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Sunday, 11 August 2019

पंचतंत्र की कहानी: प्यासी चींटी और कबूतर (Panchtantra Ki Kahani: Ant And Dove)


 प्यासी चींटी और कबूतर 


Panchtantra Ki Kahani: Ant And Dove
पंचतंत्र की कहानी: प्यासी चींटी और कबूतर (Panchtantra Ki Kahani: Ant And Dove)
एक समय की बात है, गर्मियों के दिनों में एक चींटी बहुत प्यासी थी और वो अपनी प्यास बुझाने के लिए पानी की तलाश कर रही थी. कुछ देर आस –पास तलाश करने के बाद वह एक नदी के पास पहुंची.
सामने पानी था, लेकिन पानी पीने के लिए वह सीधे नदी में नहीं जा सकती थी, इसलिए वह एक छोटे से पत्थर के ऊपर चढ़ गई. लेकिन जैसे ही उसने पानी पीने की कोशिश की, वह गिर कर नदी में जा गिरी.
Panchtantra Ki Kahani: Ant And Dove
उसी नदी के किनारे एक पेड़ था, जिसकी टहनी पर एक कबूतर बैठा था. उसने चींटी को पानी में गिरते हुए देख लिया. कबूतर को उस पर तरस आया और उसने चींटी को बचाने की कोशिश की. कबूतर ने तेजी से पेड़ से एक पत्ता तोड़कर नदी में संघर्ष कर रही चींटी के पास फेंक दिया.
चींटी उस पत्ते के पास पहुंची और उस पत्ते में चढ़ गयी. थोड़ी देर बाद, पत्ता तैरता हुआ नदी किनारे सूखे आ गया.. चींटी ने पत्ते में से छलांग लगाई और नीचे उतर गई. चींटी ने पेड़ की तरफ देखा और कबूतर को उसकी जान बचाने के लिए धन्यवाद किया.
इस घटना के कुछ दिनों बाद, एक दिन.. एक शिकारी उस नदी किनारे पहुंचा और उस कबूतर के घोंसले के नजदीक ही उसने जाल लगा दिया और उसमें दाना डाल दिया. वह थोड़ी ही दूर जाकर छुप गया और उम्मीद करने लगा कि वह कबूतर को पकड़ लेगा. कबूतर ने जैसे ही जमीन में दाना देखा वह उसे खाने के लिए नीचे आया और शिकारी के जाल में फंस गया.
वो चींटी वहीं पास में थी और उसने कबूतर को जाल में फंसा हुआ देख लिया. कबूतर उस जाल में से निकलने में असमर्थ था. शिकारी ने कबूतर का जाल पकड़ा और चलने लगा. तभी चींटी ने कबूतर की जान बचाने की सोची और उसने तेजी से जाकर शिकारी के पैर में जोर से काट लिया.
तेज दर्द के कारण शिकारी ने उस जाल को छोड़ दिया और अपने पैर को देखने लगा. कबूतर को जाल से निकलने का यह मौका मिल गया और वह तेजी से जाल से निकल कर उड़ गया.
सीख: कर भला, हो भला. हम जब भी दूसरों का भला करते हैं, तो उसका फल हमें जरुर मिलता है. कबूतर ने चींटी की मदद की थी और उसी मदद के फलस्वरूप मुश्किल समय में चींटी ने कबूतर की जान बचाई. इसलिए कभी भी किसी की सहायता करने या अच्छा करने से पीछे न हटें। जब भी मौका मिले, दूसरो की बिना किसी स्वार्थ के मदद करें.

Sunday, 23 June 2019

पंचतंत्र की कहानी: झील का राक्षस (Panchtantra Ki Kahani: The Monster Of The Lake)

