. इसे देखकर चतुर्दंत घबरा गया चालाक खरगोश हाथी की घबराहट ताड़ गया और विश्वास के साथ बोला, “गजनायक, ज़रा नज़दीक से चंद्रदेव का साक्षात्कार करें, तो आपको पता लगेगा कि आपके झुंड के इधर आने से हम खरगोशों पर क्या बीती है. अपने भक्तों का दुख देखकर हमारे चंद्रदेवजी के दिल पर क्या गुज़र रही ह 
लंबकर्ण की बातों का गजराज पर जादू-सा असर हुआ. चतुर्दंत डरते-डरते पानी के पास गया और अपने सूंड से चद्रंमा के प्रतिबिम्ब (परछाई) की जांच करने लगा. सूंड पानी के निकट पहुंचने पर सूंड से निकली हवा से पानी में हलचल हुई और चद्रंमा का प्रतिबिम्ब कई हिस्सों में बंट गया और विकृत हो गया. यह देखते ही चतुर्दंत के होश उड गए. वह हड़बड़ाकर कई क़दम पीछे हट गया. लंबकर्ण तो इसी बात की ताक में था. वह चीखा, “देखा, आपको देखते ही चंद्रदेव कितने रुष्ट हो गए! वह क्रोध से कांप रहे हैं और ग़ुुस्से से फट रहे हैं. आप अपनी खैर चाहते हैं तो अपने झुंड के साथ यहां से तुरंत चले जाएं, वरना चंद्रदेव पता नहीं क्या श्राप दे दें.”
चतुर्दंत तुरंत अपने झुंड के पास लौट गया और सबको सलाह दी कि उनको यहां से तुरंत चले जाना चाहिए. अपने सरदार के आदेश को मानकर हाथियों का झुंड वापस लौट गया. खरगोशों में ख़ुशी की लहर दौड़ गई. हाथियों के जाने के कुछ ही दिन बाद आकाश में बादल आए और जमकर बारिश हुई. इससे पानी की समस्या हल हो गई और हाथियों को फिर कभी उस ओर आने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी.
सीख- बुद्धिमानी से काम लेकर अपने से ताकतवर दुश्मन को भी मात दी जा सकती 

Tuesday, 26 March 2019

दीवान की मृत्यु क्यूँ ? - बेताल पच्चीसी - बारहवीं कहानी|

Vikram Betal Twelfth Story About Death Of Minister 



किसी ज़माने में अंगदेश मे यशकेतु नाम का राजा था। उसके दीर्घदर्शी नाम का बड़ा ही चतुर दीवान था। राजा बड़ा विलासी था। राज्य का सारा बोझ दीवान पर डालकर वह भोग में पड़ गया। दीवान को बहुत दु:ख हुआ। उसने देखा कि राजा के साथ सब जगह उसकी निन्दा होती है। इसलिए वह तीरथ का बहाना करके चल पड़ा। चलते-चलते रास्ते में उसे एक शिव-मन्दिर मिला। उसी समय निछिदत्त नाम का एक सौदागर वहाँ आया और दीवान के पूछने पर उसने बताया कि वह सुवर्णद्वीप में व्यापार करने जा रहा है। दीवान भी उसके साथ हो लिया।

दोनों जहाज़ पर चढ़कर सुवर्णद्वीप पहुँचे और वहाँ व्यापार करके धन कमाकर लौटे। रास्ते में समुद्र में एक दीवान को एक कृल्पवृक्ष दिखाई दिया। उसकी मोटी-मोटी शाखाओं पर रत्नों से जुड़ा एक पलंग बिछा था। उस पर एक रूपवती कन्या बैठी वीणा बजा रही थी। थोड़ी देर बाद वह ग़ायब हो गयी। पेड़ भी नहीं रहा। दीवान बड़ा चकित हुआ।

दीवान ने अपने नगर में लौटकर सारा हाल कह सुनाया। इस बीच इतने दिनों तक राज्य को चला कर राजा सुधर गया था और उसने विलासिता छोड़ दी थी। दीवान की कहानी सुनकर राजा उस सुन्दरी को पाने के लिए बेचैन हो उठा और राज्य का सारा काम दीवान पर सौंपकर तपस्वी का भेष बनाकर वहीं पहुँचा। पहुँचने पर उसे वही कल्पवृक्ष और वीणा बजाती कन्या दिखाई दी। उसने राजा से पूछा, "तुम कौन हो?" राजा ने अपना परिचय दे दिया। कन्या बोली, "मैं राजा मृगांकसेन की कन्या हूँ। मृगांकवती मेरा नाम है। मेरे पिता मुझे छोड़कर न जाने कहाँ चले गये।"

राजा ने उसके साथ विवाह कर लिया। कन्या ने यह शर्त रखी कि वह हर महीने के शुक्लपक्ष और कृष्णपक्ष की चतुर्दशी और अष्टमी को कहीं जाया करेगी और राजा उसे रोकेगा नहीं। राजा ने यह शर्त मान ली।

इसके बाद कृष्णपक्ष की चतुर्दशी आयी तो राजा से पूछकर मृगांकवती वहाँ से चली। राजा भी चुपचाप पीछे-पीछे चल दिया। अचानक राजा ने देखा कि एक राक्षस निकला और उसने मृगांकवती को निगल लिया। राजा को बड़ा गुस्सा आया और उसने राक्षस का सिर काट डाला। मृगांकवती उसके पेट से जीवित निकल आयी।

राजा ने उससे पूछा कि यह क्या माजरा है तो उसने कहा, "महाराज, मेरे पिता मेरे बिना भोजन नहीं करते थे। मैं अष्टमी और चतुदर्शी के दिन शिव पूजा यहाँ करने आती थी। एक दिन पूजा में मुझे बहुत देर हो गयी। पिता को भूखा रहना पड़ा। देर से जब मैं घर लौटी तो उन्होंने गुस्से में मुझे शाप दे दिया कि अष्टमी और चतुर्दशी के दिन जब मैं पूजन के लिए आया करूँगी तो एक राक्षस मुझे निगल जाया करेगा और मैं उसका पेट चीरकर निकला करूँगी। जब मैंने उनसे शाप छुड़ाने के लिए बहुत अनुनय की तो वह बोले, "जब अंगदेश का राजा तेरा पति बनेगा और तुझे राक्षस से निगली जाते देखेगा तो वह राक्षस को मार देगा। तब तेरे शाप का अन्त होगा।"

इसके बाद राजा उसे लेकर नगर में आया। दीवान ने यह देखा तो उसका हृदय फट गया। और वह मर गया।

इतना कहकर बेताल ने पूछा, "हे राजन्! यह बताओ कि स्वामी की इतनी खुशी के समय दीवान का हृदय फट गया?"

