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Sunday, 30 June 2019

पंचतंत्र की कहानी: दो मुंहवाला पंछी (Panchtantra Ki Kahani: The Bird With Two Heads)

 दो मुंहवाला पंछी 


एक जंगल में एक सुंदर-सा पंछी रहता था. यह पंछी अपनेआप में बेहद अनोखा था, क्योंकि इसके दो मुंह थे. दो मुंह होने के बाद भी इसका पेट एक ही था. यह पंछी यहां-वहां घूमता, कभी झील के किनारे, तो कभी पेड़ों के आसपास.
एक दिन की बात है, यह पंछी एक सुंदर-सी नदी के पास से गुज़र रहा था कि तभी उसमें से एक मुंह की नज़र एक मीठे फल पर पड़ी. वो वहां गया और फल को देखकर बहुत ख़ुश हुआ. उसने फल तोड़ा और उसे खाने लगा. फल बेहद मीठा और स्वादिष्ट था. उसने फल खाते हुए दूसरे मुंह से कहा, “यह तो बहुत ही मीठा और स्वादिष्ट फल है. बिल्कुल शहद जैसा. मज़ा आ गया इसे खाकर

उसकी बात सुनकर दूसरे मुंह ने कहा, “मुझे भी यह फल चखाओ. मैं भी इसे खाना चाहता हूं.”
पहले मुंह ने कहा, “अरे, तुम इसे खाकर क्या करोगे? मैंने कहा न कि यह एकदम शहद जैसा है और वैसे भी हमारे पेट तो एक ही है न. तो मैं खाऊं या तुम, क्या फ़र्क़ पड़ता है.”
दूसरे मुंह को यह सुनकर बहुत दुख हुआ. उसने सोचा यह कितना स्वार्थी है. उसने पहले मुंह से बात करना बंद कर दिया और मन ही मन उससे बदला लेने की ठान
कुछ दिनों तक दोनों में बातचीत बंद रही. फिर एक दिन जब वो कहीं घूम रहे थे, तभी दूसरे मुंह की नज़र भी एक फल पर पड़ी. वो फल ज़हरीला था. उसने सोचा कि बदला लेने का यह सही मौक़ा है. उसने कहा, “मुझे यह फल खाना है.”
पहले मुंह ने कहा, “यह बहुत ही ज़हरीला फल है, इसे खाकर हम मर जाएंगे.”
दूसरे मुंह ने कहा, “मैं इसे खा रहा हूं, तुम नहीं, तो तुम्हें कोई तकलीफ़ नहीं होनी चाहिए.”
पहले मुंह ने कहा, “हमारे मुंह भले ही दो हैं, लेकिन पेट तो एक ही है न. तुम खाओगे, तो हम दोनों मर जाएंगे. इसे मत खाओ.”
लेकिन पहले मुंह न एक न सुनी और उसने वह ज़हरीला फल खा लिया. धीरे-धीरे ज़हर ने अपना असर दिखाया और वह दो मुंहवाला अनोखा पंछी मर गया.

सीख: स्वार्थ से बचकर एकता की शक्ति को पहचानना चाहिए. स्वार्थ हमेशा ख़तरनाक होता है, जबकि एकता का बल बहुत अधिक होता है.