 झील का राक्षस 

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एक जंगल में सभी जानवर मिलजुल कर रहते थे. उस जंगल में एक बहुत ही विशाल व सुंदर झील थी. जंगल के सभी जानवर उसी झील के पानी से अपनी प्यास बुझाते थे. सब कुछ हंसी-ख़ुशी चल रहा था कि इसी बीच न जाने कहां से एक भयानक राक्षस उस झील में रहने के लिए आ गया. उस राक्षस ने उस झील पर कब्ज़ा कर लिया और झील को ही अपना घर बना लिया. राक्षस ने जंगल के सभी जानवरों को उस झील में घुसने से व वहां का पानी इस्तेमाल करने से मना कर दिया.
इसी जंगल में बंदरों की एक विशाल टोली भी रहती थी. इस परेशानी से निपटने के लिए बंदरों ने सभा बुलाई. बंदरों के सरदार ने सभी बंदरों से कहा, “साथियो! हमारी झील पर एक राक्षस ने कब्ज़ा कर लिया और अगर हम में से कोई भी वहां गया, तो वो हमें खा जाएगा.”
बंदरों ने अपने सरदार से कहा, “लेकिन सरदार, पानी के बिना हमारा गुज़ारा कैसे होगा? हम तो प्यासे ही मर जाएंगे…”
सरदार ने कहा, “मुझे सब पता है, लेकिन अगर हमें सुख-शांति से रहना है, तो झील को छोड़ना ही होगा. बेहतर होगा कि हम सब नदी के पानी से ही गुज़ारा करें और झील के पानी का भूल ही जाएं.” सभी बंदर मान गए.
कई साल गुज़र गए और इस बीच जंगल के किसी भी जानवर ने उस झील की ओर रुख तक नहीं किया. तभी बहुत बड़ा अकाल पड़ा. नदी सूख चुकी थी. खाने और पानी की किल्लत के चलते जंगल के सभी जानवर उस जंगल को छोड़कर जाने लगे, लेकिन बंदरों को टोली को इस जंगल से बेहद लगाव था. उन्होंने इस समस्या से निपटने के लिए बैठक बुलाई. सभी बंदरों ने कहा, “अगर जल्द ही पानी की व्यवस्था नहीं हुई, तो हम सब मर जाएंगे. क्यों न हम झील का पानी इस्तेमाल करें, वहां का पानी कभी नहीं सूखता, लेकिन क्या वो राक्षस मानेगा?”
बंदरों के सरदार ने कहा, “एक तरीक़ा है, हम सबको उस राक्षस से विनती करनी चाहिए, शायद उसको हम पर तरस आ जाए और वो मान जाए
सभी बंदर झील के पास गए. बंदरों के सरदार ने झील के राक्षस को आवाज़ दी, “झील के मालिक, कृपया बाहर आकर हमारी विनती सुनें.”
थोड़ी देर में ही झील में से राक्षस बाहर निकला. उसकी आंखें गुस्से से लाल थीं. वो ज़ोर से चिंघाड़ते हुए बोला, “तुम लोग कौन हो और यहां क्यों आए हो? मैं आराम कर रहा था, मेरी नींद क्यों ख़राब की, इसका अंजाम जानते नहीं हो क्या?”
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राक्षस की बात सुनकर बंदरों का सरदार विनती करते हुए दयनीय आवाज़ में बोलता है, “सरदार, महाराज, आप शक्तिशाली और महान हैं. इस जंगल में बहुत बड़ा अकाल पड़ा है. भूख-प्यास से सभी जानवर बेहाल है. अगर पानी नहीं मिला, तो हम सब मर जाएंगे. हम आपसे इस झील का पानी पीने की इजाज़त चाहते हैं.”
राक्षस और गुस्से में बोलता है, “मैं तुम में से किसी को भी इस झील में घुसने नहीं दुंगा, अगर किसी ने हिम्मत की, तो मैं उसे खा जाऊंगा.” यह बोलकर राक्षस वापस झील में चला जाता है.
सभी बंदर बेहद निराश-हताश हो जाते हैं. लेकिन बंदरों का सरदार कुछ सोचता रहता है. उसे एक तरकीब सूझती है. वो सभी बंदरों को बोलता है, “तुम में से कुछ बंदर झील के पास ही एक गहरा गड्ढा खोदो और बाकी के बंदर मेरे साथ बांस के खेत में चलो.”
बंदरों का सरदार बंदरों को लेकर बांस के खेत में चला गया. वहां जाकर उसने बंदरों को खेत के कुछ लंबे व मज़बूत बांसों को काटने का आदेश दिया. बंदरों ने अपना काम कर दिया. वहीं दूसरी ओर झील के पास भी गड्ढा खोदा जा चुका था. बंदरों के सरदार ने बांस लिया और बांस का एक सिरा झील में डुबाया और दूसरा सिरे को गड्ढे की तरफ़ मोड़कर उसमें से ज़ोर-ज़ोर से तब तक सांस खींचता रहा, जब तक कि उसमें से पानी न आ गया हो. देखते ही देखते झील में से पानी उस गड्ढे में जमा होता गया. यह देखकर झील का राक्षस गुस्से में बाहर आया, लेकिन चूंकि सारे बंदर झील के बाहर थे, तो वो उनका कुछ नहीं बिगाड़ सका. राक्षस गुस्से में ही वापस झील में चला गया. बंदरों ने ख़ुशी-ख़ुशी झील का मीठा पानी खूब मज़े से पिया.
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सीख: बुद्धि बल से बड़ी होती है. चाहे कोई कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, बुद्धि व समझदारी के सामने उसका बल मायने नहीं रखता, इसलिए बड़ी से बड़ी मुसीबत के समय भी अपना संयम नहीं खोना चाहिए और बुद्धि से काम लेना चाहिए.

Sunday, 26 May 2019

पंचतंत्र की कहानी: आलसी ब्राह्मण (Panchtantra Ki Kahani: The Lazy Brahmin)

