Friday, 4 May 2018

एहसास एक सच्चे प्यार की

“तुम यहाँ रहते हो, इस कमरे में, क्या हाल बना रखा हैं तुमने इस कमरे का.” room के अन्दर घुसते ही रश्मी ने प्रश्नों की लरी लगा दी. “ऐसे ही रहते हैं थोड़ा साफ़-सफाई भी कर लो. लग रहा है कितने दिनों से तो झाड़ू तक नहीं लगा है. और ये बर्तन भी ऐसी छोड़ रखे हो जूठा. कितनी बार बताई हूँ की बर्तन को ऐसे ही नहीं छोड़ते है.”
उस चमकते चेहरे से बातें ऐसे निकलती हैं जैसे स्वर्ग से परियां आ कर गुलाब के फूलो की बारिश कर रही है. गुस्सा तो चहरे पर चार चाँद लगा देता हैं. काली-काली बाल गोरा चेहरा और बड़ी-बड़ी आँखे ऐसे खुबशुरत चेहरे से कौन अपना नजर हटाएगा. और उजली शूट में तो बिलकुल ही परी के सामान लग रही थी. जो स्वर्ग से उतर कर मेरे पास आ गई थी. नाम था “रश्मी”
मैं उस खुबशुरत से चेहरे से अपना नजर हटाया और room में चारो तरफ दौड़ाया. मुझे भी अब गन्दा अलग रहा था. शायद खुबशुरत चीज देखने के बाद और सारी चीज बदसूरत ही नजर आने लगती है. वैसे सच में कुछ जयादा ही सामान इधर-उधर बिखड़ा पड़ा था. खाने का बर्तन जो सुबह ही बनाये थे वो वैसे रखा था. उसको हमलोग तभी धोते है जब उसकी अगली बार जरुरत पड़ती है- खाना बनाने के समय. और कुछ अंत: वस्त्र इधर-उधर पड़े थे. bachlor का room भी ऐसे ही रहता हैं. इतना टाइम कहा मिल पता है की सारे चीज ढंग ऐसे रखो. इतना सजा कर रखने का जिम्मा तो बस लड़कियों के पास हैं.
“क्या करें यार, इतना टाइम कहा मिल पता हैं. पढाई करो, खाना बनाओ, सब्जी लाओ या फिर साफ-सफाई रखो.” हाथ में लिया हुआ किताब बंद करते हुए बोला.
“कोई बात नहीं है तुम पढाई पर धयान दो मैं जब भी आउंगी सारा सफाई कर दिया करुँगी.” उसने तब तक कोने में पड़ी झाड़ू उठाया और कमरें में झाड़ू लगाने लगी. जो गुस्सा लिए अन्दर आई थी सब गायब था. प्यार था या दया पता नहीं. इस बात का विश्लेषण करना भी ठिक नहीं था.
“ बैठ कर क्या सोच रहे हो? कल से तुमने call भी नहीं किया है.” सारे अस्त-व्यस्त पड़े कपड़ो को ठिक करती हुई बोली.
“सोच रहा हूँ. जिससे तुम्हारी शादी होगी उसकी किस्मत कितनी अच्छी होगी न, ऐसी लड़की किस्मत वालो को ही मिलती है.”
“क्यों तुम नहीं कर रहो हो क्या?अपनी काम में मशगुल लड़की मेरे पास आकर बैठ गई और बोली”तुमने ऐसा सोच भी कैसे लिया की मैं किसी और से शादी भी कर सकती हूँ. हम दोनों एक-दुसरे के है और एक-दुसरे के ही रहेंगें. हमें कोई भी जुदा नहीं कर सकता है.” serious थी वह. भरी हुई आँखे कह रही थी इस matter में मजाक नहीं. सबकुछ सह सकते हैं तुमसे जुदाई नहीं.
“सबसे बड़ी बात जानती हो क्या हैं मैं तुम्हारे जाती का नहीं हूँ. तिम्हारे घर वाले मुझे पसंद करेंगे? इन्सान गरीब से शादी करने का एक बार सोच भी सकता है मगर दूसरी जाती में शादी तो नहीं ही. यहाँ इतनी बड़ी सोच वाली कहाँ हैं”
“उस से क्या फर्क करता हैं मैं सभी को मना लुंगी. मेरी बात को कोई ना नहीं कहेगा.”