राजा ने कहा, "इसलिए कि उसने सोचा कि राजा फिर स्त्री के चक्कर में पड़ गया और राज्य की दुर्दशा होगी।"

राजा का इतना कहना था कि बेताल फिर पेड़ पर जा लटका। राजा ने वहाँ जाकर फिर उसे साथ लिया तो रास्ते में बेताल ने यह कहानी सुनायी।

Sunday, 24 March 2019

पंचतंत्र की कहानी- मित्र की सलाह (Panchtantra Story- Friend’s Advice)

मित्र की सलाह


Panchtantra Story
एक धोबी का गधा था. वह दिन भर कपडों के गट्ठर इधर से उधर ढोने में लगा रहता. धोबी स्वयं कंजूस और निर्दयी था. अपने गधे के लिए चारे का प्रबंध भी नहीं करता था, बस रात को चरने के लिए खुला छोड़ देता. निकट में कोई चरागाह भी नहीं थी. शरीर से गधा बहुत कमज़ोर हो गया था.
एक रात उस गधे की मुलाकात एक गीदड़ से हुई.गीदड़ ने उससे पूछा “कहिए महाशय, आप इतने कमज़ोर क्यों हैं?”
गधे ने दुखी स्वर में बताया कि कैसे उसे दिन भर काम करना पड़ता है. खाने को कुछ नहीं दिया जाता. रात को अंधेरे में इधर-उधर मुंह मारना पड़ता है.
गीदड़ बोला, “तो समझो अब आपकी भुखमरी के दिन गए. यहां पास में ही एक बड़ा सब्ज़ियों का बाग है. वहां तरह-तरह की सब्ज़ियां उगी हुई हैं. खीरे, ककड़ियां, तोरई, गाजर, मूली, शलजम और बैंगन की बहार है. मैंने बाग तोड़कर एक जगह अंदर घुसने का गुप्त मार्ग बना रखा है. बस वहां से हर रात अंदर घुसकर छककर खाता हूं और सेहत बना रहा हू्ं. तुम भी मेरे साथ आया करो.” लार टपकाता गधा गीदड़ के साथ हो गया.
बाग में घुसकर गधे ने महीनों के बाद पहली बार भरपेट खाना खाया. दोनों रात भर बाग में ही रहे और पौ फटने से पहले गीदड़ जंगल की ओर चला गया और गधा अपने धोबी के पास आ गया.
उसके बाद वे रोज़ रात को एक जगह मिलते. बाग में घुसते और जी भरकर खाते. धीरे-धीरे गधे का शरीर भरने लगा. उसके बालों में चमक आने लगी और चाल में मस्ती आ गई. वह भुखमरी के दिन बिल्कुल भूल गया. एक रात खूब खाने के बाद गधे की तबीयत अच्छी तरह हरी हो गई. वह झूमने लगा और अपना मुंह ऊपर उठाकर कान फड़फड़ाने लगा. गीदड़ ने चिंतित होकर पूछा “मित्र, यह क्या कर रहे हो? तुम्हारी तबीयत तो ठीक हैं?”
गधा आंखें बंद करके मस्त स्वर में बोला, “मेरा दिल गाने का कर रहा है. अच्छा भोजन करने के बाद गाना चाहिए. सोच रहा हूं कि ढैंचू राग गाऊं.”
गीदड़ ने तुरंत चेतावनी दी, “न-न, ऐसा न करना गधे भाई. गाने-वाने का चक्कर मत चलाओ. यह मत भूलो कि हम दोनों यहां चोरी कर रहे हैं. मुसीबत को न्यौता मत दो.”
गधे ने टेढी नज़र से गीदड़ को देखा और बोला “गीदड़ भाई, तुम जंगली के जंगली रहे. संगीत के बारे में तुम क्या जानो?”
गीदड़ ने हाथ जोड़े, “मैं संगीत के बारे में कुछ नहीं जानता. केवल अपनी जान बचाना जानता हूंं. तुम अपना बेसुरा राग अलापने की ज़िद छोडो, उसी में हम दोनों की भलाई है.”
गधे ने गीदड़ की बात का बुरा मानकर हवा में दुलत्ती चलाई और शिकायत करने लगा, “तुमने मेरे राग को बेसुरा कहकर मेरी बेइज्जती की है. हम गधे शुद्ध शास्त्रीय लय में रेंकते हैं. वह मूर्खों की समझ में नहीं आ सकता.”
गीदड़ बोला, “गधे भाई, मैं मूर्ख जंगली सही, पर एक मित्र के नाते मेरी सलाह मानो. अपना मुंह मत खोलो. बाग के चौकीदार जाग जाएंगे.”
गधा हंसा “अरे मूर्ख गीदड़! मेरा राग सुनकर बाग के चौकीदार तो क्या, बाग का मालिक भी फूलों का हार लेकर आएगा और मेरे गले में डालेगा.”
गीदड़ ने चतुराई से काम लिया और हाथ जोड़कर बोला, “गधे भाई, मुझे अपनी ग़लती का एहसास हो गया हैं. तुम महान गायक हो. मैं मूर्ख गीदड़ भी तुम्हारे गले में डालने के लिए फूलों की माला लाना चाहता हू्ं. मेरे जाने के दस मिनट बाद ही तुम गाना शुरू करना ताकि मैं गायन समाप्त होने तक फूल मालाएं लेकर लौट सकूं.
गधे ने गर्व से सहमति में सिर हिलाया. गीदड़ वहां से सीधा जंगल की ओर भाग गया. गधे ने उसके जाने के कुछ समय बाद मस्त होकर रेंकना शुरू किया. उसके रेंकने की आवाज़ सुनते ही बाग के चौकीदार जाग गए और उसी ओर लट्ठ लेकर दौड़े जिधर से रेंकने की आवाज़ आ रही थी. वहां पहुंचते ही गधे को देखकर चौकीदार बोला यही है वह दुष्ट गधा, जो हमारा बाग चर रहा था.”
बस सारे चौकीदार डंडों के साथ गधे पर पिल पड़े. कुछ ही देर में गधा पिट-पिटकर अधमरा गिर पड़ा.
सीख- अपने शुभचिंतकों और हितैषियों की नेक सलाह न मानने का परिणाम बुरा होता है.

