Wednesday, 16 January 2019

पुष्प की अभिलाषा - माखनलाल चतुर्वेदी | श्रेष्ठ हिंदी कवितायेँ | Fabulous Hindi Poems

पुष्प की अभिलाषा

चाह नहीं मैं सुरबाला के
गहनों में गूंथा जाऊं,
चाह नहीं, प्रेमी-माला में
बिंध प्यारी को ललचाऊं,
चाह नहीं, सम्राटों के शव
पर हे हरि, डाला जाऊं,
चाह नहीं, देवों के सिर पर
चढूं भाग्य पर इठलाऊं।
मुझे तोड लेना वनमाली!
उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढाने
जिस पथ जावें वीर अनेक

-माखनलाल चतुर्वेदी

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