Sunday, 7 April 2019

पंचतंत्र की कहानी- मूर्ख बातूनी कछुआ (Panchtantra Story- Two Swan & Turtle)

 मूर्ख बातूनी कछुआ

Panchtantra Story
एक तालाब में एक कछुआ रहता था. उसी तालाब में दो हंस भी तैरने आया करते थे. हंस बहुत हंसमुख और मिलनसार स्वभाव के थे. इसलिए कछुए और हंस में दोस्ती होते देर नहीं लगी. कुछ ही दिनों में वे बहुत अच्छे दोस्त बन गएं. हंसों को कछुए का धीरे-धीरे चलना और उसका भोलापन बहुत अच्छा लगता था. हंस बहुत बुद्धिमान भी थे. वे कछुए को अनोखी बातें बताते. ॠषि-मुनियों की कहानियां सुनाते. हंस दूर-दूर तक घूमकर आते थे, इसलिए उन्हें सारी दुनिया की बहुत-सी बातें पता होती थी. दूसरी जगहों की अनोखी बातें वो कछुए को बताते. कछुआ मंत्रमुग्ध होकर उनकी बातें सुनता. बाकी तो सब ठीक था, पर कछुए को बीच में टोका-टाकी करने की बहुत आदत थी. अपने सज्जन स्वभाव के कारण हंस उसकी इस आदत का बुरा नहीं मानते थे. गुज़रते व़क्त के साथ उन तीनों की दोस्ती और गहरी होती गई.
एक बार भीषण सूखा पड़ा. बरसात के मौसम में भी एक बूंद पानी नहीं बरसा. इससे तालाब का पानी सूखने लगा. प्राणी मरने लगे, मछलियां तो तड़प-तड़पकर मर गईं. तालाब का पानी और तेज़ी से सूखने लगा. एक समय ऐसा भी आया कि तालाब में पानी की बजाय स़िर्फ कीचड़ रह गया. कछुआ बहुत संकट में पड़ गया. उसके लिए जीवन-मरण का प्रश्न खड़ा हो गया. वहीं पड़ा रहता तो कछुए का अंत निश्‍चित था. हंस अपने मित्र पर आए संकट को दूर करने का उपाय सोचने लगे. वे अपने मित्र कछुए को ढाढ़स बंधाने का प्रयास करते और हिम्म्त न हारने की सलाह देते. हंस केवल झूठा दिलासा नहीं दे रहे थे. वे दूर-दूर तक उड़कर समस्या का हल ढूढ़ते. एक दिन लौटकर हंसों ने कहा, “मित्र, यहां से पचास कोस दूर एक झील है. उसमें काफ़ी पानी हैं तुम वहां मज़े से रहोगे.” कछुआ रोनी आवाज़ में बोला, “पचास कोस? इतनी दूर जाने में मुझे महीनों लग जाएंगे. तब तक तो मैं मर जाऊंगा.” कछुए की बात भी ठीक थी. हंसों ने अक्ल लगाई और एक तरीक़ा सोच निकाला
Panchtantra Story
वे एक लकड़ी उठाकर लाए और बोले, “मित्र, हम दोनों अपनी चोंच में इस लकडी के सिरे पकड़कर एक साथ उड़ेंगे. तुम इस लकड़ी को बीच में से मुंह से थामे रहना. इस प्रकार हम उस झील तक तुम्हें पहुंचा देंगे. उसके बाद तुम्हें कोई चिन्ता नहीं रहेगी.”
उन्होंने चेतावनी दी “पर याद रखना, उड़ान के दौरान अपना मुंह न खोलना. वरना गिर पड़ोगे.”
कछुए ने हामी में सिर हिलाया. बस, लकड़ी पकड़कर हंस उड़ चले. उनके बीच में लकड़ी मुंह में दाबे कछुआ. वे एक कस्बे के ऊपर से उड़ रहे थे कि नीचे खड़े लोगों ने आकाश में अदभुत नज़ारा देखा. सब एक-दूसरे को ऊपर आकाश का दृश्य दिखाने लगे. लोग दौड़-दौड़कर अपने छज्जों पर निकल आए. कुछ अपने मकानों की छतों की ओर दौड़े. बच्चे, बूढ़े, औरतें व जवान सब ऊपर देखने लगे. ख़ूब शोर मचा. कछुए की नज़र नीचे उन लोगों पर पड़ी.
उसे आश्‍चर्य हुआ कि उन्हें इतने लोग देख रहे हैं. वह अपने मित्रों की चेतावनी भूल गया और चिल्लाया “देखो, कितने लोग हमें देख रहे है!” मुंह खोलते ही वह नीचे गिर पड़ा. नीचे उसकी हड्डी-पसली का भी पता नहीं लगा.

