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Sunday, 27 October 2019

नाग और चीटियां

एक घने जंगल में एक बड़ा-सा नाग रहता था। वह चिड़ियों के अंडे, मेढ़क तथा छिपकलियों जैसे छोटे-छोटे जीव-जंतुओं को खाकर अपना पेट भरता था। रातभर वह अपने भोजन की तलाश में रहता और दिन निकलने पर अपने बिल में जाकर सो रहता। धीरे-धीरे वह मोटा होता गया। वह इतना मोटा हो गया कि बिल के अंदर-बाहर आना-जाना भी दूभर हो गया।
आखिरकार, उसने बिल को छोड़कर एक विशाल पेड़ के नीचे रहने की सोची लेकिन वहीं पेड़ की जड़ में चींटियों की बांबी थी और उनके साथ रहना नाग के लिए असंभव था। सो, वह नाग उन चींटियों की बांबी के निकट जाकर बोला, ‘‘मैं सर्पराज नाग हूँ, इस जंगल का राजा। मैं तुम चींटियों को आदेश देता हूं कि यह जगह छोड़कर चले जाओ।''
वहां और भी जानवर थे, जो उस भयानक सांप को देखकर डर गए और जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे लेकिन चींटियों ने नाग की इस धमकी पर कोई ध्यान न दिया।
वे पहले की तरह अपने काम-काज में जुटी रहीं। नाग ने यह देखा तो उसके क्रोध की सीमा न रही।
वह गुस्से में भरकर बांबी के निकट जा पहुँचा। यह देख हजारों चींटियाँ उस बांबी से निकल, नाग से लिपटकर उसे काटने लगीं। उनके डंकों से परेशान नाग बिलबिलाने लगा। उसकी पीड़ा असहनीय हो चली थी और शरीर पर घाव होने लगे। नाग ने चींटियों को हटाने की बहुत कोशिश की लेकिन असफल रहा। कुछ ही देर में उसने वहीं तड़प-तड़प कर जान दे दी।

शिक्षा- बुद्धि से कार्य करने पर शक्तिशाली शत्रु को भी ध्वस्त किया जा सकता है।

Sunday, 22 September 2019

पंचतंत्र की कहानी: दो सांपों की कहानी (Panchtantra Ki Kahani: The Tale Of Two Snakes)

 दो सांपों की कहानी 

देवशक्ति  नाम का एक राजा था, वो बेहद परेशान था और उसकी परेशानी की वजह थी, उसका बेटा, जो बहुत कमज़ोर था. वह दिन व दिन और कमज़ोर होता जा रहा था.
कई प्रसिद्ध चिकित्सक भी उसे ठीक नहीं कर पा रहे थे. दूर-दराज़ के कई मशहूर चिकित्सकों को भी बुलाया गया, लेकिन कोई फ़ायदा नहीं हुआ, क्योंकि उसके पेट में सांप था.
Panchtantra Ki Kahani, The Tale Of Two Snakes
वह राजकुमार भी अपनी कमज़ोरी और सेहत को लेकर बेहद परेशान था. अपने पिता को दुखी देखकर बहुत निराश भी था. अपनी ज़िंदगी से तंग आकर एक रात वह महल छोड़कर कहीं दूसरे राज्य में चला गया. उसने एक मंदिर में रहना शुरू कर दिया और अन्य लोग जो कुछ भी उसे दान देते थे,  उसी से उसका काम चल रहा था. वो वही खा-पी लेता था.
इस नए राज्य का जो राजा था, उसकी दो जवान बेटियां थीं. वे बेहद अच्छे संस्कारी और ख़ूबसूरत थीं. बेटियों में से एक ने कहा, पिताजी, आपके आशीर्वाद से हमें दुनिया के सभी सुख प्राप्त हैं, वहीं दूसरी बेटी ने कहा इंसान को स़िर्फ अपने कार्यों का ही फल मिलता है. दूसरी बेटी की इस टिप्पणी से राजा क्रोधित हो गया. एक दिन उसने अपने मंत्रियों को बुलाकर कहा कि इसे ले जाओ और इसका महल के बाहर किसी के भी साथ इसका विवाह कर दो. यह अपने कार्यों का फल भोगेगी.
मंत्रियों ने मंदिर में रह रहे युवा राजकुमार से उसका विवाह कर दिया, क्योंकि उन्हें कोई और नहीं मिल रहा था. राजकुमारी अपने पति को भगवान मानती थी. वह ख़ुश थी और अपनी शादी से संतुष्ट थी. उन्होंने देश के एक अलग हिस्से की यात्रा करने का निर्णय लिया, क्योंकि मंदिर में घर बनाना सही नहीं था.

Panchtantra Ki Kahani, The Tale Of Two Snakes
चलते-चलते राजकुमार थक गया था और एक पेड़ की छाया के नीचे आराम करने लगा. राजकुमारी ने पास के बाज़ार से कुछ भोजन लाने का फैसला किया. जब वह लौटकर आई, तो उसने अपने पति को सोया देखा और पास के एक बिल से उभरते सांप को भी देखा. उसकी नज़र पति के मुख पर गई, तो उसने अपने पति के मुंह से उभरते हुए एक और सांप को देखा. वह छिपकर सब देखने लगी.
पेड़ के पास  के सांप ने दूसरे सांप से कहा,  तुम इस प्यारे राजकुमार को इतना दुःख क्यों दे रहे हो? इस तरह तुम खुद का जीवन खतरे में डाल रहे हो. अगर राजकुमार जीरा और सरसों का गर्म पानी पी लेगा, तो तुम मर जाओगे.
राजकुमार के मुंह के सांप ने कहा, तुम सोने की दो घड़ों की रक्षा अपनी ज़िंदगी को ख़तरे में डालकर भी क्यों करते हैं? इसकी तुमको कोई ज़रूरत नहीं है. अगर किसी ने गर्म पानी और तेल को डाला, तो तुम भी तो मर जाओगे.
बातें करने के बाद, वे अपने-अपने स्थानों के अंदर चले गए, लेकिन राजकुमारी उनके रहस्य जान चुकी थी.