आलसी ब्राह्मण 

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बहुत समय की बात है. एक गांव में एक ब्राह्मण अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रहता था. उसकी ज़िंदगी में बेहद ख़ुशहाल थी. उसके पास भगवान का दिया सब कुछ था. सुंदर-सुशील पत्नी, होशियार बच्चे, खेत-ज़मीन-पैसे थे. उसकी ज़मीन भी बेहद उपजाऊ थी, जिसमें वो जो चाहे फसल उगा सकता था. लेकिन एक समस्या थी कि वो ख़ुद बहुत ही ज़्यादा आलसी था. कभी काम नहीं करता था. उसकी पत्नी उसे समझा-समझा कर थक गई थी कि अपना काम ख़ुद करो, खेत पर जाकर देखो, लेकिन वो कभी काम नहीं करता था. वो कहता, “मैं कभी काम नहीं करूंगा.” उसकी पत्नी उसके अलास्य से बेहद परेशान रहती थी, लेकिन वो चाहकर भी कुछ नहीं कर पाती थी. एक दिन एक साधु ब्राह्मण के घर आया और ब्राह्मण ने उसका ख़ूब आदर-सत्कार किया. ख़ुश होकर सम्मानपूर्वक उसकी सेवा की. साधु ब्राह्मण की सेवा से बेहद प्रसन्न हुआ और ख़ुश होकर साधु ने कहा कि “मैं तुम्हारे सम्मान व आदर से बेहद ख़ुश हूं, तुम कोई वरदान मांगो.” ब्राह्मण को तो मुंहमांगी मुराद मिल गई. उसने कहा, “बाबा, कोई ऐसा वरदान दो कि मुझे ख़ुद कभी कोई काम न करना पड़े. आप मुझे कोई ऐसा आदमी दे दो, जो मेरे सारे काम कर दिया करे.”
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बाबा ने कहा, “ठीक है, ऐसा ही होगा, लेकिन ध्यान रहे, तुम्हारे पास इतना काम होना चाहिए कि तुम उसे हमेशा व्यस्त रख सको.” यह कहकर बाबा चले गए और एक बड़ा-सा राक्षसनुमा जिन्न प्रकट हुआ. वो कहने लगा, “मालिक, मुझे कोई काम दो, मुझे काम चाहिए.”
ब्राह्मण उसे देखकर पहले तो थोड़ा डर गया और सोचने लगा, तभी जिन्न बोला, “जल्दी काम दो वरना मैं तुम्हें खा जाऊंगा.”
ब्राह्मण ने कहा, “जाओ और जाकर खेत में पानी डालो.” यह सुनकर जिन्न तुरंत गायब हो गया और ब्राह्मण ने राहत की सांस ली और अपनी पत्नी से पानी मांगकर पीने लगा. लेकिन जिन्न कुछ ही देर में वापस आ गया और बोला, “सारा काम हो गया, अब और काम दो.”
ब्राह्मण घबरा गया और बोला कि अब तुम आराम करो, बाकी काम कल करना. जिन्न बोला, “नहीं, मुझे काम चाहिए, वरना मैं तुम्हें खा जाऊंगा.
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ब्राह्मण सोचने लगा और बोला,“तो जाकर खेत जोत लो, इसमें तुम्हें पूरी रात लग जाएगी.” जिन्न गायब हो गया. आलसी ब्राह्मण सोचने लगा कि मैं तो बड़ा चतुर हूं. वो अब खाना खाने बैठ गया. वो अपनी पत्नी से बोला, “अब मुझे कोई काम नहीं करना पड़ेगा, अब तो ज़िंदगीभर का आराम हो गया.” ब्राह्मण की पत्नी सोचने लगी कि कितना ग़लत सोच रहे हैं उसके पति. इसी बीच वो जिन्न वापस आ गया और बोला, “काम दो, मेरा काम हो गया. जल्दी दो, वरना मैं तुम्हें खा जाऊंगा.”
ब्राह्मण सोचने लगा कि अब तो उसके पास कोई काम नहीं बचा. अब क्या होगा? इसी बीच ब्राह्मण की पत्नी बोली, “सुनिए, मैं इसे कोई काम दे सकती हूं क्या?”
ब्राह्मण ने कहा, “दे तो सकती हो, लेकिन तुम क्या काम दोगी?”
ब्राह्मण की पत्नी ने कहा, “आप चिंता मत करो. वो मैं देख लूंगी.”
वो जिन्न से मुखातिब होकर बोली, “तुम बाहर जाकर हमारे कुत्ते मोती की पूंछ सीधी कर दो. ध्यान रहे, पूंछ पूरी तरह से सीधी हो जानी चाहिए.”
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जिन्न चला गया. उसके जाते ही ब्राह्मण की पत्नी ने कहा, “देखा आपने कि आलस कितना ख़तरनाक हो सकता है. पहले आपको काम करना पसंद नहीं था और अब आपको अपनी जान बचाने के लिए सोचना पड़ रहा कि उसे क्या काम दें.”
ब्राह्मण को अपनी ग़लती का एहसास हुआ और वो बोला, “तुम सही कह रही हो, अब मैं कभी आलस नहीं करूंगा, लेकिन अब मुझे डर इस बात का है कि इसे आगे क्या काम देंगे, यह मोती की पूंछ सीधी करके आता ही होगा. मुझे बहुत डर लग रहा है. हमारी जान पर बन आई अब तो. यह हमें मार डालेगा.”
ब्राह्मण की पत्नी हंसने लगी और बोली, “डरने की बात नहीं, चिंता मत करो, वो कभी भी मोती की पूंछ सीधी नहीं कर पाएगा.”
वहां जिन्न लाख कोशिशों के बाद भी मोती की पूंछ सीधी नहीं कर पाया. पूंछ छोड़ने के बाद फिर टेढ़ी हो जाती थी. रातभर वो यही करता रहा.
ब्राह्मण की पत्नी ने कहा, “अब आप मुझसे वादा करो कि कभी आलस नहीं करोगे और अपना काम ख़ुद करोगे.”
ब्राह्मण ने पत्नी से वादा किया और दोनों चैन से सो गए.
अगली सुबह ब्राह्मण खेत जाने के लिए घर से निकला, तो देखा जिन्न मोती की पूंछ ही सीधी कर रहा था. उसने जिन्न को छेड़ते हुए पूछा, “क्या हुआ, अब तक काम पूरा नहीं हुआ क्या? जल्दी करो, मेरे पास तुम्हारे लिए और भी काम हैं.”
जिन्न बोला, “मालिक मैं जल्द ही यह काम पूरा कर लूंगा.”
ब्राह्मण उसकी बात सुनकर हंसते-हंसते खेत पर काम करने चला गया और उसके बाद उसने आलस हमेशा के लिए त्याग दिया.
सीख: आलस्य ही मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन है. अपनी मदद आप करने से ही कामयाबी मिलती है और आलस करने से ज़िंदगी में बड़ी मुसीबतें आ सकती हैं.

Sunday, 28 April 2019

पंचतंत्र की कहानी: व्यापारी का पतन और उदय! (Panchtantra Ki Kahani: Fall And Rise Of The Merchant)

 व्यापारी का पतन और उदय!