Tuesday, 19 March 2019

सबसे अधिक सुकुमार कौन? - बेताल पच्चीसी ग्यारहवीं कहानी!!

सबसे अधिक सुकुमार कौन? - बेताल पच्चीसी ग्यारहवीं कहानी!!


गौड़ देश में वर्धमान नाम का एक नगर था, जिसमें गुणशेखर नाम का राजा राज करता था। उसके अभयचन्द्र नाम का दीवान था। उस दीवान के समझाने से राजा ने अपने राज्य में शिव और विष्णु की पूजा, गोदान, भूदान, पिण्डदान आदि सब बन्द कर दिये। नगर में डोंडी पिटवा दी कि जो कोई ये काम करेगा, उसका सबकुछ छीनकर उसे नगर से निकाल दिया जायेगा।

एक दिन दीवान ने कहा, "महाराज, अगर कोई किसी को दु:ख पहुँचाता है और उसके प्राण लेता है तो पाप से उसका जन्म-मरण नहीं छूटता। वह बार-बार जन्म लेता और मरता है। इससे मनुष्य का जन्म पाकर धर्म बढ़ाना चाहिए। आदमी को हाथी से लेकर चींटी तक सबकी रक्षा करनी चाहिए। जो लोग दूसरों के दु:ख को नहीं समझते और उन्हें सताते हैं, उनकी इस पृथ्वी पर उम्र घटती जाती है और वे लूले-लँगड़े, काने, बौने होकर जन्म लेते हैं।"

राजा ने कहा "ठीक है।" अब दीवान जैसे कहता, राजा वैसे ही करता। दैवयोग से एक दिन राजा मर गया। उसकी जगह उसका बेटा धर्मराज गद्दी पर बैठा। एक दिन उसने किसी बात पर नाराज होकर दीवान को नगर से बाहर निकलवा दिया।

कुछ दिन बाद, एक बार वसन्त ऋतु में वह इन्दुलेखा, तारावली और मृगांकवती, इन तीनों रानियों को लेकर बाग़ में गया। वहाँ जब उसने इन्दुलेखा के बाल पकड़े तो उसके कान में लगा हुआ कमल उसकी जाँघ पर गिर गया। कमल के गिरते ही उसकी जाँघ में घाव हो गया और वह बेहोश हो गयी। बहुत इलाज हुआ, तब वह ठीक हुई। इसके बाद एक दिन की बात कि तारावली ऊपर खुले में सो रही थी। चांद निकला। जैसे ही उसकी चाँदनी तारावली के शरीर पर पड़ी, फफोले उठ आये। कई दिन के इलाज के बाद उसे आराम हुआ। इसके बाद एक दिन किसी के घर में मूसलों से धान कूटने की आवाज हुई। सुनते ही मृगांकवती के हाथों में छाले पड़ गये। इलाज हुआ, तब जाकर ठीक हुए।

इतनी कथा सुनाकर बेताल ने पूछा, "महाराज, बताइए, उन तीनों में सबसे ज्यादा कोमल कौन थी?"

राजा ने कहा, "मृगांकवती, क्योंकि पहली दो के घाव और छाले कमल और चाँदनी के छूने से हुए थे। तीसरी ने मूसल को छुआ भी नहीं और छाले पड़ गये। वही सबसे अधिक सुकुमार हुई।"

राजा के इतना कहते ही बेताल नौ-दो ग्यारह हो गया। राजा बेचारा फिर मसान में गया और जब वह उसे लेकर चला तो उसने एक और कहानी सुनायी।

Sunday, 17 March 2019

हिंदी पंचतंत्र की कहानी- ढोंगी सियार (Hindi Panchtantra Story- Fraud Jackal)