Panchtantra Ki Kahani, The Tale Of Two Snakes
उसने जीरा और सरसों का गर्म पानी तैयार करके अपने पति को भोजन के साथ दिया. कुछ ही घंटों में राजकुमार ठीक होना शुरू हो गया और उसकी ऊर्जा व ताकत वापस आ गई. उसके बाद, उसने सांप के बिल में गर्म पानी और तेल डाला और सोने के दो बर्तन ले लिए. वह राजकुमार अब पूरी तरह से ठीक हो गया था और उनके पास दो बर्तन भर सोना भी था. वे दोनों ही ख़ुशी-ख़ुशी से रहने लगे.
सीख: दुश्मनों की लड़ाई में आपको फ़ायदा हो सकता है, इसलिए सतर्क रहें और अपने दुश्मनों पर नज़र रखें.

Sunday, 1 September 2019

पंचतंत्र की कहानी: चालाक लोमड़ी और मूर्ख कौआ (Panchtantra Ki Kahani: The Fox And The Crow)

 चालाक लोमड़ी और मूर्ख कौआ 

चालाक लोमड़ी और मूर्ख कौआ, The Fox And The Crowपंचतंत्र की कहानी: चालाक लोमड़ी और मूर्ख कौआ (Panchtantra Ki Kahani: The Fox And The Crow)
एक जंगल में एक लोमड़ी रहती थी. वो बहुत ही भूखी थी. वह अपनी भूख मिटने के लिए भोजन की खोज में इधर– उधर घूमने लगी. उसने सारा जंगल छान मारा, जब उसे सारे जंगल में भटकने के बाद भी कुछ न मिला, तो वह गर्मी और भूख से परेशान होकर एक पेड़ के नीचे बैठ गई. अचानक उसकी नजर ऊपर गई. पेड़ पर एक कौआ बैठा हुआ था. उसके मुंह में रोटी का एक टुकड़ा था.
चालाक लोमड़ी और मूर्ख कौआ, The Fox And The Crow
कौवे के मुंह में रोटी देखकर उस भूखी लोमड़ी के मुंह में पानी भर आया. वह कौवे से रोटी छीनने का उपाय सोचने लगी. उसे अचानक एक उपाय सूझा और तभी उसने कौवे को कहा, ”कौआ भैया! तुम बहुत ही सुन्दर हो. मैंने तुम्हारी बहुत प्रशंसा सुनी है, सुना है तुम गीत बहुत अच्छे गाते हो. तुम्हारी सुरीली मधुर आवाज़ के सभी दीवाने हैं. क्या मुझे गीत नहीं सुनाओगे ?
चालाक लोमड़ी और मूर्ख कौआ, The Fox And The Crow
कौआ अपनी प्रशंसा को सुनकर बहुत खुश हुआ. वह लोमड़ी की मीठी मीठी बातों में आ गया और बिना सोचे-समझे उसने गाना गाने के लिए मुंह खोल दिया. उसने जैसे ही अपना मुंह खोला, रोटी का टुकड़ा नीचे गिर गया. भूखी लोमड़ी ने झट से वह टुकड़ा उठाया और वहां से भाग गई.
चालाक लोमड़ी और मूर्ख कौआ, The Fox And The Crow
यह देख कौआ अपनी मूर्खता पर पछताने लगा. लेकिन अब पछताने से क्या होना था, चतुर लोमड़ी ने मूर्ख कौवे की मूर्खता का लाभ उठाया और अपना फायदा किया.
सीखयह कहानी सन्देश देती है कि अपनी झूठी प्रशंसा से हमें बचना चाहिए. कई बार हमें कई ऐसे लोग मिलते हैं, जो अपना काम निकालने के लिए हमारी झूठी तारीफ़ करते हैं और अपना काम निकालते हैं. काम निकल जाने के बाद फिर हमें पूछते भी नहीं.

Sunday, 25 August 2019

पंचतंत्र की कहानी: दिन में सपने… (Panchtantra Ki Kahani: Day Dreams)

