“तुम यहाँ रहते हो, इस कमरे में, क्या हाल बना रखा हैं तुमने इस कमरे का.” room के अन्दर घुसते ही रश्मी ने प्रश्नों की लरी लगा दी. “ऐसे ही रहते हैं थोड़ा साफ़-सफाई भी कर लो. लग रहा है कितने दिनों से तो झाड़ू तक नहीं लगा है. और ये बर्तन भी ऐसी छोड़ रखे हो जूठा. कितनी बार बताई हूँ की बर्तन को ऐसे ही नहीं छोड़ते है.”
उस चमकते चेहरे से बातें ऐसे निकलती हैं जैसे स्वर्ग से परियां आ कर गुलाब के फूलो की बारिश कर रही है. गुस्सा तो चहरे पर चार चाँद लगा देता हैं. काली-काली बाल गोरा चेहरा और बड़ी-बड़ी आँखे ऐसे खुबशुरत चेहरे से कौन अपना नजर हटाएगा. और उजली शूट में तो बिलकुल ही परी के सामान लग रही थी. जो स्वर्ग से उतर कर मेरे पास आ गई थी. नाम था “रश्मी”
मैं उस खुबशुरत से चेहरे से अपना नजर हटाया और room में चारो तरफ दौड़ाया. मुझे भी अब गन्दा अलग रहा था. शायद खुबशुरत चीज देखने के बाद और सारी चीज बदसूरत ही नजर आने लगती है. वैसे सच में कुछ जयादा ही सामान इधर-उधर बिखड़ा पड़ा था. खाने का बर्तन जो सुबह ही बनाये थे वो वैसे रखा था. उसको हमलोग तभी धोते है जब उसकी अगली बार जरुरत पड़ती है- खाना बनाने के समय. और कुछ अंत: वस्त्र इधर-उधर पड़े थे. bachlor का room भी ऐसे ही रहता हैं. इतना टाइम कहा मिल पता है की सारे चीज ढंग ऐसे रखो. इतना सजा कर रखने का जिम्मा तो बस लड़कियों के पास हैं.
“क्या करें यार, इतना टाइम कहा मिल पता हैं. पढाई करो, खाना बनाओ, सब्जी लाओ या फिर साफ-सफाई रखो.” हाथ में लिया हुआ किताब बंद करते हुए बोला.
“कोई बात नहीं है तुम पढाई पर धयान दो मैं जब भी आउंगी सारा सफाई कर दिया करुँगी.” उसने तब तक कोने में पड़ी झाड़ू उठाया और कमरें में झाड़ू लगाने लगी. जो गुस्सा लिए अन्दर आई थी सब गायब था. प्यार था या दया पता नहीं. इस बात का विश्लेषण करना भी ठिक नहीं था.
“ बैठ कर क्या सोच रहे हो? कल से तुमने call भी नहीं किया है.” सारे अस्त-व्यस्त पड़े कपड़ो को ठिक करती हुई बोली.
“सोच रहा हूँ. जिससे तुम्हारी शादी होगी उसकी किस्मत कितनी अच्छी होगी न, ऐसी लड़की किस्मत वालो को ही मिलती है.”
“क्यों तुम नहीं कर रहो हो क्या?अपनी काम में मशगुल लड़की मेरे पास आकर बैठ गई और बोली”तुमने ऐसा सोच भी कैसे लिया की मैं किसी और से शादी भी कर सकती हूँ. हम दोनों एक-दुसरे के है और एक-दुसरे के ही रहेंगें. हमें कोई भी जुदा नहीं कर सकता है.” serious थी वह. भरी हुई आँखे कह रही थी इस matter में मजाक नहीं. सबकुछ सह सकते हैं तुमसे जुदाई नहीं.
“सबसे बड़ी बात जानती हो क्या हैं मैं तुम्हारे जाती का नहीं हूँ. तिम्हारे घर वाले मुझे पसंद करेंगे? इन्सान गरीब से शादी करने का एक बार सोच भी सकता है मगर दूसरी जाती में शादी तो नहीं ही. यहाँ इतनी बड़ी सोच वाली कहाँ हैं”
“उस से क्या फर्क करता हैं मैं सभी को मना लुंगी. मेरी बात को कोई ना नहीं कहेगा.”
उसकी बातो में विश्वास झलक रहा था मगर ये विश्वास उन अन्धविश्वास या छोटी सोच के आगे घुटने टेक देती है.
