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Sunday, 16 June 2019

पंचतंत्र की कहानी: चतुर लोमड़ी (Panchtantra Ki Kahani: The Clever Fox)

 चतुर लोमड़ी

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एक जंगल में शेर, लोमड़ी और गधे नए-नए दोस्त बने. तीनों ने मिलकर शिकार करने की योजना बनाई और सबने मिलकर यह फैसला लिया कि शिकार के तीन हिस्से होंगे और तीनों का शिकार पर बराबर का हक होगा. तीनों ही फिर निकल पड़े शिकार की तलाश में.
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थोड़ी देर बाद ही उन्हें जंगल में एक हिरण नज़र आया. वो हिरण इन सबसे बेख़बर अपना भोजन कर रहा था. लेकिन जैसे ही हिरण ने ख़तरे को भांपा, वो तेज़ी से दौड़ पड़ा. लेकिन वो कब तक इनसे भागता, आख़िर ये तीन थे और वो अकेला. आख़िरकार वो थक कर चूर हो गया.
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शेर ने मौका देखते ही उस पर हमला बोल दिया और उसे मार गिराया.तीनों बहुत ख़ुश हुए. शेर ने गधे से कहा, “शिकार के तीन हिस्से कर दो दोस्त.” गधे ने शिकार के तीन बराबर हिस्से कर दिए, लेकिन यह बात शेर को पसंद नहीं आई और वो ग़ुस्से से दहाड़ने लगा. शेर ने गधे पर भी हमला बोल दिया और देखते ही देखते अपने नुकीले दांतों और पंजों से उसे दो हिस्सों में काटकर अलग कर दिया.
उसके बाद उसने लोमड़ी से कहा, “लोमड़ी, तुम भी अपना हिस्सा क्यों नहीं ले लेती?”
लोमड़ी बहुत ही चतुर और समझदार थी. उसने हिरण का एक चौथाई हिस्सा ही अपने लिए लिया और बाकी का तीन चौथाई हिस्सा शेर के लिए छोड़ दिया.
ये देख शेर बेहद प्रसन्न हुआ और ख़ुश होकर बोला, “वाह! लोमड़ी मेरी दोस्त, तुमने भोजन की बिल्कुल सही मात्रा मेरे लिए छोड़ी है… तुम सचमुच बहुत ही समझदार हो. आख़िर तुमने इतने समझदारी कहां से सीखी?”
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लोमड़ी ने जवाब दिया, “महाराज! दरअसल, इस बेव़कूफ़ गधे की हालत व दुर्दशा देखकर ही मैं समझ गई थी कि आप क्या चाहते हैं. इसकी बेव़कूफ़ी से ही मैंने सीख ली.
सीख: स़िर्फ अपनी ही ग़लतियों से नहीं, दूसरों की ग़लतियों से भी सीखना चाहिए. जी हां, दूसरों की ग़लतियां भी आपकी सीख का कारण बन सकती है, ज़रूरी नहीं कि आप अपनी ग़लती होने का ही इंतज़ार करें! समझदार व्यक्ति दूसरों की ग़लतियों से भी सीख ले लेता है.

Sunday, 9 June 2019

पंचतंत्र की कहानी: भालू और दो मित्र (Panchtantra Ki Kahani: Bear And Two Friends)