 ढोंगी सियार

Panchtantra Story
मिथिला के जंगलों में बहुत समय पहले एक सियार रहता था. वह बहुत आलसी था. पेट भरने के लिए खरगोश व चूहों का पीछा करना व उनका शिकार करना उसे बड़ा भारी काम लगता था. शिकार करने में मेहनत तो करनी ही पड़ती है. सियार का दिमाग़ शैतानी था. वह यही तिकड़म लगाता रहता कि कैसे ऐसी जुगत लगाई जाए कि बिना हाथ-पैर हिलाए भोजन मिलता रहे, बस खाया और सो गए. एक दिन इसी सोच में डूबा वह सियार एक झाड़ी में दुबका बैठा था.
बाहर चूहों की टोली उछल-कूद व भाग-दौड करने में लगी थी. उनमें एक मोटा-सा चूहा था, जिसे दूसरे चूहे “सरदार” कहकर बुला रहे थे और उसका आदेश मान रहे थे. सियार उन्हें देखता रहा. उसके मुंह से लार टपकती रही. फिर उसके दिमाग़ में एक तरकीब आई.
जब चूहे वहां से गए तो उसने दबे पांव उनका पीछा किया. कुछ ही दूरी पर चूहों के बिल थे. सियार वापस लौटा. दूसरे दिन प्रातः ही वह उन चूहों के बिल के पास जाकर एक टांग पर खड़ा हो गया. उसका मुंह उगते सूरज की ओर था. आंखें बंद थी.
चूहे बिलों से निकले तो सियार को इस अनोखी मुद्रा में खड़े देखकर हैरान रह गए. एक चूहे ने ज़रा सियार के निकट जाकर पूछा, “सियार मामा, तुम इस प्रकार एक टांग पर क्यों खड़े हो?”
सियार ने एक आंख खोलकर बोला, “मूर्ख, तूने मेरे बारे में नहीं सुना कभी? मैं चारों टांगें नीचे टिका दूंगा तो धरती मेरा बोझ नहीं संभाल पाएगी. यह डोल जाएगी. साथ ही तुम सब नष्ट हो जाओगे. तुम्हारे ही कल्याण के लिए मुझे एक टांग पर खड़े रहना पड़ता है.”
चूहों में खुसर-पुसर हुई. वे सियार के निकट आकर खड़े हो गए. चूहों के सरदार ने कहा, “हे महान सियार, हमें अपने बारे में कुछ बताइए.”
सियार ने ढोंग रचा. “मैंने सैकड़ों वर्ष हिमालय पर्वत पर एक टांग पर खड़े होकर तपस्या की है. मेरी तपस्या समाप्त होने पर सभी देवताओं ने मुझ पर फूलों की वर्षा की. भगवान ने प्रकट होकर कहा कि मेरे तप से मेरा भार इतना हो गया हैं कि मैं चारों पैर धरती पर रखूं तो धरती गिरती हुई ब्रह्मांड को फोड़कर दूसरी ओर निकल जाएगी. धरती मेरी कृपा पर ही टिकी रहेगी. तबसे मैं एक टांग पर ही खड़ा हूं. मैं नहीं चाहता कि मेरे कारण दूसरे जीवों को कष्ट हो.”
सारे चूहों का समूह महान तपस्वी सियार के सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो गया. एक चूहे ने पूछा, “तपस्वी मामा, आपने अपना मुंह सूरज की ओर क्यों कर रखा हैं?”
सियार ने उत्तर दिया, “सूर्य की पूजा के लिए.”
“और आपका मुंह क्यों खुला हैं?” दूसरे चूहे ने कहा.
“हवा खाने के लिए! मैं केवल हवा खाकर ज़िंदा रहता हूं. मुझे खाना खाने की ज़रूरत नहीं पड़ती. मेरे तप का बल हवा को ही पेट में भांति-भांति के पकवानों में बदल देता है.” सियार बोला.
उसकी इस बात को सुनकर चूहों पर ज़बर्दस्त प्रभाव पड़ा. अब सियार की ओर से उनका सारा भय जाता रहा. वे उसके और निकट आ गए. अपनी बात का असर चूहों पर होता देख मक्कार सियार दिल ही दिल में ख़ूब हंसा. अब चूहे महातपस्वी सियार के भक्त बन गए. सियार एक टांग पर खड़ा रहता और चूहे उसके चारों ओर बैठकर ढोलक, मंजीरे, खड़ताल और चिमटे लेकर उसके भजन गाते.
सियार सियारम् भजनम् भजनम.
भजन कीर्तन समाप्त होने के बाद चूहों की टोलियां भक्ति रस में डूबकर अपने बिलों में घुसने लगती तो सियार सबसे बाद के तीन-चार चूहों को दबोचकर खा जाता. फिर रात भर आराम करता, सोता और डकारें लेता.
सुबह होते ही फिर वह चूहों के बिलों के पास आकर एक टांग पर खड़ा हो जाता और अपना नाटक चालू रखता.
चूहों की संख्या कम होने लगी. चूहों के सरदार की नज़र से यह बात छिपी नहीं रही. एक दिन सरदार ने सियार से पूछ ही लिया, “हे महात्मा सियार, मेरी टोली के चूहे मुझे कम होते नज़र आ रहे हैं. ऐसा क्यों हो रहा है?”
सियार ने आर्शीवाद की मुद्रा में हाथ उठाया, “हे चतुर मूषक, यह तो होना ही था. जो सच्चे मन से मेरी भक्ति करेगा, वह सशरीर बैकुण्ठ को जाएगा. बहुत-से चूहे भक्ति का फल पा रहे हैं.”
चूहों के सरदार ने देखा कि सियार मोटा हो गया है. कहीं उसका पेट ही तो वह बैकुण्ठ लोक नहीं हैं, जहां चूहे जा रहे हैं?
चूहों के सरदार ने बाकी बचे चूहों को चेताया और स्वयं उसने दूसरे दिन सबसे बाद में बिल में घुसने का निश्‍चय किया. भजन समाप्त होने के बाद चूहे बिलों में घुसे. सियार ने सबसे अंत के चूहे को दबोचना चाहा.
चूहों का सरदार पहले ही चौकन्ना था. वह दांव मारकर सियार का पंजा बचा गया. असलियत का पता चलते ही वह उछलकर सियार की गर्दन पर चढ़ गया और उसने बाकी चूहों को हमला करने के लिए कहा. साथ ही उसने अपने दांत सियार की गर्दन में गड़ा दिए. बाकी चूहे भी सियार पर झपटे और सबने कुछ ही देर में महात्मा सियार को कंकाल सियार बना दिया. केवल उसकी हड्डियों का पंजर बचा रह गया.
सीख- ढोंग कुछ ही दिन चलता है, फिर ढोंगी को अपनी करनी का फल मिलता ही है.

Tuesday, 12 March 2019

सबसे अधिक त्यागी कौन?- बेताल पच्चीसी - दसवीं कहानी| Vikram Betal Stories In Hindi.