सीख- बेमौके मुंह खोलना बहुत महंगा पड़ता है.

Tuesday, 2 April 2019

अपराधी कौन? - बेताल पच्चीसी - तेरहवीं कहानी|

अपराधी कौन? - बेताल पच्चीसी - तेरहवीं कहानी|

बनारस में देवस्वामी नाम का एक ब्राह्मण रहता था। उसके हरिदास नाम का पुत्र था। हरिदास की बड़ी सुन्दर पत्नी थी। नाम था लावण्यवती। एक दिन वे महल के ऊपर छत पर सो रहे थे कि आधी रात के समय एक गंधर्व-कुमार आकाश में घूमता हुआ उधर से निकला। वह लावण्यवती के रूप पर मुग्ध होकर उसे उड़ाकर ले गया। जागने पर हरिदास ने देखा कि उसकी स्त्री नही है तो उसे बड़ा दुख हुआ और वह मरने के लिए तैयार हो गया। लोगों के समझाने पर वह मान तो गया; लेकिन यह सोचकर कि तीरथ करने से शायद पाप दूर हो जाय और स्त्री मिल जाय, वह घर से निकल पड़ा।

चलते-चलते वह किसी गाँव में एक ब्राह्मण के घर पहुँचा। उसे भूखा देख ब्राह्मणी ने उसे कटोरा भरकर खीर दे दी और तालाब के किनारे बैठकर खाने को कहा। हरिदास खीर लेकर एक पेड़ के नीचे आया और कटोरा वहाँ रखकर तालाब मे हाथ-मुँह धोने गया। इसी बीच एक बाज किसी साँप को लेकर उसी पेड़ पर आ बैठा ओर जब वह उसे खाने लगा तो साँप के मुँह से ज़हर टपककर कटोरे में गिर गया। हरिदास को कुछ पता नहीं था। वह उस खीर को खा गया। ज़हर का असर होने पर वह तड़पने लगा और दौड़ा-दौड़ा ब्राह्मणी के पास आकर बोला, "तूने मुझे जहर दे दिया है।" इतना कहने के बाद हरिदास मर गया।

पति ने यह देखा तो ब्राह्मणी को ब्रह्मघातिनी कहकर घर से निकाल दिया।

इतना कहकर बेताल बोला, "राजन्! बताओ कि साँप, बाज, और ब्राह्मणी, इन तीनों में अपराधी कौन है?"

राजा ने कहा, "कोई नहीं। साँप तो इसलिए नहीं क्योंकि वह शत्रु के वश में था। बाज इसलिए नहीं कि वह भूखा था। जो उसे मिल गया, उसी को वह खाने लगा। ब्राह्मणी इसलिए नहीं कि उसने अपना धर्म समझकर उसे खीर दी थी और अच्छी दी थी। जो इन तीनों में से किसी को दोषी कहेगा, वह स्वयं दोषी होगा। इसलिए अपराधी ब्राह्मणी का पति था जिसने बिना विचारे ब्राह्मणी को घर से निकाल दिया।"

इतना सुनकर बेताल फिर पेड़ पर जा लटका और राजा को वहाँ जाकर उसे लाना पड़ा। बेताल ने चलते-चलते नयी कहानी सनायी।