उसकी बातो में विश्वास झलक रहा था मगर ये विश्वास उन अन्धविश्वास या छोटी सोच के आगे घुटने टेक देती है.
“मेरे पास न तो job है ना ही कोई बढ़िया घर से हूँ. job होगी भी तो पता नहीं कब होगी अभी फॉर्म भरने के भी पैसे नहीं है. अभी तक घर से पैसे आया नहीं. सब्जी खरीदने तक का पैसा नहीं है. कैसे चलेगा यहाँ पता नही.” मैं भी इस matter में serious था.
“तो इसमें कौन सी बड़ी बात हैं मुझसे ले लेना. कितना चाहिए बताओ.”
“एक फॉर्म भरना था और कुछ काम था. मगर तुम्हारे पास भी तो नहीं होंगे पैसे.”
“तुम टेंसन मत लो मैं पापा से मांग लुंगी.अब जाती हूँ कुछ काम था इधर तो आ गई.”
“अभी क्यों जा रही हो. बैठो कुछ और देर इस चाँद को मन भर देख लेने दो.” मैंने उसके हाथ पकड़ कर बैठाते हुए बोला.
“नहीं अभी जा रही हूँ काम से आई हूँ. और ये चाँद तुम्हारा ही है जब मन करे जितना मन करे देखना. ना तो तुम्हारे लिए मना है ना कोई रोक टोक है. तुम ही इसके मालिक हो जनाब.” उसके चरे की मुस्कान एक गजब का अनुभूति देता है और उसके जाने के एहसास से ही एक सूनापन फ़ैल जाता है.
उसको गये हुए काफी देर हो गये थे. मैं अभी भी बैठा पढ़ रहा था. अब शाम होने वाला था. शब्जी वैगरह भी लाना जरुरी था. रात के लिए कुछ बचा नहीं था. और मेरे सोच से पैसे भी ख़त्म हो गए थे. अभी तक तो घर से पैसा आ जाता है. दो दिन से घर पर भी बात नहीं हुआ. mobile के भी बैलेंस खत्म हो है थे. बाजार जाने से पहले सोच देख भी लें पैसा है भी या नहीं. पर्स खोला तो उसमे 1000 रूपये पड़े थे. मगर मेरे पास तो पैसा था ही नहीं तो फिर ये पैसा कहाँ से आया…..कही रश्मी तो नहीं….
रश्मी नहीं तो और कौन…नहीं रश्मी ही… उसी ने रखा है. आखो में आंसू आ गये. उसने बताया भी नहीं की पैसा दे रही है. शायद यही सोच ही होगी की पैसा देने पर मैं शर्मिंदा महसूस करूंगा. कितना प्यार करती है मुझे क्या मैं इसप्यार का मूल्य भी चूका पाउँगा. इस एहसास का मूल्य चूका पाउँगा कभी.
आज इस बात को 3 साल बीत गई. जब भी ये बात याद आता है आँखों में पानी उतर जाता है.  वो खुबसुरत सा चेहरा हो कभी मेरा था. जिसको देख कर दुनिया की सारी ख़ुशी मिल जाती थी. जो मुस्कान मेरे जीने का सहारा था. उसे उस दुनिया से देखा नहीं गया. मैं ब्राहम्ण, मैं कायस्थ, मैं ठाकुर, मैं ये मै वो इनसे हमें क्या लेना-देना था. हम तो इन्सान थे जो दुसरे इन्सान से प्यार करते थे.
रश्मी की शादी कही और पक्की हो गई. उसके घर को ये पसंद नहीं था की उनकी लड़की किसी और बिरादरी के लड़के से शादी करें. क्या कहेगा समाज, क्या कहेंगे गावं वाले, क्या कहेंगे रिश्तेदार. ये कैसे हो सकता है. ऐसा तो आज तक हुआ ही नहीं है की लड़की मन से शादी करे वो भी किसी और बिरादरी के लड़के से.