सबसे अधिक त्यागी कौन?- बेताल पच्चीसी - दसवीं कहानी| Vikram Betal Stories In Hindi.

Vikram Betal Hindi Stories-Tenth Story

मदनपुर नगर में वीरवर नाम का राजा राज करता था। उसके राज्य में एक वैश्य था, जिसका नाम हिरण्यदत्त था। उसके मदनसेना नाम की एक कन्या थी।

एक दिन मदनसेना अपनी सखियों के साथ बाग़ में गयी। वहाँ संयोग से सोमदत्त नामक सेठ का लड़का धर्मदत्त अपने मित्र के साथ आया हुआ था। वह मदनसेना को देखते ही उससे प्रेम करने लगा। घर लौटकर वह सारी रात उसके लिए बैचेन रहा। अगले दिन वह फिर बाग़ में गया। मदनसेना वहाँ अकेली बैठी थी। उसके पास जाकर उसने कहा, "तुम मुझसे प्यार नहीं करोगी तो मैं प्राण दे दूँगा।"

मदनसेना ने जवाब दिया, "आज से पाँचवे दिन मेरी शादी होनेवाली है। मैं तुम्हारी नहीं हो सकती।"

वह बोला, "मैं तुम्हारे बिना जीवित नहीं रह सकता।"

मदनसेना डर गयी। बोली, "अच्छी बात है। मेरा ब्याह हो जाने दो। मैं अपने पति के पास जाने से पहले तुमसे ज़रूर मिलूँगी।"

वचन देके मदनसेना डर गयी। उसका विवाह हो गया और वह जब अपने पति के पास गयी तो उदास होकर बोली, "आप मुझ पर विश्वास करें और मुझे अभय दान दें तो एक बात कहूँ।" पति ने विश्वास दिलाया तो उसने सारी बात कह सुनायी। सुनकर पति ने सोचा कि यह बिना जाये मानेगी तो है नहीं, रोकना बेकार है। उसने जाने की आज्ञा दे दी।

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मदनसेना अच्छे-अच्छे कपड़े और गहने पहन कर चली। रास्ते में उसे एक चोर मिला। उसने उसका आँचल पकड़ लिया। मदनसेना ने कहा, "तुम मुझे छोड़ दो। मेरे गहने लेना चाहते हो तो लो।"

चोर बोला, "मैं तो तुम्हें चाहता हूँ।"

मदनसेना ने उसे सारा हाल कहा, "पहले मैं वहां हो आऊँ, तब तुम्हारे पास आऊँगी।"

चोर ने उसे छोड़ दिया।

मदनसेना धर्मदत्त के पास पहुँची। उसे देखकर वह बड़ा खुश हुआ और उसने पूछा, "तुम अपने पति से बचकर कैसे आयी हो?"

मदनसेना ने सारी बात सच-सच कह दी। धर्मदत्त पर उसका बड़ा गहरा असर पड़ा। उसने उसे छोड़ दिया। फिर वह चोर के पास आयी। चोर सब कुछ जानकर ब़ड़ा प्रभावित हुआ और वह उसे घर पर छोड़ गया। इस प्रकार मदनसेना सबसे बचकर पति के पास आ गयी। पति ने सारा हाल कह सुना तो बहुत प्रसन्न हुआ और उसके साथ आनन्द से रहने लगा।

इतना कहकर बेताल बोला, "हे राजा! बताओ, पति, धर्मदत्त और चोर, इनमें से कौन अधिक त्यागी है?"

राजा ने कहा, "चोर। मदनसेना का पति तो उसे दूसरे आदमी पर रुझान होने से त्याग देता है। धर्मदत्त उसे इसलिए छोड़ता है कि उसका मन बदल गया था, फिर उसे यह डर भी रहा होगा कि कहीं उसका पति उसे राजा से कहकर दण्ड न दिलवा दे। लेकिन चोर का किसी को पता न था, फिर भी उसने उसे छोड़ दिया। इसलिए वह उन दोनों से अधिक त्यागी था।"

राजा का यह जवाब सुनकर बेताल फिर पेड़ पर जा लटका और राजा जब उसे लेकर चला तो उसने यह कथा सुनायी।

Sunday, 10 March 2019

पंचतंत्र की कहानी- बगुला भगत (Panchtantra Story- Greedy Crane)