 भालू और दो मित्र

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दो दोस्त एक घने जंगल से होकर कहीं जा रहे थे. दोनों काफ़ी गहरे दोस्त थे और अपनी दोस्ती को लेकर दोनों ही बातें करते हुए जा रहे थे. जंगल बहुत ही घना था, तो उनमें से एक दोस्त (friend) डर रहा था, लेकिन उसके साथी मित्र ने कहा कि मेरे होते हुए तुम्हें डरने की कोई ज़रूरत नहीं. मैं तुम्हारा सच्चा और अच्छा मित्र हूं. इतने में ही सामने से ही बहुत ही बड़ा भालू (bear) उन्हें नज़र आया. जो दोस्त कह रहा था कि मैं अच्छा मित्र हूं, वो भालू को देखते ही भाग खड़ा हुआ. दूसरा मित्र कहता रहा कि मुझे छोड़कर मत भागो, लेकिन वो भागते हुए एक पेड़ पर चढ़ गया.
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यह देख उसका मित्र और भी डर गया, क्योंकि वो पेड़ पर चढ़ना नहीं जानता था. इतने में वो भालू और भी नज़दीक आ गया था. जब वो बेहद क़रीब आने लगा, तो दूसरे मित्र के पास कोई चारा नहीं रहा और वो वहीं नीचे ज़मीन पर आंखें बंद करके लेट गया. पेड़ पर चढ़ा मित्र यह सारा नज़ारा देख रहा था और वो सोचने लगा कि ऐसे तो यह मर जाएगा. इतने में ही वो भालू नीचे लेटे मित्र के क़रीब आकर उसे देखने लगा, उसे सूंघा और उसके शरीर का पूरी तरह मुआयना करके आगे बढ़ गया.
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ज़मीन पर लेटे मित्र ने राहत की सांस ली और वो सोचने लगा कि अच्छा हुआ जो मैंने सांस रोक ली थी, क्योंकि भालू मुर्दों को नहीं खाते और वो भालू मुझे मरा हुआ जानकर आगे बढ़ गया.
पेड़ पर चढ़ा मित्र बहुत हैरान था. भालू के जाने के बाद वो नीचे उतरा और उसने अपने मित्र से पूछा कि आख़िर उसने क्या किया था और वो भालू उसके कान में क्या कह रहा था. मुर्दा होने का नाटक कर रहे मित्र ने कहा कि भालू ने मेरे कान में कहा कि बुरे व़क्त में ही सही दोस्तों की पहचान होती है, इसलिए कभी भी ऐसे दोस्तों के साथ मत रहो, जो बुरा समय देखकर तुम्हें अकेले छोड़कर भाग जाएं और जो व़क्त पर काम ही न आएं. दूसरे मित्र को समझते देर न लगी और फिर दोनों आगे बढ़ गए.
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सीख: सच्चा दोस्त वही होता है, जो बुरे से बुरे व़क्त में भी अपने मित्र का साथ नहीं छोड़ता और मुसीबत के समय अपने मित्र की मदद करता है.

Sunday, 6 January 2019

पंचतंत्र की कहानी- अक़्लमंद हंस (Panchtantra Story- Clever Swan)


अक़्लमंद हंस 



Panchtnatra Hindi Story
एक बहुत विशाल पेड़ था. उस पर वहुत सारे हंस रहते थे. उनमें एक बहुत स्याना हंस था, बुद्धिमान और बहुत दूरदर्शी. सब उसका आदर करके ‘ताऊ’ कहकर बुलाते थे. एक दिन उसने एक नन्ही-सी बेल को पेड़ के तने पर बहुत नीचे लिपटते पाया. ताऊ ने दूसरे हंसों को बुलाकर कहा “देखो, इस बेल को नष्ट कर दो. एक दिन यह बेल हम सबको मौत के मुंह में ले जाएगी.”
एक युवा हंस हंसते हुए बोला “ताऊ, यह छोटी-सी बेल हमें कैसे मौत के मुंह में ले जाएगी?”
स्याने हंस ने समझाया “आज यह तुम्हें छोटी-सी लग रही हैं. धीरे-धीरे यह पेड़ के सारे तने को लपेटा मारकर ऊपर तक आएगी. फिर बेल का तना मोटा होने लगेगा और पेड़ से चिपक जाएगा, तब नीचे से ऊपर तक पेड़ पर चढ़ने के लिए सीढ़ी बन जाएगी. कोई भी शिकारी सीढ़ी के सहारे चढ़कर हम तक पहुंच जाएगा और हम मारे जाएंगे.”
दूसरे हंस को यक़ीन न आया “एक छोटी-सी बेल कैसे सीढ़ी बनेगी?”
तीसरा हंस बोला “ताऊ, तुम तो एक छोटी-सी बेल को खींचकर ज़्यादा ही लंबा कर रहे हो.”
एक हंस बड़बड़ाया “यह ताऊ अपनी अक्ल का रौब डालने के लिए अंट-शंट कहानी बना रहा है.”
इस प्रकार किसी दूसरे हंस ने ताऊ की बात को गंभीरता से नहीं लिया. इतनी दूर तक देख पाने की उनमें अक्ल कहां थी
समय बीतता रहा. बेल लिपटते-लिपटते ऊपर शाखों तक पहुंच गई. बेल का तना मोटा होना शुरू हुआ और सचमुच ही पेड़ के तने पर सीढ़ी बन गई. जिस पर आसानी से चढ़ा जा सकता था. सबको ताऊ की बात की सच्चाई सामने नज़र आने लगी. पर अब कुछ नहीं किया जा सकता था क्योंकि बेल इतनी मज़बूत हो गई थी कि उसे नष्ट करना हंसों के बस की बात नहीं थी. एक दिन जब सब हंस दाना चुगने बाहर गए हुए थे तब एक बहेलिआ उधर आ निकला. पेड़ पर बनी सीढ़ी को देखते ही उसने पेड़ पर चढ़कर जाल बिछाया और चला गया. सांझ को सारे हंस लौट आए पेड़ पर उतरे तो बहेलिए के जाल में बुरी तरह फंस गए. जब वे जाल में फंस गए और फड़फड़ाने लगे, तब उन्हें ताऊ की बुद्धिमानी और
दूरदर्शिता का पता लगा. सब ताऊ की बात न मानने के लिए लज्जित थे और अपने आपको कोस रहे थे. ताऊ सबसे रुष्ट था और चुप बैठा था.
एक हंस ने हिम्मत करके कहा “ताऊ, हम मूर्ख हैं, लेकिन अब हमसे मुंह मत फेरो.”
दूसरा हंस बोला “इस संकट से निकालने की तरक़ीब तू ही हमें बता सकता है. आगे हम तेरी कोई बात नहीं टालेंगे.” सभी हंसों ने हामी भरी तब ताऊ ने उन्हें बताया “मेरी बात ध्यान से सुनो. सुबह जब बहेलिया आएगा, तब मुर्दा होने का नाटक करना. बहेलिया तुम्हें मुर्दा समझकर जाल से निकालकर ज़मीन पर रखता जाएगा. वहां भी मरे समान पड़े रहना. जैसे ही वह अन्तिम हंस को नीचे रखेगा, मैं सीटी बजाऊंगा. मेरी सीटी सुनते ही सब उड़ जाना.”
सुबह बहेलिया आया. हंसों ने वैसा ही किया, जैसा ताऊ ने समझाया था. सचमुच बहेलिया हंसों को मुर्दा समझकर ज़मीन पर पटकता गया. सीटी की आवाज़ के साथ ही सारे हंस उड गए. बहेलिया अवाक् होकर देखता रह गया.
सीख – बुद्धिमानों की सलाह गंभीरता से लेनी चाहिए.