“मेरे पास न तो job है ना ही कोई बढ़िया घर से हूँ. job होगी भी तो पता नहीं कब होगी अभी फॉर्म भरने के भी पैसे नहीं है. अभी तक घर से पैसे आया नहीं. सब्जी खरीदने तक का पैसा नहीं है. कैसे चलेगा यहाँ पता नही.” मैं भी इस matter में serious था.
“तो इसमें कौन सी बड़ी बात हैं मुझसे ले लेना. कितना चाहिए बताओ.”
“एक फॉर्म भरना था और कुछ काम था. मगर तुम्हारे पास भी तो नहीं होंगे पैसे.”
“तुम टेंसन मत लो मैं पापा से मांग लुंगी.अब जाती हूँ कुछ काम था इधर तो आ गई.”
“अभी क्यों जा रही हो. बैठो कुछ और देर इस चाँद को मन भर देख लेने दो.” मैंने उसके हाथ पकड़ कर बैठाते हुए बोला.
“नहीं अभी जा रही हूँ काम से आई हूँ. और ये चाँद तुम्हारा ही है जब मन करे जितना मन करे देखना. ना तो तुम्हारे लिए मना है ना कोई रोक टोक है. तुम ही इसके मालिक हो जनाब.” उसके चरे की मुस्कान एक गजब का अनुभूति देता है और उसके जाने के एहसास से ही एक सूनापन फ़ैल जाता है.
उसको गये हुए काफी देर हो गये थे. मैं अभी भी बैठा पढ़ रहा था. अब शाम होने वाला था. शब्जी वैगरह भी लाना जरुरी था. रात के लिए कुछ बचा नहीं था. और मेरे सोच से पैसे भी ख़त्म हो गए थे. अभी तक तो घर से पैसा आ जाता है. दो दिन से घर पर भी बात नहीं हुआ. mobile के भी बैलेंस खत्म हो है थे. बाजार जाने से पहले सोच देख भी लें पैसा है भी या नहीं. पर्स खोला तो उसमे 1000 रूपये पड़े थे. मगर मेरे पास तो पैसा था ही नहीं तो फिर ये पैसा कहाँ से आया…..कही रश्मी तो नहीं….
रश्मी नहीं तो और कौन…नहीं रश्मी ही… उसी ने रखा है. आखो में आंसू आ गये. उसने बताया भी नहीं की पैसा दे रही है. शायद यही सोच ही होगी की पैसा देने पर मैं शर्मिंदा महसूस करूंगा. कितना प्यार करती है मुझे क्या मैं इसप्यार का मूल्य भी चूका पाउँगा. इस एहसास का मूल्य चूका पाउँगा कभी.
आज इस बात को 3 साल बीत गई. जब भी ये बात याद आता है आँखों में पानी उतर जाता है. वो खुबसुरत सा चेहरा हो कभी मेरा था. जिसको देख कर दुनिया की सारी ख़ुशी मिल जाती थी. जो मुस्कान मेरे जीने का सहारा था. उसे उस दुनिया से देखा नहीं गया. मैं ब्राहम्ण, मैं कायस्थ, मैं ठाकुर, मैं ये मै वो इनसे हमें क्या लेना-देना था. हम तो इन्सान थे जो दुसरे इन्सान से प्यार करते थे.
रश्मी की शादी कही और पक्की हो गई. उसके घर को ये पसंद नहीं था की उनकी लड़की किसी और बिरादरी के लड़के से शादी करें. क्या कहेगा समाज, क्या कहेंगे गावं वाले, क्या कहेंगे रिश्तेदार. ये कैसे हो सकता है. ऐसा तो आज तक हुआ ही नहीं है की लड़की मन से शादी करे वो भी किसी और बिरादरी के लड़के से.
इन्ही रीती रिवाजो के बलि आज फिर एक प्यार चढ़ गया. कैसे जी पायंगे उसके बिना जिसके बिना एक पल भी नहीं रह पाते थे. एक दिन call नहीं जाता तो बेचैन हो जाती थी वो छोड़ के कैसे जी पायेगी. वह एहसास किसी और के साथ कैसे जुड़ पायेगा जो हमारे बिच थे. मेरा जीवन में अँधेरा ही अँधेरा हो गया मेरा चाँद तो कही और निकलने वाला हैं.
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