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Wednesday, 30 January 2019

संत कबीर के दोहे | श्रेष्ठ हिंदी कवितायेँ

कबीर की साखियाँ

गुरु गोविंद दोऊ खडे, काके लागूँ पाँय।
बलिहारी गुरु आपने, जिन गोविंद दिया बताय॥
 
सिष को ऐसा चाहिए, गुरु को सब कुछ देय।
गुरु को ऐसा चाहिए, सिष से कुछ नहिं लेय॥

कबिरा संगत साधु की, ज्यों गंधी की बास।
जो कुछ गंधी दे नहीं, तौ भी बास सुबास॥

साधु तो ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहै, थोथा देइ उडाय॥

गुरु कुम्हार सिष कुंभ है गढ-गढ काढै खोट।
अंतर हाथ सहार दै, बाहर मारै चोट॥

कबिरा प्याला प्रेम का, अंतर लिया लगाय।
रोम रोम में रमि रहा, और अमल क्या खाय॥

जल में बसै कमोदिनी, चंदा बसै अकास।
जो है जाको भावता, सो ताही के पास॥

प्रीतम को पतियाँ लिखूँ, जो कहुँ होय बिदेस।
तन में मन में नैन में, ताको कहा संदेस॥

नैनन की करि कोठरी, पुतली पलँग बिछाय।
पलकों की चिक डारिकै, पिय को लिया रिझाय॥

गगन गरजि बरसे अमी, बादल गहिर गँभीर।
चहुँ दिसि दमकै दामिनी, भीजै दास कबीर॥

जाको राखै साइयाँ, मारि न सक्कै कोय।
बाल न बाँका करि सकै, जो जग बैरी होय॥

नैनों अंतर आव तूँ, नैन झाँपि तोहिं लेवँ।
ना मैं देखौं और को, ना तोहि देखन देवँ॥

लाली मेरे लाल की, जित देखों तित लाल।
लाली देखन मैं गई, मैं भी हो गई लाल॥

कस्तूरी कुंडल बसै, मृग ढूँढै बन माहिं।
ऐसे घट में पीव है, दुनिया जानै नाहिं।
सिर राखे सिर जात है, सिर काटे सिर होय।
जैसे बाती दीप की, कटि उजियारा होय॥

जिन ढूँढा तिन पाइयाँ, गहिरे पानी पैठ।
जो बौरा डूबन डरा, रहा किनारे बैठ॥

बिरहिनि ओदी लाकडी, सपचे और धुँधुआय।
छूटि पडौं या बिरह से, जो सिगरी जरि जाय॥

जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहीं।
प्रेम गली अति साँकरी, ता मैं दो न समाहिं॥

लिखा-लिखी की है नहीं, देखा देखी बात।
दुलहा दुलहिनि मिलि गए, फीकी परी बरात॥

रोडा होइ रहु बाटका, तजि आपा अभिमान।
लोभ मोह तृस्ना तजै, ताहि मिलै भगवान॥
 
-कबीरदास

Wednesday, 16 January 2019

पुष्प की अभिलाषा - माखनलाल चतुर्वेदी | श्रेष्ठ हिंदी कवितायेँ | Fabulous Hindi Poems

पुष्प की अभिलाषा

चाह नहीं मैं सुरबाला के
गहनों में गूंथा जाऊं,
चाह नहीं, प्रेमी-माला में
बिंध प्यारी को ललचाऊं,
चाह नहीं, सम्राटों के शव
पर हे हरि, डाला जाऊं,
चाह नहीं, देवों के सिर पर
चढूं भाग्य पर इठलाऊं।
मुझे तोड लेना वनमाली!
उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढाने
जिस पथ जावें वीर अनेक

-माखनलाल चतुर्वेदी

Wednesday, 9 January 2019

हौसला हो बुलंद | Hausla Ho Buland Anthem


हौसला हो बुलंद | Hausla Ho Buland Anthem




जैसे  कंधे  पे  इक  दोस्त  का  हाथ  हो 
जैसे  लफ्जों  पे  दिल  की  हर  एक  बात हो 
जैसे  आँखों  से  चिंता  की  चिलमन  हटे 
जैसे  मिट  जाए  हर  ग़म  कुछ  इतना  घटे 
जैसे  राहों  में  सपनो  की  कालिया खिले 
जैसे  दिल  में  उजालो  के  दरिया  बहे 
जैसे  तन्न -मन   कोई  गीत  गाने  लगे 
जैसे  सोई  हुई  हिम्मत  अंगडाई  ले 
जैसे  जीना  ख़ुशी  की  कहानी  लगे 
जैसे  खुल  जाए  रस्ते  अब  तक  थे  बंद 
हौसला  हो  बुलंद 
हौसला  हो  बुलंद 
हौसला  हो  बुलंद 
हौसला  जैसे  आस्मां  से  हो  बुलंद 
हौसला  हो  बुलंद 
हौसला  हो  बुलंद 
हौसला  हो  बुलंद 
हौसला  जैसे  आस्मां  से  हो  बुलंद 
हौसला  हो  बुलंद  
हौसला  हो  बुलंद

नोट  :उपयुक्त कविता टीवी विज्ञापन  Haywards 5000 हौसला हो बुलंद गान से लिया गया है.

Sunday, 30 December 2018

मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो |

                          मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो |



मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो,
भोर भयो गैयन के पाछे, मधुवन मोहिं पठायो।
चार पहर बंसीबट भटक्यो, साँझ परे घर आयो॥
मैं बालक बहिंयन को छोटो, छींको किहि बिधि पयो।
ग्वाल बाल सब बैर परे हैं, बरबस मुख लपटायो॥
तू जननी मन की अति भोरी, इनके कहे पतिआयो।
जिय तेरे कछु भेद उपजि है, जानि परायो जायो॥
यह लैं अपनी लकुटि कमरिया, बहुतहिं नाच नचायो।
'सूरदास तब बिहँसि जसोदा, लै उर कंठ लगायो॥
-सूरदास