दिन में सपने…

पंचतंत्र की कहानी, Panchtantra Ki Kahani
पंचतंत्र की कहानी: दिन में सपने… (Panchtantra Ki Kahani: Day Dreams)
एक गांव में एक लड़की अपनी मां के साथ रहती थी. वो लड़की मन की बहुत चंचल थी. अक्सर सपनों में खो जाया करती थी. एक दिन वो दूध से भरा बर्तन लेकर शहर जाने की सोच रही थी. उसने अपनी मां से पूछा, “मां, मैं शहर जा रही हूं, क्या आपको कुछ मंगवाना है?”
उसकी मां ने कहा, “मुझे कुछ नहीं चाहिए. हां, यह दूध बेचकर जो पैसे मिलें, उनसे तुम अपने लिए चाहो तो कुछ ले लेना.”
पंचतंत्र की कहानी, Panchtantra Ki Kahani
वो लड़की शहर की ओर चल पड़ी. चलते-चलते वो फिर सपनों में खो गई. उसने सोचा कि ये दूध बेचकर भला मुझे क्या फ़ायदा होगा. ज़्यादा पैसे तो मिलेंगे नहीं, तो मैं ऐसा क्या करूं कि ज़्यादा पैसे कम सकूं… इतने में ही उसे ख़्याल आया कि दूध बेचकर जो पैसे मिलेंगे उससे वो मुर्गियां ख़रीद सकती है. वो फिर सपनों में खो गई“दूध बेचकर मुझे पैसे मिलेंगे, तो मैं मुर्गियां ख़रीद लूंगी, वो मुर्गियां रोज़ अंडे देंगी. इन अंडों को मैं बाज़ार में बेचकर काफ़ी पैसे कमा सकती हूं. उन पैसों से मैं और मुर्गियां ख़रीदूंगी, फिर उनके चूज़े निकलेंगे, उनसे और अंडे मिलेंगे… इस तरह तो मैं ख़ूब पैसा कमाऊंगी…
लेकिन फिर इतने पैसों का मैं करूंगी क्या?…हां, मैं उन पैसों से एक नई ड्रेस और टोपी ख़रीदूंगी. जब मैं यह ड्रेस और टोपी पहनकर बाहर निकलूंगी, तो पूरे शहर के लड़के मुझे ही देखेंगे.
पंचतंत्र की कहानी, Panchtantra Ki Kahani
सब मुझसे दोस्ती करना चाहेंगे. पास आकर हाय-हैलो बोलेंगे. मैं भी इतराकर उनसे बात करूंगी. बड़ा मज़ा आएगा, लेकिन यह देखकर बाकी की सब लड़कियां तो मुझसे जलने लगेंगी. उन्हें जलता देख मुझे मज़ा आएगा. मैं उन्हें घूरकर देखूंगी और अपनी गर्दन इस तरह से स्टाइल में झटककर आगे बढ़ जाऊंगी.”
पंचतंत्र की कहानी, Panchtantra Ki Kahani
यह कहते ही उस लड़की ने अपनी गर्दन को ज़ोर से झटका और गर्दन झटकते ही उसे सामने रखे एक पत्थर से ठोकर भी लग गई और दूध से भरा बर्तन, तो उसने सिर पर रख रखा था, नीचे गिरकर टूट गया. यह देख वो सदमे में आ गई और उसकी तंद्रा टूटी. मायूस होकर वो गांव लौटी.
उसने अपनी मां से माफी मांगी कि उसने सारा दूध गिरा दिया. यह सुनकर उसकी मां ने कहा, “दूध के गिरने की चिंता छोड़ो, लेकिन एक बात हमेशा याद रखो कि जब तक अंडे न फूट जाएं, तब तक चूज़े गिनने से कोई फ़ायदा नहीं…” मां की हिदायत और इशारा दोनों उसको समझ में आ गया. उसकी मां यही कहना चाहती थी कि जब तक हाथ में कुछ हो नहीं, तब तक उसके बारे में यूं ख़्याली पुलाव नहीं पकाना चाहिए.
सीख: ख़्याली पुलाव पकाने से कोई फ़ायदा नहीं. दिन में सपने देखकर उनमें खोने से कुछ नहीं होगा. अगर सच में कुछ हासिल करना है, तो हक़ीक़त में मेहनत करो.

Sunday, 11 August 2019

पंचतंत्र की कहानी: प्यासी चींटी और कबूतर (Panchtantra Ki Kahani: Ant And Dove)


 प्यासी चींटी और कबूतर 


Panchtantra Ki Kahani: Ant And Dove
पंचतंत्र की कहानी: प्यासी चींटी और कबूतर (Panchtantra Ki Kahani: Ant And Dove)
एक समय की बात है, गर्मियों के दिनों में एक चींटी बहुत प्यासी थी और वो अपनी प्यास बुझाने के लिए पानी की तलाश कर रही थी. कुछ देर आस –पास तलाश करने के बाद वह एक नदी के पास पहुंची.
सामने पानी था, लेकिन पानी पीने के लिए वह सीधे नदी में नहीं जा सकती थी, इसलिए वह एक छोटे से पत्थर के ऊपर चढ़ गई. लेकिन जैसे ही उसने पानी पीने की कोशिश की, वह गिर कर नदी में जा गिरी.
Panchtantra Ki Kahani: Ant And Dove
उसी नदी के किनारे एक पेड़ था, जिसकी टहनी पर एक कबूतर बैठा था. उसने चींटी को पानी में गिरते हुए देख लिया. कबूतर को उस पर तरस आया और उसने चींटी को बचाने की कोशिश की. कबूतर ने तेजी से पेड़ से एक पत्ता तोड़कर नदी में संघर्ष कर रही चींटी के पास फेंक दिया.
चींटी उस पत्ते के पास पहुंची और उस पत्ते में चढ़ गयी. थोड़ी देर बाद, पत्ता तैरता हुआ नदी किनारे सूखे आ गया.. चींटी ने पत्ते में से छलांग लगाई और नीचे उतर गई. चींटी ने पेड़ की तरफ देखा और कबूतर को उसकी जान बचाने के लिए धन्यवाद किया.
इस घटना के कुछ दिनों बाद, एक दिन.. एक शिकारी उस नदी किनारे पहुंचा और उस कबूतर के घोंसले के नजदीक ही उसने जाल लगा दिया और उसमें दाना डाल दिया. वह थोड़ी ही दूर जाकर छुप गया और उम्मीद करने लगा कि वह कबूतर को पकड़ लेगा. कबूतर ने जैसे ही जमीन में दाना देखा वह उसे खाने के लिए नीचे आया और शिकारी के जाल में फंस गया.
वो चींटी वहीं पास में थी और उसने कबूतर को जाल में फंसा हुआ देख लिया. कबूतर उस जाल में से निकलने में असमर्थ था. शिकारी ने कबूतर का जाल पकड़ा और चलने लगा. तभी चींटी ने कबूतर की जान बचाने की सोची और उसने तेजी से जाकर शिकारी के पैर में जोर से काट लिया.
तेज दर्द के कारण शिकारी ने उस जाल को छोड़ दिया और अपने पैर को देखने लगा. कबूतर को जाल से निकलने का यह मौका मिल गया और वह तेजी से जाल से निकल कर उड़ गया.
सीख: कर भला, हो भला. हम जब भी दूसरों का भला करते हैं, तो उसका फल हमें जरुर मिलता है. कबूतर ने चींटी की मदद की थी और उसी मदद के फलस्वरूप मुश्किल समय में चींटी ने कबूतर की जान बचाई. इसलिए कभी भी किसी की सहायता करने या अच्छा करने से पीछे न हटें। जब भी मौका मिले, दूसरो की बिना किसी स्वार्थ के मदद करें.