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पंचतंत्र की कहानी: व्यापारी का पतन और उदय! (Panchtantra ki kahani: Fall And Rise Of The Merchant)
एक शहर में कुशल व्यापारी रहता था. शहर के राजा को उसके गुणों के बारे में पता था और इसलिए उसने उसे राज्य का प्रशासक बना दिया. कुछ दिनों बाद व्यापारी ने अपनी लड़की का विवाह तय किया. इस उपलक्ष्य में उसने एक बहुत बड़े भोज का आयोजन किया. भोज में राजमहल में झाड़ू लगानेवाला सेवक भी शामिल हुआ था, मगर वह गलती से ऐसी कुर्सी पर बैठ गया, जो राज परिवार के लिए नियत थी. यह देखकर व्यापारी को बहुत ही क्रोध आया और वो आग-बबूला हो गया. उसने सेवक को भोज से धक्के देकर बाहर निकलवा दिया.
सेवक को बड़ी शर्मिंदगी हुई और उसने अपने अपमान का बदला लेने की ठानी. मन ही मन उसने व्यापारी को सबक सिखाने की सोची. एक दिन सेवक राजा के कक्ष में झाड़ू लगा रहा था. उसने राजा को देखकर बड़बड़ाना शुरू किया, “व्यापारी की यह मजाल कि वह रानी के साथ दुर्व्यवहार करे.” यह सुनकर राजा के कान खड़े हो गए और उसने सेवक से पूछा, “क्या तुमने व्यापारी को दुर्व्यवहार करते देखा है?”
सेवक भी बहुत चतुर था, वो राजा के पैरों पर गिर गया और बोला,  “मैं तो रातभर जुआ खेलता रहा और सो न सका, इसीलिए नींद में कुछ भी बड़बड़ा रहा हूं. मुझे माफ़ कर दीजिये.”
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राजा ने उस वक़्त तो कुछ नहीं कहा, लेकिन कहीं न कहीं उसके मन में शक का बीज तो बोया जा चुका था. राजा ने एक निर्णय लिया और व्यापारी के अधिकार कम कर दिए. महल में भी उसके घूमने पर पाबंदी लगा दी. अगले दिन जब व्यापारी ने महल में आने का प्रयास किया, तो उसे संतरियों ने रोक दिया. व्यापारी बहुत हैरान हुआ. तभी वहां खड़े उसी सेवक ने मज़े लेते हुए कहा, “संतरियों, जानते नहीं ये कौन हैं? ये बहुत प्रभावशाली हैं. ये चाहें तो तुम्हें बाहर भी फिंकवा सकते हैं, जैसे इन्होने अपने भोज में बहार फिंकवाया था.” सेवक के ताने सुनते ही व्यापारी को सारा माजरा समझते देर न लगी.
व्यापारी चतुर तो था ही, उसने इस समस्या का हल खोज लिया और कुछ दिनों के बाद सेवक को अपने घर बुलाया, उसकी खूब आव-भगत की और उपहार भी दिए. उसके बाद बड़ी विनम्रता से भोजवाले दिन के अपने व्यव्हार के लिए क्षमा मांग ली. सेवक बहुत खुश हुआ और उसने कहा कि आप चिंता न करें, “मैं राजा से आपका खोया हुआ सम्मान ज़रूर वापस दिलाउंगा.”
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अगले दिन राजा के कक्ष में झाड़ू लगाते हुआ वो फिर से बड़बड़ाने लगा “हे भगवान, हमारा राजा तो इतना मूर्ख है कि वह गुसलखाने में खीरे खाता है.” यह सुनकर राजा क्रोधित हो उठा और बोला, “मूर्ख, तुम्हारी ये हिम्मत? तुम अगर मेरे कक्ष के सेवक न होते, तो तुम्हें नौकरी से निकाल देता.” सेवक फिर से राजा के चरणों में गिर गया और दुबारा कभी न बड़बड़ाने की कसम खाई.
राजा ने भी सोचा कि जब यह मेरे बारे में इतनी गलत बातें बोल सकता है तो इसने व्यापारी के बारे में भी गलत बोला होगा, जिसकी वजह से मैंने उसे बेकार में दंड दिया. फिर क्या था, अगले दिन ही राजा ने व्यापारी को महल में उसकी खोयी प्रतिष्ठा वापस दिला दी.
सीख: इस कहानी से २ सीख मिलती हैं-
1. चाहे व्यक्ति बड़ा हो या छोटा, हमें हर किसी के साथ समान भाव से ही पेश आना चाहिए, क्यूंकि जैसा व्यव्हार आप खुद के साथ होना पसंद करेंगे वैसा ही व्यव्हार दूसरों के साथ भी करें.
2. दूसरी ये कि हमें सुनी-सुनाई बातों पर यकीन नहीं करना चाहिए. पूरी तरह जाँच-पड़ताल करके ही निर्णय लेना चाहिए.

Sunday, 10 February 2019

पंचतंत्र की कहानी- झगड़ालू मे़ंढक (Panchtantra Story- Frog & Snake)