इन्ही रीती रिवाजो के बलि आज फिर एक प्यार चढ़ गया. कैसे जी पायंगे उसके बिना जिसके बिना एक पल भी नहीं रह पाते थे. एक दिन call नहीं जाता तो बेचैन हो जाती थी वो छोड़  के कैसे जी पायेगी. वह एहसास किसी और के साथ कैसे जुड़ पायेगा जो हमारे बिच थे. मेरा जीवन में अँधेरा ही अँधेरा हो गया मेरा चाँद तो कही और निकलने वाला हैं.
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प्यार जो मिट नहीं पाया

 कुछ यादें दिल के कोने में इस तरह बस जाता है. उसको कितना भी इग्नोर करो याद आ ही जाता है. मन उड़ कर उन यादो में चला जाता है जो हमने बहुत पहले बिताये थे. और मन को सारी तस्वीरे आँखों के सामने आ जाते है. और मन उसे ढूढने लगता है. काश वो आ जाता.
10वी class का exam शुरू हो रहा था. गावं के लड़के शहर आ रहे थे. शहर में धीरे-धीरे भीड़ बढ़ रहा था. कोई अपने रिश्तेदार के यहाँ आता तो कोई भाड़े पर room लेता. एक दिन शाम को मैं अपने छत पर घूम रही थी. तीन मंजिल के मेरे घर के सामने ही एक मंजिल का घर था. उसमे भी एक लड़का आया था. गोरा-गोरा चेहरा, बड़ी-बड़ी आखे और घुंघराले बाल. गजब का लग रहा था. मैं उसे काफी देर तक देखती रही. जब उसने मुझे देखा. हम दोनो की आखे मिल गई. मैंने हडबडाते हुए आखे नीची कर ली थी. और छत के दुसरे तरफ चली
जब भी समय मिलता उसे मैं छुपकर देखती. पता नहीं क्या था उसके अंदर जो अपने तरफ खीच रहा था. मैं उसे हमेशा देखना चाह रही थी. मैंने अपने room के खिड़की आधा खोल देती और वहाँ से छुप कर देखा करती थी.  जब हमलोग कभी बाहर दीखते तो मेरी धड़कन तेज हो जाती और अपनी आखे नीची करके तिरछी निगाहे कर के देख लेती. मैं हमेशा wait करती कब बहार आ रहा है. तो उसी समय मैं भी सज-सवर कर बहार निकलती. अब मुझे सजना-सवरना काफी अच्छा लग रहा. मेरा मन करता उसे बिच रास्ते में रोक लूँ और आई love यू बोल दूँ. मगर मिलते ही जबान पर ताला लग जाता था. कितनी ही बार हम दोनों की आखे मिली. उसकी बड़ी-बड़ी आखे, उसे बस देखते रह जाऊ.
Moral story in hindi -एक कहानी जो आपकी जीवन बदल देगी.
exam के दिन बित रहे थे. अभी तक हमारा जान-पहचान नही हुआ था. मैं कितनी बार बोलना चाही मगर वह इस तरफ कभी ध्यान नहीं दिया. और अपना अधिकतर समय बस पढाई पर ही बिताता.   
काफी रात हो गया था. मुझे नींद नहीं आ रही थी. मैं उठकर छत पर टहलने चली गई. मैं उसके तरफ देखा. वो अपने छत पर स्ट्रीट लाइट के निचे अभी भी पढ़ रहा था. मैं खड़ी होकर काफी देर तक उसे देखते रही. मगर वह किताबो में खोया रहा.
अगले दिन मैं बाज़ार चली गई. शाम को जब वापस आई तो उसके room के तरफ देखा. उसमे ताला लगा हुआ था. काफी देर तक बेचैन हो उसका wait करने लगी. काफी समय बित जाने के बाद भी वह दिखाई नहीं दिया. किसी ने बताया exam खत्म हो गये है. सभी अपने-अपने घर चले गये. मेरा दिल जोर से धडकने लगा. समझ में कुछ नहीं आ रहा था. इन आखो को उसे देखने की आदत हो गई. मन में एक सूनापन भर आया. मैं अपने room में आई और उसी खिड़की के पास बैठ गई. खिड़की के पास ऐसे लगा वो मेरे सामने ही है.