Sunday, 4 August 2019

पंचतंत्र की कहानी: लालची कुत्ता (Panchtantra Ki Kahani: The Greedy Dog)

लालची कुत्ता

Panchtantra Ki Kahani: The Greedy Dog
पंचतंत्र की कहानी: लालची कुत्ता (Panchtantra Ki Kahani: The Greedy Dog)
एक गांव में एक कुत्ता रहता था. वो हमेशा कुछ न कुछ खाने की फिराक में ही रहता था, क्योंकि वह बहुत लालची था. वह भोजन की तलाश में हमेशा यहां-वहां भटकता रहता था, उसका पेट कभी नहीं भरता था. एक दिन की बात है, वो हमेशा की तरह खाने की तलाश में इधर-उधर घूम रहा था, लेकिन उसे कहीं भी भोजन नहीं मिला. अंत में उसे एक होटल के बाहर एक मांस का एक टुकड़ा दिखाई दिया, उसने झट से उस टुकड़े को मुंह में पकड़ लिया और सोचा कि कहीं एकांत में जाकर मज़े से इसे खाया जाए. वह उसे अकेले में बैठकर खाना चाहता था, इसलिए मांस का टुकड़ा लेकर वहां से जल्दी से जल्दी भाग गया.
Panchtantra Ki Kahani: The Greedy Dog
एकांत जगह की खोज करते-करते वह एक नदी के पास पहुंचा. नदी के किनारे जाकर उसने नदी में झांका, तो अचानक उसने अपनी परछाई नदी में देखी. वो समझ नहीं पाया कि यह उसी की परछाई है, उसे लगा कि पानी में कोई दूसरा कुत्ता है, जिसके मुंह में भी मांस का टुकड़ा है.
Panchtantra Ki Kahani: The Greedy Dog
उस लालची कुत्ते ने सोचा क्यों न इसका टुकड़ा भी छीन लिया जाए. अगर इसका मांस का टुकड़ा भी मिल जाए, तो खाने का मजा दुगुना हो जाएगा. वह उस परछाई पर ज़ोर से भौंका. भौंकने से उसके मुंह में दबा मांस का टुकड़ा नदी में गिर पड़ा. अब वह अपना टुकड़ा भी खो बैठा. उसे तब जाकर समझ में आया कि जिसे वो दूसरा कुत्ता समझ रहा था, वो तो उसकी ख़ुद की परछाई है. उसने ज़्यादा के लालच में, जो था वो भी खो दिया. अब वह बहुत पछताया और मुंह लटकाकर वापस गांव में आ गया.
Panchtantra Ki Kahani: The Greedy Dog

सीख: लालच बुरी बला है. लालच नहीं करना चाहिए. दूसरों की चीज़ें छीनने का फल बुरा ही होता है. लालच हमारी ख़ुशियां छीन लेता है, इसलिए अपनी मेहनत पर भरोसा करना चाहिए और मेहनत से जो भी हासिल हुआ हो, उसमें संतोष करना चाहिए. अगर लालच करेंगे तो हमारे पास अभी जितना है, उससे भी हाथ धोना पड़ सकता है.

Sunday, 21 July 2019

पंचतंत्र की कहानी: सच्चे मित्र (Panchtantra Ki Kahani: Four Clever Friends And A Hunter)