 बगुला भगत 

kahani
एक वन प्रदेश में बहुत बड़ा तालाब था. वहां हर प्रकार के जीवों के लिए भोजन सामग्री उपलब्ध थी. इसलिए वहां कई प्रकार के जीव, पक्षी, मछलियां, कछुए और केकड़े आदि रहते थें. पास में ही बगुला रहता था, जिसे मेहनत करना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था. उसकी आंखें भी कुछ कमज़ोर थीं. मछलियां पकड़ने के लिए तो मेहनत करनी पड़ती हैं, जो उसे खलती थी. इसलिए आलस के मारे वह अक्सर भूखा ही रहता था. एक टांग पर खड़ा यही सोचता रहता कि क्या उपाय किया जाए कि बिना हाथ-पैर हिलाए रो़ज खाना मिल जाए. एक दिन उसे एक उपाय सूझा तो वह उसे आज़माने बैठ गया.
बगुला तालाब के किनारे खडा हो गया और आंसू बहाने लगा. एक केकडे ने उसे आंसू बहाते देखा तो वह उसके निकट आया और पूछने लगा “मामा, क्या बात है भोजन के लिए मछलियों का शिकार करने की बजाय खड़े होकर आंसू क्यों बहा रहे हो?”
बगुले ने ज़ोर की हिचकी ली और भर्राए गले से बोला “बेटे, बहुत कर लिया मछलियों का शिकार अब मैं यह पाप और नहीं करुंगा. मेरी आत्मा जाग उठी है, इसलिए मैं निकट आई मछलियों को भी नहीं पकड़ रहा हूं. तुम तो देख ही रहे हो.”
केकड़ा बोला “मामा, शिकार नहीं करोगे, कुछ खाओगे नहीं तो मर नहीं जाओगे?”
बगुले ने एक और हिचकी ली “ऐसे जीवन का नष्ट होना ही अच्छा है बेटे, वैसे भी हम सबको जल्दी मरना ही है. मुझे ज्ञात हुआ है कि शीघ्र ही यहां बारह वर्ष लंबा सूखा पड़ेगा.”
बगुले ने केकड़े को बताया कि यह बात उसे एक त्रिकालदर्शी महात्मा ने बताई है, जिसकी भविष्यवाणी कभी ग़लत नहीं होती. केकड़े ने जाकर सबको बताया कि कैसे बगुले ने बलिदान व भक्ति का मार्ग अपना लिया हैं और सूखा पड़ने वाला है.
उस तालाब के सारे जीव मछलियां, कछुए, केकड़े, बत्तख व सारस आदि दौड़े-दौड़े बगुले के पास आए और बोले “भगत मामा, अब तुम ही हमें कोई बचाव का रास्ता बताओ. अपनी अक्ल लड़ाओ तुम तो महाज्ञानी बन ही गए हो.”
बगुले ने कुछ सोचकर बताया कि यहां से कुछ दूरी पर एक जलाशय हैं जिसमें पहाड़ी झरना बहकर गिरता है. वह कभी नहीं सूखता. यदि जलाशय के सब जीव वहां चले जाएं तो बचाव हो सकता है. अब समस्या यह थी कि वहां तक जाया कैसे जाएं? बगुले भगत ने यह समस्या भी सुलझा दी “मैं तुम्हें एक-एक करके अपनी पीठ पर बिठाकर वहां तक पहुंचाऊंगा, क्योंकि अब मेरा सारा शेष जीवन दूसरों की सेवा करने में गुजरेगा.”
सभी जीवों ने गद्-गद् होकर ‘बगुला भगतजी की जय’ के नारे लगाए.
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अब बगुला भगत के पौ-बारह हो गई. वह रोज़ एक जीव को अपनी पीठ पर बिठाकर ले जाता और कुछ दूर ले जाकर एक चट्टान के पास जाकर उसे उस पर पटककर मार डालता और खा जाता. कभी मूड हुआ तो भगतजी दो फेरे भी लगाते और दो जीवों को चट कर जाते तालाब में जानवरों की संख्या घटने लगी. चट्टान के पास मरे जीवों की हड्डियों का ढेर बढ़ने लगा और भगतजी की सेहत बनने लगी. खा-खाकर वह खूब मोटे हो गए. मुख पर लाली आ गई और पंख चर्बी के तेज़ से चमकने लगे. उन्हें देखकर दूसरे जीव कहते “देखो, दूसरों की सेवा का फल और पुण्य भगतजी के शरीर को लग रहा है.”
बगुला भगत मन ही मन खूब हंसता. वह सोचता कि देखो दुनिया में कैसे-कैसे मूर्ख जीव भरे पडे हैं, जो सबका विश्वास कर लेते हैैं. ऐसे मूर्खों की दुनिया में थोड़ी चालाकी से काम लिया जाए तो मज़े ही मज़े है. बिना हाथ-पैर हिलाए खूब दावत उड़ाई जा सकती है. संसार से मूर्ख प्राणी कम करने का मौक़ा मिलता है बैठे-बिठाए पेट भरने का जुगाड हो जाए तो सोचने का बहुत समय मिल जाता है.
बहुत दिन यही क्रम चला. एक दिन केकड़े ने बगुले से कहा “मामा, तुमने इतने सारे जानवर यहां से वहां पहुंचा दिए, लेकिन मेरी बारी अभी तक नहीं आई.”
भगतजी बोले “बेटा, आज तेरा ही नंबर लगाते हैं, आजा मेरी पीठ पर बैठ जा.”
केकड़ा खुश होकर बगुले की पीठ पर बैठ गया. जब वह चट्टान के निकट पहुंचा तो वहां हड्डियों का पहाड़ देखकर केकड़े का माथा ठनका. वह हकलाया “यह हड्डियों का ढेर कैसा है? वह जलाशय कितनी दूर है, मामा?”
बगुला भगत ठां-ठां करके खूब हंसा और बोला “मूर्ख, वहां कोई जलाशय नहीं है. मैं एक-एक को पीठ पर बिठाकर यहां लाकर खाता रहता हूं. आज तू मरेगा.”
केकड़ा सारी बात समझ गया. वह सिहर उठा परंतु उसने हिम्मत नहीं हारी और तुरंत अपने पंजों को आगे बढ़ाकर दुष्ट बगुले की गर्दन दबा दी और तब तक दबाए रखी, जब तक उसके प्राण पखेरु उड़ नहीं गए.
फिर केकडा बगुले भगत का कटा सिर लेकर तालाब पर लौटा और सारे जीवों को सच्चाई बता दी कि कैसे दुष्ट बगुला भगत उन्हें धोखा देता रहा.
सीख- दूसरों की बातों पर आंखें मूंदकर विश्वास नहीं करना चाहिए और मुसीबत में धीरज व बुद्धिमानी से कार्य करना चाहिए.