इस बात को काफी समय बित गया. मेरी शादी भी कही और हो गई. जब भी मैं उस खिड़की के पास जाती हूँ तो वह चेहरा आखो के समाने आ जाता है. एक यादें फिर से ताजा हो जाती है. वही गोरा चेहरा, बड़ी-बड़ी आखें, घुंघराले बाल आज भी मुझे घूरता है. दिल के कोने से यही आवाज आती है – वही मेरा पहला प्यार था जो मिट नहीं पाया.
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मेरी जिन्दगी की एक सच्ची कड़वी हकीकत

शाम का समय था, मैं अपने गार्डन में बैठा ठंडी-ठंडी हवाओ का आनंद ले रहा था. आकाश में पंक्षी मंडरा रहे थे, सूरज ढलने को चल दिया था. मैं भी काफी देर से अकेला बैठा-बैठा बस यु ही अब बोर हो रहा था.
अचानक मेरी पड़ोसी घर के तरफ गई. उनके घर में मिस्टर गुप्ता और उनकी पत्नी रहते थे, एक उनका लड़का भी था जो किसी दुसरे शहर में पढाई करता था. फिर ये लड़की, कौन है? शायद कोई रिश्तेदार होगी, ऐसा सोचकर मैंने अपने मन को मना लिया, पर जब मैंने दुबारा उस तरफ देखा तो वो लड़की वहाँ से जा चुकी थी. पता नहीं मेरे अंदर अजीब सी हलचल होने लगी, इन्ही सब बातो में अभी उलझा ही था की अचानक से माँ ने अंदर से आवाज दी – “बेटा विजय चाय तैयार है, मैं अंदर गया और गर्म-गर्म चाय का आनंद लिया, पर वो लड़की मेरी नजरो से जा ही नहीं रही थी. वो मेरे मन को भा गई थी.
किसी भी तरह मैंने रात बिताई. फिर सुबह उठते ही गुप्ता जी के घर की तरफ चल दिया. ज्यो ही घर की बेल बजाई, त्यों ही दरवाजा खुला, मैं भौच्का सा रहा गया. सामने वही लड़की, बड़ी-बड़ी आँखे, लम्बे-लम्बे रेशम से बाल, गोरा रंग ऐसा लगता था. जैसे देखने वाले देखते रह जायेंगे.
   दरवाजा खोली और चुपचाप अंदर चली गई. फिर गुप्ता जी आये. उनसे बातो ही बातो में पता चला की वो लड़की उनके बहन की बेटी थी. मैंने उनसे बोला – “वो इतना उदास क्यों रहती है.” मेरी बात को टालते हुए गुप्ता जी ने बात को बदल दिया. फिर मैंने भी ज्यादा पूछताछ नही किया और बाद में घर आ गया.
मैं और मेरी माँ अकेले रहते थे. मैं जब 10 वर्ष का था तब पिताजी का देहांत हो गया था. माँ ने मुझे पढाया-लिखाया. आज मैं एक छोटे सी कंपनी में काम करता हूँ. मैं उदास मन से माँ से कहा – “माँ जल्दी नाश्ता तैयार करो. माँ ने पूछा , इतना उदास क्यों है? मैंने यु ही कहकर टाल दिया.
पता नहीं क्यों उस लड़की का चेहरा मेरी नजरो से जा ही नहीं रहा था. हर वक्त उसी का ख्याल आ रहा था. शाम ढली, मैं घर आया और फिर गार्डन में बैठ था. गुप्ता जी के घर को एकटक से नजर टिकाये हुए था. एक बार उस लड़की का गुलाबी चेहरा दिख जाये, जिस पर मैं इतना आकर्षित होता चला जा रहा था. मैं अपने आप को बहुत बेचैन सा महसूस कर रहा था. बहुत सोचने के बाद मैंने तय किया की मैं गुप्ता जी के घर कल जाऊंगा और अपने मन की बात प्रकट करूँगा.