 सच्चे मित्र 

पंचतंत्र की कहानी: सच्चे मित्र
यह बहुत समय पहले की बात है. एक सुदंर से वन में चार मित्र रहते थे- चूहा, कौआ, हिरण और कछुआ. अलग-अलग प्रजाति के जीव होने के बाद भी उनमें बहुत घनिष्टता थी. चारों एक-दूसरे से इतना प्यार करते थे कि एक-दूसरे पर जान छिडकते थे. चारों साथ-साथ खेलते, साथ ही खाते, सा ही घूमते, घुल-मिलकर रहते, खूब बातें करते.
पंचतंत्र की कहानी: सच्चे मित्र
उसी वन में एक ख़ूबसूरत सा जल का सरोवर था, जिसमें वह कछुआ रहता था. सरोवर के तट के पास ही एक जामुन का बहुत बड़ा पेड़ था. उसी पेड़ पर घोंसले बनाकर कौवा रहता था. पेड़ के नीचे ज़मीन में बिल बनाकर चूहा रहता था और पास ही घनी झाड़ियों में हिरण का घर था.
पंचतंत्र की कहानी: सच्चे मित्र
दिन को कछुआ तट की रेत में खेलता, धूप सेंकता रहता, पानी में डुबकियां लगाता. तब बाकी तीनों मित्र भोजन की तलाश में निकल पड़ते और दूर तक घूमकर सूर्यास्त के व़क्त लौट आते. उसके बाद चारों मित्र इकट्ठे होते. साथ-साथ खाते, खेलते और धमा-चौकड़ी मचाते.
पंचतंत्र की कहानी: सच्चे मित्र
इसी तरह दिन मज़े में बीत रहे थे कि एक शाम को चूहा और कौवा तो लौट आए, लेकिन उनका मित्र हिरण नहीं लौटा. तीनों मित्र बैठकर उसका इंतज़ार करने लगे. बहुत देर तक जब हिरण नहीं लौटा, तो वो सब उदास हो गए. कछुआ भर्राए गले से बोला, “वह तो रोज़ तुम दोनों से भी पहले लौट आता था. आज क्या बात हो गई, जो अब तक नहीं आया. मेरा तो घबरा रहा है, कहीं वो किसी मुसीबत में तो नहीं है.”
चूहे ने भी चिंतित स्वर में कहा, “बात बहुत गंभीर है. वह ज़रूर किसी मुसीबत में पड गया है. अब हम क्या करें?”
कौवे ने कहा, “मित्रो, वह जहां चरने प्रायः जाता है, मैं उधर उड़कर देखकर आता, लेकिन अंधेरा हो गया है, इसलिए नीचे कुछ नज़र नहीं आएगा. हमें सुबह तक प्रतीक्षा करनी होगी. सुबह होते ही मैं उसकी कुछ ख़बर ज़रूर लाऊंगा.”
पंचतंत्र की कहानी: सच्चे मित्र
कछुए ने कहा, “रातभर नींद नहीं आएगी, तो मैं उस ओर अभी चल पड़ता हूं. मेरी चाल भी बहुत धीमी है. तुम दोनों सुबह आ जाना.”
चूहा भी बोला, “मुझसे भी हाथ पर हाथ धरकर नहीं बैठा जाएगा. मैं भी कछुए भाई के साथ चला जाता हूं. कौए भाई, तुम सुबह होते ही आ जाना.”
यह कहकर कछुआ और चूहा चल दिए. कौवे को भी नींद नहीं आई और वो सुबह होने का
इंतज़ार करने लगा. सुबह होते ही वो उड़ चला. वह उड़ते-उड़ते चारों ओर नज़र डालता जा रहा था कि आगे एक स्थान पर कछुआ और चूहा जाते उसे नज़र आए. कौवे ने कां कां करके उन्हें सूचना दी कि उसने उन्हें देख लिया है और वह खोज में आगे जा रहा है. अब कौवे ने हिरण को पुकारना भी शुरू किया, “मित्र हिरण, तुम कहां हो? आवाज़ दो दो
इतने में ही उसे किसी के रोने की आवाज़ सुनाई दी. स्वर उसके मित्र हिरण का लग रहा था. वह उस आवाज़ की दिशा में उड़कर सीधा उस जगह पहुंचा, जहां हिरण एक शिकारी के जाल में फंसा छटपटा रहा था.
हिरण ने रोते हुए बताया कि कैसे एक ज़ालिम शिकारी ने वहां जाल बिछा रखा था. दुर्भाग्यवश वह जाल नहीं देख पाया और फंस गया. हिरण ने रोते-रोते कहा, “वह शिकारी आता ही होगा. वह मुझे पकड़कर ले जाएगा और मेरी कहानी ख़त्म समझो. मित्र कौवे! तुम चूहे और कछुए को भी मेरा अंतिम नमस्कार कहना.”
पंचतंत्र की कहानी: सच्चे मित्र
कौआ बोला, “मित्र, तुम घबरा क्यों रहे हो. हम जान की बाज़ी लगाकर भी तुम्हें छुड़ा लेंगे.”
हिरण ने हताशा से कहा, “लेकिन तुम ऐसा कैसे कर पाओगे? वह शिकारी बहुत ज़ालिम और शक्तिशाली है.”
कौवे ने अपने पंख फड़फड़ाए और अपनी योजना बताई, “सुनो, मैं चूहे को पीठ पर बिठाकर ले आता हू्ं. वह अपने पैने दांतों से जाल को आसानी से कुतर देगा.”