 झगड़ालू मे़ंढक 

Panchtantra Story- Frog & Snake
एक कुएं में ढेर सारे मेंढ़क रहते थे. मे़ंढकों के राजा का नाम था गंगदत्त. वह बहुत झगड़ालू स्वभाव का था. आसपास दो-तीन और कुए थे जिनमें भी मेंढक रहते थे. हर कुएं के मेंढ़कों का अपना राजा था. हर राजा से किसी न किसी बात पर गंगदत्त का झगड़ा होता रहता था. वह अपनी बेवकूफी कोई ग़लत काम करने लगता और कोई बुद्धिमान मेंढ़क उसे रोकने की कोशिश करता, तो मौक़ा मिलते ही वह अपने पाले हुए गुंडे मेंढ़कों से सलाह देने वाले की पिटाई करवा देता. कुएं के मे़ंढक गंगदत्त के इस व्यवहार से बहुत ग़ुस्से में थे. दरअसल, गंगदत्त अपनी हर मुसीबत के लिए दूसरों को दोष देता रहता था.
एक दिन गंगदत्त की पास के पड़ोसी मे़ंढक राजा से खूब लड़ाई हुई. जमकर तू-तू मैं-मैं हुई. गंगदत्त ने अपने कुएं में आकर बाकी मेंढ़कों को बताया कि पड़ोसी राजा ने उसका अपमान किया है और इस अपमान का बदला लेने के लिए उसने अपने मे़ंढकों को पड़ोसी कुएं पर हमला करने को कहा, मगर सब जानते थे कि झगड़ा गंगदत्त ने ही शुरू किया होगा. इसलिए कुछ बुद्धिमान मेंढ़कों ने एकजुट होकर एक स्वर में कहा, “राजन, पड़ोसी कुएं में हमसे दुगुने मेंढ़क हैं. वे स्वस्थ और हमसे ज़्यादा ताकतवर हैं. हम यह लड़ाई नहीं लड़ेंगे.”
गंगदत्त सन्न रह गया और बुरी तरह तिलमिला गया. मन ही मन में उसने ठान ली कि इन गद्दारों को भी सबक सिखाना होगा. गंगदत्त ने अपने बेटों को बुलाकर भड़काया, “बेटा, पड़ोसी राजा ने तुम्हारे पिता का घोर अपमान किया है. जाओ, उस राजा के बेटों की ऐसी पिटाई करो कि वे पानी मांगने लग जाएं.”
गंगदत्त के बेटे एक-दूसरे का मुंह देखने लगे. आख़िर बड़े बेटे ने कहा, “पिताश्री, आपने कभी हमें टर्राने की इजाज़त नहीं दी. टर्राने से ही मेंढ़कों में बल आता हैं, हौसला आता हैं और जोश आता है. आप ही बताइए कि बिना हौसले और जोश के हम किसी की क्या पिटाई करेंगे?”
अब गंगदत्त सबसे चिढ़ गया. एक दिन वह कुढ़ता और बड़बड़ाता कुएं से बाहर निकल इधर-उधर घूमने लगा. उसने एक भयंकर नाग को पास ही बने अपने बिल में घुसते देखा. ये देखकर उसकी आंखें चमकी. जब अपने दुश्मन बन जाए, तो दुश्मन को दोस्त बना लेना चाहिए. यही सोचकर वह बिल के पास जाकर बोला, “नागदेव, मेरा प्रणाम.”
नागदेव फुफकारें, “अरे मेंढ़क मैं तुम्हारा बैरी हूं, तुम्हें खा सकता हूं और तू मेरे ही बिल के आगे आकर मुझे आवाज़ दे रहा है.”
गंगदत्त टर्राया, “हे नाग, कभी-कभी शत्रुओं से ज़्यादा अपने दुख देने लगते हैं. मेरा अपनी जातिवालों और सगों ने इतना घोर अपमान किया हैं कि उन्हें सबक सिखाने के लिए मुझे तुम जैसे शत्रु के पास सहायता मांगने आना पड़ा. तुम मेरी दोस्ती स्वीकार करो और मज़े करो.”
नाग ने बिल से अपना सिर बाहर निकाला और बोला, “मज़े, कैसे मज़े?”
गंगदत्त ने कहा, “मैं तुम्हें इतने मेंढ़क खिलाऊंगा कि तुम अजगर जैसे मोटे हो जाओगे.”
नाग ने शंका व्यक्त की, “पानी में मैं जा नहीं सकता. कैसे पकड़ूंगा मेंढ़क?”
गंगदत्त ने ताली बजाई, “नाग भाई, यहीं तो मेरी दोस्ती तुम्हारे काम आएगी. मैंने पड़ोसी राजाओं के कुओं पर नजर रखने के लिए अपने जासूस मेंढ़कों से गुप्त सुरंगें खुदवा रखी हैं. हर कुएं तक उनका रास्ता जाता है. सुरंगें जहां मिलती हैं वहां एक कक्ष है, तुम वहां रहना और जिस-जिस मेंढ़क को खाने के लिए कहूं, उन्हें खाते जाना.”
नाग गंगदत्त से दोस्ती के लिए तैयार हो गया, क्योंकि उसमें उसका लाभ ही लाभ था. एक मूर्ख बदले की भावना में अंधे होकर अपनों को ही दुश्मन के हवाले करने को तैयार हो, तो दुश्मन क्यों न इसका लाभ उठाए?
नाग गंगदत्त के साथ सुरंग कक्ष में जाकर बैठ गया. गंगदत्त ने पहले सारे पड़ोसी मेंढ़क राजाओं और उनकी प्रजाओं को खाने के लिए कहा. नाग कुछ ही हफ़्ते में सारे दूसरे कुओं के मेंढ़क को सुरंग के रास्ते जा-जाकर खा गया. जब सारे मेंढ़क समाप्त हो गए, तो नाग गंगदत्त से बोला, “अब किसे खाऊं? जल्दी बता. चौबीस घंटे पेट फुल रखने की आदत पड़ गई है.”
गंगदत्त ने कहा, “अब मेरे कुएं के सभी स्याने और बुद्धिमान मेंढ़कों को खाओ.”
जब सारे बुद्धिमान मेंढ़क ख़त्म हो गए, तो प्रजा की बारी आई, गंगदत्त ने सोचा प्रजा की ऐसी तैसी. हर समय कुछ न कुछ शिकायत करती रहती है. पूरी प्रजा का सफ़ाया करने के बाद नाग ने खाना मांगा, तो गंगदत्त बोला, “नागमित्र, अब केवल मेरा कुनबा और मेरे मित्र ही बचे हैं. खेल ख़त्म और मेंढ़क हजम.
नाग ने फन फैलाया और फुफकारने लगा, “मेंढ़क, मैं अब कहीं नहीं जानेवाला. तू अब मेरे खाने का इंतज़ाम कर वरना हिस्सा साफ़.”
गंगदत्त की बोलती बंद हो गई. उसने नाग को अपने मित्र खिलाए फिर उसके बेटे नाग के पेट में गए. गंगदत्त ने सोचा कि मैं और मेंढ़की ज़िंदा रहे तो बेटे और पैदा कर लेंगे. बेटे खाने के बाद नाग फुफकारा “और खाना कहां हैं? गंगदत्त ने डरकर मेंढ़की की ओर इशार किया. गंगदत्त ने स्वयं के मन को समझाया “चलो बूढ़ी मेंढ़की से छुटकारा मिला. नई जवान मेंढकी से विवाह कर नया संसार बसाऊंगा।फ
मेंढ़की को खाने के बाद नाग ने मुंह फाड़ा “खाना.”
गंगदत्त ने हाथ जोड़कर कहा, “अब तो केवल मैं बचा हूं, तुम्हारा दोस्त गंगदत्त. अब लौट जाओ.”
नाग बोला मतू कौन-सा मेरा मामा लगता हैं और उसे भी खा गया.
सीख- अपनों से बदला लेने के लिए जो शत्रु का साथ लेता है उसका अंत निश्‍चित है.

Sunday, 3 February 2019

पंचतंत्र की कहानी- एकता का बल (Panchtantra Story- Unity Is Strength)