अगले सुबह मैं जल्दी उठा. फ्रेश हो कर उनके घर की तरफ कदम बढाया. न जाने क्यों मेरा दिल तेजी से धडक रहा था. कदम आगे बढ़ नहीं पा रहे थे, मानो कोई पीछे खीच रहा हो, फिर भी मैं हिम्मत जुटा कर साहस के साथ उनके घर गया.
उनके घर जाकर बैठा था तब तक वो लड़की चाय लेकर आई. गुप्ता जी ने उसका परिचय मुझसे करवाया. विजय जी ये मेरी भांजी किरण है और किरण ये मेरे पडोसी विजय जी है. मैं उसे के खयालो में डूबा हुआ था की गुप्ता ने मुझे कहा की जहाँ खो गये चाय पीजिये. मैंने कहा हां-हां. बहुत हिम्मत जूटा कर मैंने गुप्ता जी कहा की मैं आपकी भांजी किरण से शादी करना चाहता हूँ. आपको कोई आप्पति न हो तो मैं तैयार हूँ. यदि आपकी आज्ञा हो तो. गुप्ता जी जैसे सन्न से रहा गये. अचानक से पता नहीं क्या हुआ मेरी बातो से जैसे उनको झटका सा लगा. और आँखों में आसू भरके मेरी तरफ एकटक से देखते रहा गये. मैंने कहा “गुप्ता जी अगर कोई आपको परेशानी हो तो कोई बात नहीं, आप पहले सोच लीजिये. वे बिना कुछ जवाब दिए बस मेरे को निहारते रहे.

मैं भी कुछ बोल नहीं पा रहा था, फिर मैंने कहा की ठिक है तब मैं चलता हूँ, तभी अचानक से गुप्ता जी ने मुझे कहा ठहरिये-ठहरिये. मैं दुखी मन से रुक गया. बहुत देर बाद उन्होंने कहा की “क्या आप उस लड़की का सच्चाई जानने के बाद भी उसके साथ जिन्दगी बिताना चाहेंगे.
मैं सहम सा गया और गुप्ता जी के मुहावरे का अर्थ समझने का प्रयास करने लगा. फिर मैं हिम्मत जुटा के पूछ लिया की कैसी सच्चाई.
“किरण कोई लड़की नहीं बल्कि एक विधवा है.” उन्होंने मेरे तरफ देखते हुए बोले. मैं सन्न सा रहा गया उन्होंने आगे बोलना जरी रखा “किरण की शादी कुछ साल पहले एक आर्मी मैन से हुई थी. अभी तो एक साल भी न हुए थे की देश की लड़ाई में उनकी जान चली गई. किरण की जिन्दगी से जैसे मानो उजाले की किरण चली गई. अब वो अकेले रह गई थी. बहुत दिक्कतों के बाद वो इतना सम्भल पाई है. और जैसे-तैसे उन बातो को भूल पाई है. फिर से मैं उन यादों को ताज़ा नहीं करना चाहता” भरे हुए गले से बोल रहे थे. मैं उनकी आखो में देख सकता था, और समझ सकता था उनलोग के दर्द को.
मैं उदास मन से घर लौट आया और लेट गया. मैं समझ नहीं पा रहा था की क्यों करू, माँ से कहूँगा तो वो तैयार नहीं होगी. आखिर मैं भी तो उसका एक ही बेटा था. उसकी भी कुछ सपने थे अपने बेटे से. मगर मैं सोच लिया था माँ को सब कुछ बता दूंगा. कोई गलत काम नहीं कर रहा था मैं.
जैसे-तैसे दबे पावं मैं माँ के कमरे में गया. माँ मेरा ही इतंजार कर रही थी. जाते ही पूछी “कहा चले गये थे? कब से नास्ता लगा कर wait कर रही हूँ.”
“गुप्ता जी के यहाँ गया था,” मैं उनके पास जाकर बैठते हुए बोला – “माँ एक बात बोलू?”
“हां बोलो क्या बात है.” वो नास्ता मेरे पास लाती हुए बोली. फिर मैं माँ से सारी बाते बता दी.