हिरण को आशा की किरण दिखाई दी. उसकी आंखें ख़ुशी से चमक उठीं. कौआ तेज़ी से उड़ा और जल्दी से वहां पहुंचा, जहां कछुआ व चूहा आ पहुंचे थे. कौवे ने समय नष्ट किए बिना बताया, “मित्रो, हमारा दोस्त हिरण एक दुष्ट शिकारी के जाल में कैद है. जान की बाज़ी लगी है. अगर शिकारी के आने से पहले हमने उसे न छुड़ाया, तो वह मारा जाएगा.” कछुआ घबरा गया, उसने पूछा, “उसके लिए हमें क्या करना होगा? जल्दी बताओ?” चूहे के तेज़ दिमाग ने कौवे का इशारा समझ लिया था, इसलिए वो बिना समय गंवाए बोल उठा, “घबराओ मत, कौवे भाई, मुझे अपनी पीठ पर बैठाकर हिरण के पास जल्द से जल्द ले चलो.” इतने में ही दोनों उड़ चले. चूहे को जाल कुतरकर हिरण को मुक्त करने में अधिक देर नहीं लगी.
पंचतंत्र की कहानी: सच्चे मित्र
मुक्त होते ही हिरण ने अपने मित्रों को गले लगा लिया और रुंधे गले से उन्हें धन्यवाद दिया. तभी कछुआ भी वहां आ पहुंचा और ख़ुुशी में शामिल हो गया. हिरण बोला, “दोस्त, तुम भी आ गए. मैं भाग्यशाली हूं, जिसे ऐसे सच्चे मित्र मिले हैं.” चारों मित्र भाव विभोर होकर ख़ुशी से उछलने, कूदने व नाचने लगे.  इतने में ही हिरण चौंका और उसने मित्रों को चेतावनी दी, “भाइयो, देखो वह ज़ालिम शिकारी आ रहा है, तुरंत छिप जाओ.” चूहा फौरन पास के एक बिल में घुस गया. कौआ उड़कर पेड़ की डाल पर जा बैठा. हिरण एक ही छलांग में पास की झाड़ी में जा घुसा, लेकिन कछुआ अपनी धीमी गति के कारण दो कदम भी न जा पाया था कि शिकारी आ ध
पंचतंत्र की कहानी: सच्चे मित्र
उसने जाल को कटा देखकर अपना माथा पीटा कि आख़िर जाल में कौन-सा जानवर फंसा था और यह जाल किसने काटा? यह जानने के लिए वह पैरों के निशानों के सुराग ढूंढ़ने के लिए इधर-उधर देख ही रहा था कि उसकी नज़र रेंगते हुए कछुए पर पड़ी. उसकी आंखें चमक उठीं. वह सोचने लगा कि वाह! भागते चोर की लंगोटी ही सही। अब यही कछुआ मेरा शिकार बनेगा और मेरे परिवार का भोजन बनेगा.
उसने कछुए को उठाकर अपने थैले में डाला और जाल समेटकर चल पड़ा.
पंचतंत्र की कहानी: सच्चे मित्र
कौवे ने तुरंत हिरण व चूहे को बुलाकर कहा, “मित्रो, कछुए को शिकारी थैले में डालकर ले जा रहा है.”
चूहा बोला, “हमें अपने मित्र की जान बचानी ही होगी और उसे उस शिकारी से छुड़ाना ही होगा, लेकिन कैसे?”
पंचतंत्र की कहानी: सच्चे मित्र
इस बार हिरण ने समस्या का हल सुझाया, दोस्तो, हमें चाल चलनी होगी. मैं लंगड़ाता हुआ शिकारी के आगे से निकलुंगा. मुझे लंगड़ा समझकर वह मुझे पकड़ने के लिए कछुए वाला थैला छोड़कर मेरे पीछे जरूर भागेगा. लेकिन वो कितनी देर तक मेरा पीछा कर पाएगा. मैं उसे दूर ले जाकर चकमा दे दूंगा. इस बीच चूहा भाई थैले को कुतरकर कछुए को आज़ाद कर देगा.”
पंचतंत्र की कहानी: सच्चे मित्र
यह योजना सबको अच्छी लगी थी. योजना के अनुसार हिरण जानबूझकर शिकारी के रास्ते में आ गया और लंगड़ाकर चलते हिरण को देख शिकारी की बांछे खिल उठीं. वह थैला पटककर हिरण के पीछे दौड़ पड़ा. हिरण उसे लंगड़ाने का नाटक कर घने जंगल की ओर ले गया और फिर उसे चकमा देकर कहीं ओझल हो गया. इस बीच चूहे ने अपना काम कर दिया था और अपने दोस्त कछुए को झुड़ा लिया था.
पंचतंत्र की कहानी: सच्चे मित्र
शिकारी ख़ुद से बहुत नाराज़ था कि आख़िर हिरण हाथ नहीं लगा. अब कछुए से ही काम चलाने का इरादा बनाकर जब वह लौटा, तो उसे थैला भी खाली मिला. उसमें छेद बना हुआ था. शिकारी मुंह लटकाकर खाली हाथ घर लौट गया.
पंचतंत्र की कहानी: सच्चे मित्र
सीखः सच्चे मित्र हों, तो जीवन में मुसीबतों का आसानी से सामना किया जा सकता है.