 एकता का बल 

Panchtantra Story
बहुत समय पहले की बात है, कबूतरों का एक झुंड खाने की तलाश में आसमान में उड़ता हुआ जा रहा था. कुछ दूर जाने के बाद ग़लती से भटककर ये झुंड ऐसे प्रदेश के ऊपर से गुजरा, जहां भयंकर अकाल पड़ा था. कबूतरों का सरदार चिंतित हो गया. कबूतरों के शरीर की शक्ति समाप्त होती जा रही थी. जल्द ही कुछ दाना मिलना ज़रूरी था. झुंड का युवा कबूतर सबसे नीचे उड़ रहा था. भोजन नज़र आने पर उसे ही बाकी दल को सूचित करना था. बहुत देर उड़ने के बाद वो लोग सूखाग्रस्त क्षेत्र से बाहर निकल आए. वहां उन्हें नीचे हरियाली नज़र आने लगी. ये देखकर उन्हें लगा कि अब भोजन मिल जाएगा. दल का युवा कबूतर और नीचे उड़ान भरने लगा. तभी उसे नीचे खेत में बहुत सारा अन्न बिखरा नज़र आया. वह बोला, “चाचा, नीचे एक खेत में बहुत सारा दाना बिखरा हुआ है. हम सबका पेट भर जाएगा.”
सरदार ने सूचना पाते ही कबूतरों को नीचे उतरकर खेत में बिखरा दाना चुनने का आदेश दिया. सारा दल नीचे उतरा और दाना चुनने लगा. दरअसल, वह दाना एक बहेलिए ने बिखेर रखा था ताकि वो पक्षियों का शिकार कर सके. नीचे दाना डालने के साथ ही उसने ऊपर पेड़ पर जाल डाला हुआ था. जैसे ही कबूतरों का झुंड दाना चुगने लगा, जाल उनपर आ गिरा. सारे कबूतर फंस गए.
कबूतरों के सरदार ने माथा पीटा, ‘ओह! यह तो हमें फंसाने के लिए फैलाया गया जाल था. भूख ने मेरी अक्ल पर पर्दा डाल दिया था. मुझे सोचना चाहिए था कि इतना अन्न बिखरे होने के पीछे कोई वजह ज़रूर होगी, मगर अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत?”
एक कबूतर रोने लगा, “अब हम सब मारे जाएंगे.
बाकी कबूतर तो हिम्मत हार बैठे थे, पर सरदार गहरी सोच में डूबा था. एकाएक उसने कहा, “सुनो, जाल मज़बूत ज़रूरी है, लेकिन इसमें इतनी भी शक्ति नहीं कि एकता की शक्ति को हरा सके. हम अपनी सारी शक्ति को जोड़े तो मौत के मुंह में जाने से बच सकते हैं.”
युवा कबूतर फड़फड़ाया, “चाचा! साफ़-साफ़ बताओ तुम क्या कहना चाहते हो. जाल में फंसकर हम असहाय हो गए हैं, शक्ति कैसे जोडे?”
सरदार बोला, “तुम सब चोंच से जाल को पकडो, फिर जब मैं फुर्र कहूं तो एक साथ ज़ोर लगाकर उड़ना.”
सबने ऐसा ही किया. तभी जाल बिछाने वाला बहेलियां आता नज़र आया. जाल में कबूतरों को फंसा देखकर वह बहुत ख़ुश हुआ. उपने डंडे को मज़बूती से पकड़े वह जाल की ओर दौड़ा.
बहेलिया जाल से कुछ ही दूरी पर था कि कबूतरों का सरदार बोला, “फुर्रर्रर्र!”
सारे कबूतर एकसाथ ज़ोर लगाकर उड़े, तो पूरा जाल हवा में ऊपर उठा और सारे कबूतर जाल को लेकर ही उड़ने लगे. कबूतरों को जाल सहित उड़ते देखकर बहेलिया हैरान रह गया. कुछ देर बाद संभला, तो जाल के पीछे दौड़ने लगा. कबूतरों के सरदार ने बहेलिए को नीचे जाल के पीछे दौड़ते देखा, तो उसका इरादा समझ गया. सरदार भी जानता था कि कबूतरों के लिए जाल सहित ज़्यादा देर उड़ते रहना संभव नहीं होगा, पर सरदार के पास इसका उपाय था. पास ही एक पहाड़ी पर बिल बनाकर उसका एक चूहा मित्र रहता था. सरदार ने कबूतरों को तेज़ी से पहाड़ी की ओर उड़ने का आदेश दिया. पहाड़ी पर पहुंचते ही सरदार का संकेत पाकर जाल समेत कबूतर चूहे के बिल के निकट उतर गए.
सरदार ने मित्र चूहे को आवाज़ दी. सरदार ने संक्षेप में चूहे को सारी घटना बताई और जाल काटकर उन्हें आज़ाद करने के लिए कहा. कुछ ही देर में चूहे ने वह जाल काट दिया. सरदार ने अपने मित्र चूहे को धन्यवाद दिया और सारा कबूतर दल आकाश की ओर आज़ादी की उड़ान भरने लगा.
सीख- एकजुट होकर बड़ी से बड़ी विपत्ति का सामना किया जा सकता है.

Sunday, 20 January 2019

पंचतंत्र की कहानी- चतुर खरगोश और शेर (Panchtantra Story- The Cunning Hare And The Lion)