Tuesday, 5 March 2019

सर्वश्रेष्ठ वर कौन - बेताल पच्चीसी - नवीं कहानी | [Hindi Stories]

सबसे योग्य वर कौन ? (First Among Equals-Vikram-Betal Hindi Story)

चम्मापुर नाम का एक नगर था, जिसमें चम्पकेश्वर नाम का राजा राज करता था। उसके सुलोचना नाम की रानी थी और त्रिभुवनसुन्दरी नाम की लड़की। राजकुमारी यथा नाम तथा गुण थी। जब वह बड़ी हुई तो उसका रूप और निखर गया। राजा और रानी को उसके विवाह की चिन्ता हुई। चारों ओर इसकी खबर फैल गयी। बहुत-से राजाओं ने अपनी-अपनी तस्वीरें बनवाकर भेंजी, पर राजकुमारी ने किसी को भी पसन्द न किया। राजा ने कहा, "बेटी, कहो तो स्वयम्वर करूँ?" लेकिन वह राजी नहीं हुई। आख़िर राजा ने तय किया कि वह उसका विवाह उस आदमी के साथ करेगा, जो रूप, बल और ज्ञान, इन तीनों में बढ़ा-चढ़ा होगा।

एक दिन राजा के पास चार देश के चार वर आये। एक ने कहा, "मैं एक कपड़ा बनाकर पाँच लाख में बेचता हूँ, एक लाख देवता को चढ़ाता हूँ, एक लाख अपने अंग लगाता हूँ, एक लाख स्त्री के लिए रखता हूँ और एक लाख से अपने खाने-पीने का ख़र्च चलाता हूँ। इस विद्या को और कोई नहीं जानता।"

दूसरा बोला, "मैं जल-थल के पशुओं की भाषा जानता हूँ।"

तीसरे ने कहा, "मैं इतना शास्त्र पढ़ा हूँ कि मेरा कोई मुकाबला नहीं कर सकता।"

चौथे ने कहा, "मैं शब्दवेधी तीर चलाना जानता हूँ।"

चारों की बातें सुनकर राजा सोच में पड़ गया। वे सुन्दरता में भी एक-से-एक बढ़कर थे। उसने राजकुमारी को बुलाकर उनके गुण और रूप का वर्णन किया, पर वह चुप रही।

इतना कहकर बेताल बोला, "राजन्, तुम बताओ कि राजकुमारी किसको मिलनी चाहिए?"

राजा बोला, "जो कपड़ा बनाकर बेचता है, वह शूद्र है। जो पशुओं की भाषा जानता है, वह ज्ञानी है। जो शास्त्र पढ़ा है, ब्राह्मण है; पर जो शब्दवेधी तीर चलाना जानता है, वह राजकुमारी का सजातीय है और उसके योग्य है। राजकुमारी उसी को मिलनी चाहिए।"

राजा के इतना कहते ही बेताल गायब हो गया। राजा बेचारा वापस लौटा और उसे लेकर चला तो उसने दसवीं कहानी सुनायी।

असली वर कौन? - बेताल पच्चीसी - पाँचवीं कहानी!! [Hindi Stories]


उज्जैन में महाबल नाम का एक राजा रहता था। उसके हरिदास नाम का एक दूत था जिसके महादेवी नाम की बड़ी सुन्दर कन्या थी। जब वह विवाह योग्य हुई तो हरिदास को बहुत चिन्ता होने लगी। इसी बीच राजा ने उसे एक दूसरे राजा के पास भेजा। कई दिन चलकर हरिदास वहाँ पहुँचा। राजा ने उसे बड़ी अच्छी तरह से रखा। एक दिन एक ब्राह्मण हरिदास के पास आया। बोला, “तुम अपनी लड़की मुझे दे दो।”

हरिदास ने कहाँ, “मैं अपनी लड़की उसे दूँगा, जिसमें सब गुण होंगे।”

ब्राह्मण ने कहा, “मेरे पास एक ऐसा रथ है, जिस पर बैठकर जहाँ चाहो, घड़ी-भर में पहुँच जाओगे।”
हरिदास बोला, “ठीक है। सबेरे उसे ले आना।”

अगले दिन दोनों रथ पर बैठकर उज्जैन आ पहुँचे। दैवयोग से उससे पहले हरिदास का लड़का अपनी बहन को किसी दूसरे को और हरिदास की स्त्री अपनी लड़की को किसी तीसरे को देने का वादा कर चुकी थी। इस तरह तीन वर इकट्ठे हो गये। हरिदास सोचने लगा कि कन्या एक है, वह तीन हैं। क्या करे! इसी बीच एक राक्षस आया और कन्या को उठाकर विंध्याचल पहाड़ पर ले गया। तीनों वरों में एक ज्ञानी था। हरिदास ने उससे पूछा तो उसने बता दिया कि एक राक्षस लड़की को उड़ा ले गया है और वह विंध्याचल पहाड़ पर है।

दूसरे ने कहा, “मेरे रथ पर बैठकर चलो। ज़रा सी देरी में वहाँ पहुँच जायेंगे।”

तीसरा बोला, “मैं शब्दवेधी तीर चलाना जानता हूँ। राक्षस को मार गिराऊँगा।”

वे सब रथ पर चढ़कर विंध्याचल पहुँचे और राक्षस को मारकर लड़की को बचा जाये।

इतना कहकर बेताल बोला “हे राजन्! बताओ, वह लड़की उन तीनों में से किसको मिलनी चाहिए?”

राजा ने कहा, “जिसने राक्षस को मारा, उसकों मिलनी चाहिए, क्योंकि असली वीरता तो उसी ने दिखाई। बाकी दो ने तो मदद की।”
राजा का इतना कहना था कि बेताल फिर पेड़ पर जा लटका और राजा फिर उसे लेकर आया तो रास्ते में बेताल ने छठी कहानी सुनायी।

Sunday, 3 March 2019

पंचतंत्र की कहानी- तीन मछलियां (Panchtantra Story- The Three Fishes)