Sunday, 14 July 2019

पंचतंत्र की कहानी: खटमल और मच्छर (Panchtantra Ki Kahani: The Bug And The Mosquito)

 खटमल और मच्छर 


पंचतंत्र की कहानी: खटमल और मच्छर
एक समय की बात है, एक राज्य में शक्तिशाली राजा रहता था. सब कुछ ठीक चल रहा था कि एक रात राजा अपने राजसी बिस्तर में सो रहा था. तभी न जाने कहां से एक खटमल ने उसके बिस्तर में अपना घर बना लिया. रोज़ रात में जब राजा सो जाता, तब खटमल गुप्त स्थान से बाहर आकर राजा का खून चूस लेता.ऐसा करके कुछ ही दिनों में खटमल काफी मोटा और स्वस्थ हो गया.
एक दिन रात को जब राजा सो रहा था, तो राजा के कमरे की खिड़की खुली रह गई और एक मच्छर कमरे में घुस गया. खटमल ने भिनभिनाने की आवाज़ सुनी तो वह यह देखने के लिए बाहर निकला कि कौन उसके अधिकार क्षेत्र में घुस आया.
उसने मच्छर को देखा और पूछा कि तुम कौन हो और यहां क्या कर रहे हो?
मच्छर ने कहा कि मैं मच्छर हूँ. मैं अभी अभी खिड़की के रास्ते से अंदर आया हूं. मैं बहुत थका हुआ हूं और थोड़ा आराम करना चाहता हूं.
यह सुनकर खटमल को गुस्सा आया और वो बोला, नहीं तुम आराम नहीं कर सकते, क्योंकि यह मेरा इलाका है.
मच्छर बहुत चलाक था, वो बोला, ठीक है मैं थोड़ी देर में चला जाऊंगा, लेकिन तुम तो मेरे भाई हो, ज़रा यह तो बताओ कि तुम बहुत स्वस्थ और सुन्दर
दिखते हो. तुम ऐसा क्या खाते हो?
पंचतंत्र की कहानी: खटमल और मच्छर
यह सुनकर खटमल को बहुत अच्छा लगा और वो बोला, मैं एक खटमल हूं और मैं रोज़ रात में राजा का स्वादिष्ट खून चूसता हूं .इसी वजह से मेरा शरीर काफी स्वस्थ है.
मेरे भाई तुम सिर्फ स्वस्थ ही नहीं सुन्दर भी हो, मच्छर ने फिर कहा, तो खटमल ,मच्छर की चापलूसी से खुश हो गया, लेकिन फिर भी उसने कहा, मैं सुन्दर हूं लेकिन तुम यहां से जाओ अभी ये मेरी जगह है.
मच्छर ने कहा, नहीं ऐसा मत कहो. मैं बहुत भूखा हूं और थका हुआ भी हूं, तुम तो मेरे भाई हो, बस एक बार मुझे भी राजा का सवादिष्ट खून चूस लेने दो ,फिर मैं चला जाऊंगा.
पहले तो खटमल ने उसकी बात नहीं मानी, लेकिन मच्छर की लगातार चापलूसी भरी बातें सुनकर खटमल आखिरकार नरम पड़ गया.
लेकिन उसने मच्छर को चेतावनी दी, याद रखो राजा को सिर्फ तब ही काटना जब वो गहरी नींद में हो, वरना वो उठ जायेगा और हमारा जीवन खतरे में पड़ जायेगा.
मच्छर तैयार हो गया. अब मच्छर राजा के सोने की प्रतीक्षा करने लगा.
पंचतंत्र की कहानी: खटमल और मच्छर
खटमल उस रात अपने घर पर ही था. जब राजा सोने आया, तो मच्छर बहुत ही खुश हो गया. जैसे ही राजा अपने बिस्तर पर लेटा मच्छर ने उसे काट लिया. राजा की नींद खुल गई और वो गुस्से से उठा. उसने अपने सेवकों को बुलाया और कहा, मेरे बिस्तर में कोई कीड़ा है. उसे जल्दी ढूंढों और मार दो.
सेवकों ने सारा बिस्तर छान मारा और अंत में उन्होंने खटमल का घर भी ढूंढ लिया और खटमल को मार दिया. इसी बीच मौक़ा पाकर मच्छर वहां से भाग खड़ा हुआ.
सीख: इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी किसी की चिकनी-चुपड़ी बातों में नहीं आना चाहिए और अपरिचित व्यक्ति पर कभी भी विश्वास नहीं करना चाहिए.

Sunday, 7 July 2019

पंचतंत्र की कहानी: दो बिल्लियां और एक बंदर (Panchtantra Ki Kahani: Two Cats And A Monkey)

 दो बिल्लियां और एक बंदर 

दो बिल्लियां और एक बंदर (Panchtantra Ki Kahani: Two Cats And A Monkey)
बहुत समय पहले की बात है, एक गांव में 2 बिल्लियां रहती थीं. दोनों बहुत ही अच्छी दोस्त थीं और दोनों आपस में बहुत प्यार से रहती थीं. दोनों की दोस्ती का सभी लोग उदाहरण देते थे. वो दोनों बहुत ख़ुश थीं. उन्हें जो कुछ भी मिलता था, उसे आपस में मिल-बांटकर खाया करती थीं.
एक दिन दोनों दोपहर के व़क्त खेल रही थीं कि खेलते-खेलते दानों को ज़ोर की भूख लगी. वो भोजन की तलाश में निकल पड़ीं. कुछ दूर जाने पर एक बिल्ली को एक स्वादिष्ट रोटी नज़र आई. उसने झट से उस रोटी को उठा लिया और जैसे ही उसे खाने लगी, तो दूसरी बिल्ली ने कहा, “अरे, यह क्या? तुम अकेले ही रोटी खाने लगीं? मुझे भूल गई क्या? मैं तुम्हारी दोस्त हूं और हम जो भी खाते हैं आपस में बांटकर ही खाते हैं.
पहली बिल्ली ने रोटी के दो टुकड़े किए और दूसरी बिल्ली की ओर एक टुकड़ा बढ़ा दिया. यह देख दूसरी बिल्ली फिर बोली, “यह क्या, तुमने मुझे छोटा टुकड़ा दिया. यह तो ग़लत है.
बस, इसी बात पर दोनों में झगड़ा शुरू हो गया और झगड़ा इतना बढ़ गया कि सारे जानवर इकट्ठा हो गए. इतने में ही एक बंदर आया.
दोनों को झगड़ते देख वो बोला, “अरे बिल्ली रानी, क्यो झगड़ा कर रही हो?”
दोनों ने अपनी दुविधा बंदर को बताई, तो बंदर ने कहा, “बस, इतनी सी बात. मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूं. मेरे पास एक तराज़ू है. उसमें मैं ये दोनों टुकड़े रखकर पता कर सकता हूं कि कौन-सा टुकड़ा बड़ा है और कौन-सा छोटा. फिर हम दोनों टुकड़ों को बराबर कर लेंगे. बोलो मंज़ूर?”