चतुर खरगोश और शेर

Hindi Short Story
किसी घने जंगल में एक बहुत बड़ा शेर रहता था. वह रोज़ शिकार पर निकलता और एक-दो नहीं, कई-कई जानवरों का काम तमाम देता. जंगल के जानवर डरने लगे कि अगर शेर इसी तरह शिकार करता रहा, तो एक दिन ऐसा आएगा कि जंगल में कोई जानवर ही नहीं बचेगा.
सारे जंगल में सनसनी फैल गई. शेर को रोकने के लिये कोई न कोई उपाय करना ज़रूरी था. एक दिन जंगल के सारे जानवर इकट्ठा हुए और इस प्रश्‍न पर विचार करने लगे. अंत में उन्होंने तय किया कि वे सब शेर के पास जाकर उनसे इस बारे में बात करेंगे. दूसरे दिन जानवरों का एक दल शेर के पास पहुंचा. उनको अपनी ओर आते देख शेर घबरा गया और उसने गरजकर पूछा, “क्या बात है? तुम सब यहां क्यों आए हो?”
जानवर दल के नेता ने कहा, “महाराज, हम आपके पास निवेदन करने आए हैं. आप राजा हैं और हम आपकी प्रजा. जब आप शिकार करने निकलते हैं, तो बहुत जानवर मार डालते हैं. आप सबको खा भी नहीं पाते. इस तरह से हमारी संख्या कम होती जा रही है. अगर ऐसा ही चलता रहा, तो कुछ ही दिनों में जंगल में आपके सिवाय और कोई नहीं बचेगा. प्रजा के बिना राजा भी कैसे रह सकता है? यदि हम सभी मर जाएंगे, तो आप भी राजा नहीं रहेंगे. हम चाहते हैं कि आप सदा हमारे राजा बने रहें. आपसे हमारी विनती है कि आप अपने घर पर ही रहा करें. हम हर रोज़ स्वयं आपके खाने के लिए एक जानवर भेज दिया करेंगे. इस तरह से राजा और प्रजा दोनो ही चैन से रह सकेंगे.” शेर को लगा कि जानवरों की बात में सच्चाई है. उसने पलभर सोचा फिर बोला, “अच्छी बात है, मैं तुम्हारे सुझाव को मान लेता हूं, लेकिन याद रखना, अगर किसी भी दिन तुमने मेरे खाने के लिए पूरा भोजन नहीं भेजा, तो मैं जितने जानवर चाहूंगा, मार डालूंगा.” जानवरों के पास और कोई चारा तो था नहीं, इसलिए उन्होंने शेर की शर्त मान ली और अपने-अपने घर चले गए.
उस दिन से हर रोज़ शेर के खाने के लिये एक जानवर भेजा जाने लगा. इसके लिये जंगल में रहने वाले सब जानवरों में से एक-एक जानवर, बारी-बारी से चुना जाता था. कुछ दिन बाद खरगोशों की बारी भी आ गई. शेर के भोजन के लिए एक नन्हें से खरगोश को चुना गया. वह खरगोश जितना छोटा था, उतना ही चतुर भी था. उसने सोचा, बेकार में शेर के हाथों मरना मूर्खता है. अपनी जान बचाने का कोई न कोई उपाय अवश्य करना चाहिए, और हो सके तो कोई ऐसी तरक़ीब ढूंढ़नी चाहिए जिससे सभी को इस मुसीबत से सदा के लिए छुटकारा मिल जाए. आख़िर उसने एक तरक़ीब सोच ही ली.
खरगोश धीरे-धीरे आराम से शेर के घर की ओर चल पड़ा. जब वह शेर के पास पहुंचा तो बहुत देर हो चुकी थी.
भूख के मारे शेर का बुरा हाल हो रहा था. जब उसने स़िर्फ एक छोटे-से खरगोश को अपनी ओर आते देखा, तो ग़ुस्से से बौखला उठा और गरजकर बोला, “किसने तुम्हें भेजा है? एक तो पिद्दी जैसे हो, दूसरे इतनी देर से आ रहे हो. जिन बेवकूफों ने तुम्हें भेजा है मैं उन सबको ठीक करूंगा. एक-एक का काम तमाम न किया, तो मेरा नाम भी शेर नहीं.”
नन्हे खरगोश ने आदर से ज़मीन तक झुककर कहा, “महाराज, अगर आप कृपा करके मेरी बात सुन लें, तो मुझे या और जानवरों को दोष नहीं देंगे. वे तो जानते थे कि एक छोटा-सा खरगोश आपके भोजन के लिए पूरा नहीं पड़ेगा, इसलिए उन्होंने छह खरगोश भेजे थे, लेकिन रास्ते में हमें एक और शेर मिल गया. उसने पांच खरगोशों को मारकर खा लिया.”
यह सुनते ही शेर दहाड़कर बोला, “क्या कहा? दूसरा शेर? कौन है वह? तुमने उसे कहां देखा?”
“महाराज, वह तो बहुत ही बड़ा शेर है.” खरगोश ने कहा, “वह ज़मीन के अंदर बनी एक बड़ी गुफा में से निकला था. वह तो मुझे ही मारने जा रहा था. पर मैंने उससे कहा, सरकार, आपको पता नहीं कि आपने क्या अंधेर कर दिया है. हम सब अपने महाराज के भोजन के लिए जा रहे थे, लेकिन आपने उनका सारा खाना खा लिया है. हमारे महाराज ऐसी बातें सहन नहीं करेंगे. वे ज़रूर यहां आकर आपको मार डालेंगे.”
इसपर उसने पूछा, “कौन है तुम्हारा राजा?” मैंने जवाब दिया, “हमारा राजा जंगल का सबसे बड़ा शेर है.”
“महाराज, मेरे ऐसा कहते ही वह ग़ुस्से से लाल-पीला होकर बोला बेवकूफ इस जंगल का राजा स़िर्फ मैं हूं. यहां सब जानवर मेरी प्रजा हैं. मैं उनके साथ जैसा चाहूं वैसा कर सकता हूंं. जिस मूर्ख को तुम अपना राजा कहते हो उस चोर को मेरे सामने हाजिर करो. मैं उसे बताऊंगा कि असली राजा कौन है. महाराज इतना कहकर उस शेर ने आपको लिवाने के लिए मुझे यहां भेज दिया.”
खरगोश की बात सुनकर शेर को बड़ा ग़ुस्सा आया और वह बार-बार गरजने लगा. उसकी भयानक गरज से सारा जंगल दहलने लगा. “मुझे फौरन उस मूर्ख का पता बताओ.” शेर ने दहाड़कर कहा, “जब तक मैं उसे जान से नहीं मार दूंगा, मुझे चैन नहीं मिलेगा.” “बहुत अच्छा महाराज,” खरगोश ने कहा, “मौत ही उस दुष्ट की सज़ा है. अगर मैं और बड़ा और मज़बूत होता, तो मैं ख़ुद ही उसके टुकड़े-टुकड़े कर देता.”
“चलो, रास्ता दिखाओ” शेर ने कहा, “फौरन बताओ किधर चलना है?”
“इधर आइये महाराज, इधर,” खरगोश रास्ता दिखाते हुआ शेर को एक कुएं के पास ले गया और बोला, “महाराज, वह दुष्ट शेर ज़मीन के नीचे किले में रहता है. जरा सावधान रहिएगा. किले में छुपा दुश्मन ख़तरनाक होता है.”
“मैं उससे निपट लूंगा.” शेर ने कहा, “तुम यह बताओ कि वह है कहां?”
“पहले जब मैंने उसे देखा था तब तो वह यहीं बाहर खड़ा था. लगता है आपको आता देखकर वह किले में घुस गया है. आइए मैं आपको दिखाता हूं.”
खरगोश ने कुएं के नज़दीक आकर शेर से अंदर झांकने के लिए कहा. शेर ने कुएं के अंदर झांका, तो उसे कुएं के पानी में अपनी परछाईं दिखाई दी.
परछाईं को देखकर शेर ज़ोर से दहाड़ा. कुएं के अंदर से आती हुई अपनी ही दहाड़ने की गूंज सुनकर उसने समझा कि दूसरा शेर भी दहाड़ रहा है. दुश्मन को तुरंत मार डालने के इरादे से वह फौरन कुएं में कूद पड़ा.
कूदते ही पहले तो वह कुएं की दीवार से टकराया फिर धड़ाम से पानी में गिरा और डूबकर मर गया. इस तरह चतुराई से शेर से छुट्टी पाकर नन्हा खरगोश घर लौटा. उसने जंगल के जानवरों को शेर के मारे जाने की कहानी सुनाई. दुश्मन के मारे जाने की ख़बर से सारे जंगल में ख़ुशी फैल गई. जंगल के सभी जानवर खरगोश की जय-जयकार करने लगे

Sunday, 13 January 2019

पंचतंत्र की कहानी- चापलूस मंडली (Panchtantra Story- Fawning Coterie)