 तीन मछलिया

Panchtantra Story
एक नदी के किनारे उसी नदी से जुड़ा एक बड़ा जलाशय था. जलाशय में पानी गहरा होता हैं, इसलिए उसमें काई तथा मछलियों का प्रिय भोजन जलीय सूक्ष्म पौधे उगते हैं. ऐसी जगह मछलियों को बहुत पसंद आती है. उस जलाशय में भी नदी से बहुत-सी मछलियां आकर रहती थी. अंडे देने के लिए तो सभी मछलियां उस जलाशय में आती थी. वह जलाशय लंबी घास व झाडियों से घिरा होने के कारण आसानी से नज़र नहीं आता था.
उसी में तीन मछलियों का झुंड रहता था. उनका स्वभाव बहुत अलग था. अन्ना मछली संकट आने के लक्षण मिलते ही संकट टालने का उपाय करने में विश्वास रखती थी. प्रत्यु मछली कहती थी कि संकट आने पर ही उससे बचने का यत्न करो. यद्दी मछली का सोचना था कि संकट को टालने या उससे बचने की बात बेकार है. करने कराने से कुछ नहीं होता, जो क़िस्मत में लिखा है, वह होकर रहेगा.
एक दिन शाम को मछुआरे नदी में मछलियां पकड़कर घर जा रहे थे. बहुत कम मछलियां उनके जालों में फंसी थी, जिससे उनके चेहरे उदास थे. तभी उन्हें झाड़ियों के ऊपर मछलीखोर पक्षियों का झुंड जाता दिखाई दिया. सबकी चोंच में मछलियां दबी थी. वे चौंक गए.
एक ने अनुमान लगाया, “दोस्तों! लगता है झाडियों के पीछे नदी से जुड़ा जलाशय हैं, जहां इतनी सारी मछलियां पल रही हैं.”
मछुआरे ख़ुश होकर झाड़ियों में से होकर जलाशय के तट पर आ निकले और ललचाई नज़रों से मछलियों को देखने लगे.
एक मछुआरा बोला, “अहा! इस जलाशय में तो मछलियां भरी पडी हैं. आज तक हमें इसका पता ही नहीं लगा.” “यहां हमें ढेर सारी मछलियां मिलेंगी.” दूसरा बोला.
तीसरे ने कहा, “आज तो शाम घिरने वाली है, कल सुबह ही आकर यहां जाल डालेंगे.”
इस प्रकार मछुआरे दूसरे दिन का कार्यक्रम तय करके चले गए. तीनों मछलियों ने मछुआरे की बात सुन ली थी.
अन्ना मछली ने कहा, “साथियों! तुमने मछुआरे की बात सुन ली. अब हमारा यहां रहना ख़तरे से ख़ाली नहीं है. ख़तरे की सूचना हमें मिल गई है. समय रहते अपनी जान बचाने का उपाय करना चाहिए. मैं तो अभी ही इस जलाशय को छोडकर नहर के रास्ते नदी में जा रही हूं, उसके बाद मछुआरे सुबह आएं, जाल फेंके, मेरी बला से. तब तक मैं तो बहुत दूर अटखेलियां कर रही होऊंगी.”
प्रत्यु मछली बोली, “तुम्हें जाना हैं तो जाओ, मैं तो नहीं आ रही. अभी ख़तरा आया कहां हैं. हमें इतना घबराने की ज़रूरत नहीं है. हो सकता है संकट आए ही न. उन मछुआरों का यहां आने का कार्यक्रम रद्द हो सकता है, हो सकता हैं रात को उनके जाल चूहे कुतर जाएं, हो सकता है उनकी बस्ती में आग लग जाए. भूचाल आकर उनके गांव को नष्ट कर सकता है या रात को मूसलाधार बारिश आ सकती हैं और बाढ में उनका गांव बह सकता है, इसलिए उनका आना निश्चित नहीं है. जब वह आएंगे, तब की तब सोचेंगे. हो सकता है मैं उनके जाल में ही न फंसूं.”
यद्दी ने अपनी भाग्यवादी बात कही, “भागने से कुछ नहीं होने वाला. मछुआरों को आना है तो वह आएंगे. हमें जाल में फंसना है तो हम फंसेंगे. क़िस्मत में मरना ही लिखा है तो क्या किया जा सकता है?”
इस प्रकार अन्ना तो उसी समय वहां से चली गई. प्रत्यु और यद्दी जलाशय में ही रहीं. सुबह हुई तो मछुआरे अपना जाल लेकर आए और लगे जलाशय में जाल फेंकने और मछलियां पकड़ने. प्रत्यु ने संकट को आए देखा तो लगी जान बचाने के उपाय सोचने. उसका दिमाग़ तेज़ी से काम करने लगा. आसपास छिपने के लिए कोई जगह नहीं थी. तभी उसे याद आया कि उस जलाशय में काफ़ी दिनों से एक मरे हुए ऊदबिलाव की लाश तैर रही है. वह उसके बचाव के काम आ सकती है. जल्दी ही उसे वह लाश मिल गई. लाश सड़ने लगी थी. प्रत्यु लाश के पेट में घुस गई और सड़ती लाश की सड़ांध अपने ऊपर लपेटकर बाहर निकली. कुछ ही देर में मछुआरे के जाल में प्रत्यु फंस गई. मछुआरे ने अपना जाल खींचा और मछलियों को किनारे पर जाल से उलट दिया. बाकी मछलियां तो तड़पने लगीं, लेकिन प्रत्यु दम साधकर मरी हुई मछली की तरह पड़ी रही. मछुआरे को सडांध का भभका लगा तो मछलियों को देखने लगा. उसने बेसुध पड़ी प्रत्यु को उठाया और सूंघा “आक! यह तो कई दिनों की मरी मछली है. सड़ चुकी है.” ऐसे बडबडाकर बुरा-सा मुंह बनाकर उस मछुआरे ने प्रत्यु को जलाशय में फेंक दिया.
प्रत्यु अपनी बुद्धि का प्रयोग कर संकट से बच निकलने में सफल हो गई थी. पानी में गिरते ही उसने गोता लगाया और सुरक्षित गहराई में पहुंचकर जान की खैर मनाई.
यद्दी भी दूसरे मछुआरे के जाल में फंस गई थी और एक टोकरे में डाल दी गई थी. भाग्य के भरोसे बैठी रहने वाली यद्दी ने उसी टोकरी में अन्य मछलियों की तरह तड़प-तड़पकर प्राण त्याग दिए.
सीख- भाग्य के भरोसे हाथ पर हाथ धरकर बैठे रहने वाले का विनाश निश्‍चित है.