दोनों बिल्लियों को बंदर की बात जंच गई. वो तैयार हो गईं. बंदर पेड़ पर चढ़ा और तराज़ू ले आया. उसने दोनों टुकड़े एक-एक पलड़े में रख दिए. तोलते समय उसने देखा कि एक पलड़ा भारी था, तो वो बोला, “अरे, यह टुकड़ा बड़ा है, चलो दोनों को बराबर कर दूं और यह कहते ही उसने बड़े टुकड़े में से थोड़ा-सा तोड़कर खा लिया.
इस तरह से हर बार जो पलड़ा भारी हुआ, उस वाली तरफ़से उसने थोड़ी सी रोटी तोड़कर अपने मुंह में डालनी शुरू कर दी. दोनों बिल्लियां अब घबरा गईं. वो फिर भी चुपचाप बंदर के फैसले का इंतज़ार करती रहीं, लेकिन जब दोनों ने देखा कि दोनों टुकड़े बहुत छोटे-छोटे रह गए, तो वे बंदर से बोलीं, “आप चिंता ना करो, अब हम लोग अपने आप रोटी का बंटवारा कर लेंगी.”
इस बात पर बंदर बोला, “जैसा आप दोनों को ठीक लगे, लेकिन मुझे भी अपनी मेहनत कि मज़दूरी तो मिलनी ही चाहिए ना, इतना कहकर बंदर ने रोटी के बचे हुए दोनों टुकड़े भी अपने मुंह में डाल लिए और बेचारी बिल्लियों को वहां से खाली हाथ ही लौटना पड़ा.
दोनों बिल्लियों को अपनी ग़लती का एहसास हो चुका था और उन्हें समझ में आ चुका था कि आपस की फूट बहुत बुरी होती है और दूसरे इसका फायदा उठा सकते हैं.
सीख: इस कहानी से यह सीख मिलती है कि कभी भी लालच नहीं करना चाहिए और कभी भी आपस में झगड़कर रिश्ते में फूट नहीं डालनी चाहिए, क्योंकि जब भी हम आपस में लड़ते हैं, तो कोई बाहरी व्यक्ति उसका फ़ायदा उठा जाता है, इसलिए एकता की शक्ति को पहचानें और मिलकर रहें.

Sunday, 30 June 2019

पंचतंत्र की कहानी: दो मुंहवाला पंछी (Panchtantra Ki Kahani: The Bird With Two Heads)

 दो मुंहवाला पंछी 


एक जंगल में एक सुंदर-सा पंछी रहता था. यह पंछी अपनेआप में बेहद अनोखा था, क्योंकि इसके दो मुंह थे. दो मुंह होने के बाद भी इसका पेट एक ही था. यह पंछी यहां-वहां घूमता, कभी झील के किनारे, तो कभी पेड़ों के आसपास.
एक दिन की बात है, यह पंछी एक सुंदर-सी नदी के पास से गुज़र रहा था कि तभी उसमें से एक मुंह की नज़र एक मीठे फल पर पड़ी. वो वहां गया और फल को देखकर बहुत ख़ुश हुआ. उसने फल तोड़ा और उसे खाने लगा. फल बेहद मीठा और स्वादिष्ट था. उसने फल खाते हुए दूसरे मुंह से कहा, “यह तो बहुत ही मीठा और स्वादिष्ट फल है. बिल्कुल शहद जैसा. मज़ा आ गया इसे खाकर

उसकी बात सुनकर दूसरे मुंह ने कहा, “मुझे भी यह फल चखाओ. मैं भी इसे खाना चाहता हूं.”
पहले मुंह ने कहा, “अरे, तुम इसे खाकर क्या करोगे? मैंने कहा न कि यह एकदम शहद जैसा है और वैसे भी हमारे पेट तो एक ही है न. तो मैं खाऊं या तुम, क्या फ़र्क़ पड़ता है.”
दूसरे मुंह को यह सुनकर बहुत दुख हुआ. उसने सोचा यह कितना स्वार्थी है. उसने पहले मुंह से बात करना बंद कर दिया और मन ही मन उससे बदला लेने की ठान
कुछ दिनों तक दोनों में बातचीत बंद रही. फिर एक दिन जब वो कहीं घूम रहे थे, तभी दूसरे मुंह की नज़र भी एक फल पर पड़ी. वो फल ज़हरीला था. उसने सोचा कि बदला लेने का यह सही मौक़ा है. उसने कहा, “मुझे यह फल खाना है.”
पहले मुंह ने कहा, “यह बहुत ही ज़हरीला फल है, इसे खाकर हम मर जाएंगे.”
दूसरे मुंह ने कहा, “मैं इसे खा रहा हूं, तुम नहीं, तो तुम्हें कोई तकलीफ़ नहीं होनी चाहिए.”
पहले मुंह ने कहा, “हमारे मुंह भले ही दो हैं, लेकिन पेट तो एक ही है न. तुम खाओगे, तो हम दोनों मर जाएंगे. इसे मत खाओ.”
लेकिन पहले मुंह न एक न सुनी और उसने वह ज़हरीला फल खा लिया. धीरे-धीरे ज़हर ने अपना असर दिखाया और वह दो मुंहवाला अनोखा पंछी मर गया.

सीख: स्वार्थ से बचकर एकता की शक्ति को पहचानना चाहिए. स्वार्थ हमेशा ख़तरनाक होता है, जबकि एकता का बल बहुत अधिक होता है.