 चापलूस मंडली 

Panchtantra Story
जंगल में एक शेर रहता था. उसके चार सेवक थे चील, भेड़िया, लोमड़ी और चीता. चील दूर-दूर तक उड़कर समाचार लाती. चीता राजा का अंगरक्षक था. सदा उसके पीछे चलता. लोमडी शेर की सेक्रेटरी थी. भेड़िया गृहमंत्री था. उनका असली काम तो शेर की चापलूसी करना था. इस काम में चारों माहिर थे. इसलिए जंगल के दूसरे जानवर उन्हें चापलूस मंडली कहकर पुकारते थे. शेर शिकार करता. जितना खा सकता वह खाकर बाकी अपने सेवकों के लिए छोड़ जाया करता था. उससे मज़े में चारों का पेट भर जाता. एक दिन चील ने आकर चापलूस मंडली को सूचना दी “भाईयों! सड़क के किनारे एक ऊंट बैठा है.”
भेड़िया चौंका “ऊंट! किसी काफिले से बिछड़ गया होगा.”
चीते ने जीभ चटकाई और कहा “हम शेर को उसका शिकार करने को राज़ी कर लें तो कई दिन दावत उड़ा सकते हैं.”
लोमड़ी ने घोषणा की “ शेर को राज़ी करना मेरा काम रहा.”
लोमड़ी शेर राजा के पास गई और अपनी ज़ुबान में मिठास घोलकर बोली “महाराज, दूत ने ख़बर दी है कि एक ऊंट सड़क किनारे बैठा है. मैंने सुना है कि मनुष्य के पाले जानवर के मांस का स्वाद ही कुछ और होता है. बिल्कुल राजा-महाराजाओं के काबिल. आप आज्ञा दें तो आपके शिकार का ऐलान कर दूं?”
शेर लोमड़ी की मीठी बातों में आ गया और चापलूस मंडली के साथ चील द्वारा बताई जगह जा पहुंचा. वहां एक कमज़ोर-सा ऊंट सड़क किनारे निढ़ाल बैठा था. उसकी आंखें पीली पड़ चुकी थीं. उसकी हालत देखकर शेर ने पूछा “क्यों भाई तुम्हारी यह हालात कैसे हुई?”
ऊंट कराहता हुआ बोला “जंगल के राजा! आपको नहीं पता इंसान कितना निर्दयी होता हैं. मैं एक ऊंटों के काफिले में एक व्यापार का माल ढो रहा था. रास्ते में मैं बीमार हो गया. माल ढोने लायक नहीं रहा, तो उसने मुझे यहां मरने के लिए छोड़ दिया. आप ही मेरा शिकार कर मुझे मुक्ति दीजिए.”
ऊंट की कहानी सुनकर शेर को दुख हुआ. अचानक उसके दिल में राजाओं जैसी उदारता दिखाने की ज़ोरदार इच्छा हुई. शेर ने कहा “ऊंट, तुम्हें कोई जंगली जानवर नहीं मारेगा. मैं तुम्हें अभय देता हूं. तुम हमारे साथ चलोगे और उसके बाद हमारे साथ ही रहोगे.”
चापलूस मंडली के चेहरे लटक गए. भेड़िया फुसफुसाया “ठीक है. हम बाद में इसे मरवाने की कोई तरक़ीब निकाल लेंगे. फिलहाल शेर का आदेश मानने में ही भलाई है.”
इस तरह ऊंट उनके साथ जंगल में आया. कुछ ही दिनों में हरी घास खाने व आराम करने से वह स्वस्थ हो गया. शेर राजा के प्रति ऊंट बहुत कृतज्ञ हुआ. शेर को भी ऊंट का निस्वार्थ प्रेम और भोलापन भाने लगा. ऊंट के स्वस्थ होने पर शेर की शाही सवारी ऊंट के ही आग्रह पर उसकी पीठ पर निकलने लगी. वह चारों को पीठ पर बिठाकर चलता.
एक दिन चापलूस मंडली के आग्रह पर शेर ने हाथी पर हमला कर दिया. दुर्भाग्य से हाथी पागल निकला. शेर को उसने सूंड से उठाकर पटक दिया. शेर उठकर बच निकलने में सफल तो हो गया, पर उसे बहुत चोट लगी.
शेर लाचार होकर बैठ गया. शिकार कौन करता? कई दिन न शेर ने कुछ खाया और न सेवकों ने. कितने दिन भूखे रहा जा सकता हैं? लोमड़ी बोली “हद हो गई. हमारे पास एक मोटा ताज़ा ऊंट है और हम भूखे मर रहे हैं.”
चीते ने ठंडी सांस भरी “क्या करें? शेर ने उसे अभयदान जो दे रखा है. देखो तो ऊंट की पीठ का कूबड़ कितना बड़ा हो गया है. चर्बी ही चर्बी भरी है इसमें.”
भेड़िए के मुंह से लार टपकने लगी “ऊंट को मरवाने का यही मौक़ा है दिमाग़ लड़ाकर कोई तरक़ीब सोचो.”
लोमड़ी ने धूर्त स्वर में सूचना दी “तरक़ीब तो मैंने सोच रखी है. हमें एक नाटक करना पड़ेगा.”
सब लोमड़ी की तरक़ीब सुनने लगे. योजना के अनुसार चापलूस मंडली शेर के पास गई. सबसे पहले चील बोली “महाराज, आपका भूखे पेट रहकर इस तरह मरना मुझसे नहीं देखा जाता. आप मुझे खाकर भूख मिटाइए.”
लोमड़ी ने उसे धक्का दिया “चल हट! तेरा मांस तो महाराज के दांतों में फंसकर रह
जाएगा. महाराज, आप मुझे खाइए.”
भेड़िया बीच में कूदा “तेरे शरीर में बालों के सिवा है ही क्या? महाराज! मुझे अपना भोजन बनाएंगे.”
अब चीता बोला “नहीं! भेड़िए का मांस खाने लायक़ नहीं होता. मालिक, आप मुझे खाकर अपनी भूख शांत कीजिए.”
चापलूस मंडली का नाटक अच्छा था. अब ऊंट को तो कहना ही पड़ा “नहीं महाराज, आप मुझे मारकर खा जाइए. मेरा तो जीवन ही आपका दान दिया हुआ है. मेरे रहते आप भूखों मरें, यह नहीं होगा.”
चापलूस मंडली यही तो चाहती थी. सभी एक स्वर में बोले “यही ठीक रहेगा, महाराज! अब तो ऊंट ख़ुद ही कह रहा है.”
चीता बोला “महाराज! आपको संकोच हो तो हम इसे मार दें?”
चीता व भेड़िया एकसाथ ऊंट पर टूट पड़ें और ऊंट मारा गया.
सीख- चापलूसों की दोस्ती हमेशा ख़तरनाक होती है.