पहले तो माँ बहुत ही गुस्से से मेरे तरफ देखी. पर मैं माँ को बहुत समझाया. किसी का घर बसाना गलत नहीं है. और जो हुआ उसमे उसकी क्या गलती है. यह किसी के साथ हो सकता है. उसे भी अपनी जिन्दगी जीने का हक़ है. समाज तो बस अपने बारे में सोचता है. किसी से दुःख से किसी को क्या मतलब है. और किरण उस समाज का बोझ अपने ऊपर लिए जिन्दगी गुजार रही है. जब लड़के की पत्नी मर जाये तो उसके कुछ महीने बाद ही वो शादी कर लेता है, तो एक लड़की क्यों नहीं कर सकती? फिर माँ मेरी बात सुनकर मान गई.
मैं अपनी माँ को लेकर गुप्ता जी के घर पंहुचा और अपनी सारी बाते उनके सामने रख की. माँ, गुप्ता जी से बाते करने लगी. वो भी उन्हें समझाने क्या प्रयास करने लगी –“ क्या हुआ अगर वो बिधवा है उसमे उसका तो दोष नहीं या अवगुण नहीं है. क्या उसको अपनी जिदगी दुबारा जीने का अधिकार नहीं है.? माँ की मुख से ऐसा सुनकर मैं दंग रह गया. और मन-ही-मन माँ को धन्यवाद दे रहा था. गुप्ता जी भला कैसे तैयार नहीं होते जिसमे उनकी भांजी किरण की उजड़ी हुई जिन्दगी को नई राह मिल जाये.
आज मैं धूमधाम से किरण के साथ अपना पांचवा सालगिरह मना रहा था. मैं बहुत भाग्यसाली था जो मुझे किरण जैसी पत्नी मिली. मेरे दो बच्चे भी है. मैं आज गुप्ता जी का बहुत आभारी हूँ. हमलोग बहुत खुश है एक-दुसरे के साथ.
यही मेरी जिन्दगी की एक सच्ची कडवी हकीकत है
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जियेंगे तो साथ में – मरेंगे तो साथ में

एक दिन राहुल ने मुझे बताया “प्रिया से बहुत प्यार करता हूँ मगर कुछ भी कहने में डर लगता है.” वह इतना डरता था की अपना कसम दे दिया की किसी को बताएगी नहीं. अगर कोई जान गया और फिर कोई प्रिया से जा कर बोल देगा तो प्रिया क्या सोचेगी मेरे बारे में. मुझे तो गलत समझ लेगी वह. मैं भी उसे कसम खाकर विश्वास दिलाई की किसी से कुछ नहीं बताउंगी.

काफी दिन बित गये. इसी बिच मेरा बर्थडे आ गया. मैंने राहुल को बताया की आज मैं एक छोटी सी पार्टी रखूंगी. उस पार्टी में प्रिया भी आएगी तो तू उसे प्रोपोज कर देना. मैं भी तेरे साथ रहूंगी. वह तैयार हो गया और प्रिया को देने के लिए रिंग खरीदने चला गया. शाम हो गया था अभी तक राहुल आया नहीं था. तो मम्मी बोली मैं राहुल को लेकर आती हूँ. मम्मी भी राहुल और प्रिया के love के बारे में जानती थी.
मम्मी भी चाहती थी की दोनों मिल जाये. इसलिए खुद ही राहुल को बुलाने चली गई. और कुछ देर बाद ही दोनों आपस आ गये. राहुल के हाथ में एक चमचमाती हुई रिंग थी. वह काफी खुश दिखाई दे रहा था. जैसे उसका कोई सपना पूरा होने वाला हो. उसके चहरे की चमक बता रही थी, की कितनी खास है ‘प्रिया’.
हम सभी प्रिया का wait करने लगे. आज वह लेट भी बहुत कर दी थी. वैसे तो दिन भर मेरे घर में घुमती रहती थी और आज ही वह लेट कर रही थी जैसे उसे पता हो की सभी उसका wait कर रहे है. काफी समय हो गया. प्रिया अभी तक नहीं आई. call करने पर कोई receive नहीं कर रहा था. बहुत देर हो गया अब भी सब बेसब्री से उसका wait कर रहे थे. मैं तो उसके बिना केक काट ही नहीं सकती थी.
तभी अचानक घर के टेलीफोन का रिंग बजा. प्रिया की माँ थी. वो हाफ रही थी, उनकी आवाज में बेचैनी थी, वह रोये जा रही थी. क्या-क्या बोली कुछ समझ में नहीं आ रहा था बस इतना समझ में आया की “प्रिया हॉस्पिटल में है” सभी घबडा गये. दिमाग में दस बाते आने लगी. केक वैसे का वैसे छोड़ सभी हॉस्पिटल के लिए भागे. सभी के चहरे पर एक उदास प्रश्न था ‘क्या हुआ अचानक प्रिया को?”
कुछ ही देर बाद हमलोग हॉस्पिटल में थे. प्रिया की माँ गेट पर ही हमारा wait कर रही थी. उनका रो-रो कर बुरा हाल हो गया था. फिर उन्होंने बताया की प्रिया ब्लड कैंसर है. यह सुनते ही राहुल फफक-फफक कर रोने लगा. उसका बहुत बुरा हाल गो गया. मैं उसे सम्भाली और संत्वना दी. कुछ देर बाद हमे प्रिया से मिलने दिया गया. उसे देखते ही मेरे आँखों आसू आ गये. प्रिया भी भीगी आखो से देख रही थी.
“राहुल नहीं आया?” बेड पर सोई हुई प्रिया ने पूछा
“आया है, बाहर ही है. बहुत ही बुरा हाल हो रखा है उसका.” मैं न चाहते हुए सब कुछ उसे बता दिया – “वह तुमसे बहुत प्यार करता है. और आज तुझे प्रपोज भी करने वाला था.”
उसकी आखो से आसू की धारा निकलने लगी “मैं भी उसे बहुत प्यार करती हूँ. मैं भी उसके बिना नहीं रह सकती. क्या मैं कभी ठिक नहीं होउगी? मैं उसके साथ जीना चाहती हूँ. उसके साथ रहना चाहती हूँ.” वह बोलते बोलते रोने लगे. उसकी बाते सुनकर मेरा भी गला फुट पड़ा. और जोर जोर से रोने लगे. कैसी किस्मत है, सामने प्यार है, कोई जिन्दगी भर साथ देने को तैयार है मगर ये जिन्दगी साथ देने को तैयार नहीं. जितना ही जीने का चाह है उतना ही मौत के मुँह में है.
कुछ दिन बाद प्रिया को दुसरे शहर में इलाज के लिए ले गया. इस बिच अब राहुल मेरे घर आना जाना छोड़ दिया. अब वह कही नहीं आता जाता, घर में बैठा रहता. कुछ दिन बाद हमलोग प्रिया से मिलने वहाँ गये. हमलोग के साथ राहुल भी था. प्रिया से मिलने के लिए पहले राहुल ही अंदर गया. हमलोग बहार ही wait करने लगी. राहुल को अंदर गये अब काफी समय हो गया था. अंदर से कोई आवाज भी नहीं आ रहा था. सभी राहुल को बहार निकलने का wait करने लगे.
कुछ देर बाद नर्स प्रिया को दवा देने के लिए अंदर गई. अंदर जाते ही वह चीख पड़ी. चीखने की आवाज सुनकर अभी दौड़ कर अंदर गये. अचानक सभी चीखने लगे. प्रिया और राहुल दोनों ने अपना नस काट लिया था. डॉक्टर ने बचाने का काफी प्रयास किया. तब तक काफी देर हो चूका था. उनके पास में ही कुछ लिखा हुआ एक पेज पड़ा था. जिसमे लिखा था – “हम दोनों एक दुसरे के बिना नहीं रह सकते और अपनी जिन्दगी किसी और के साथ नहीं बिता सकते. हम जब भी रहेंगे एक-दुसरे के लिए रहेंगे. जियेंगे तो साथ में – मरेंगे तो साथ में
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