Thursday, 20 December 2018

उड़ान : जाहिदा ने आखिर कौन सा फैसला किया

आज फिर जाहिदा को देखने आया लड़का शकील मुंह बना कर बाहर निकल गया. उस के साथ आए उस के मांबाप ने घर लौट कर लड़की पसंद नहीं आने का जवाब भिजवा दिया.


पिछले तकरीबन 5-6 सालों से यही सिलसिला चल रहा था. इस बीच 17 लड़के वालों ने जाहिदा पर ‘नापसंद’ की मुहर लगा दी थी.

लेकिन आज तो जाहिदा का सब्र जवाब दे गया. लड़के वालों के घर से बाहर निकलते ही वह भाग कर अपने कमरे में बिस्तर पर पड़ी कई घंटों तक रोती रही.

जाहिदा की बेवा मां शरीफन उस के लिए काबिल दूल्हा ढूंढ़ढूंढ़ कर थक गई थीं. जो भी लड़का आता जाहिदा का सांवला रंग देख कर उलटे पैर लौट जाता. नौबत यहां तक आ गई थी कि 10वीं जमात फेल और आटोरिकशा चलाने वाले लड़कों तक ने उस से शादी करने से इनकार कर दिया था.

साइकिल रिपेयर करने की दुकान से परिवार पालने वाले जाहिदा के अब्बा नासिर खां की मौत के बाद बेवा हुई शरीफन ने बामुश्किल अपनी 3 बेटियों को पालपोस कर बड़ा किया था. उन्होंने सिलाईकढ़ाई कर के जैसेतैसे 2 बेटियों अंजुम और जरीना की शादी भी की लेकिन सब से बड़ी बेटी जाहिदा का रिश्ता तय करने में उन्हें बहुत मुश्किलें आ रही थीं. उस का सांवला रंग हमेशा रिश्ता होने में आड़े आ जाता था.

हर बार नापसंद किए जाने के बाद जाहिदा को गहरा सदमा लगता और वह घंटों तक रोती रहती.

जाहिदा बचपन से ही पढ़नेलिखने में काफी होशियार थी. उस ने 10वीं जमात से ले कर बीएससी तक का इम्तिहान फर्स्ट डिविजन में पास किया था. उस की अम्मी शरीफन मामूली पढ़ीलिखी घरेलू औरत थीं. लेकिन वक्त की ठोकरों ने उन्हें मजबूत बना दिया था. गुजरे सालों में जाहिदा के रिश्ते में आ रही दिक्कतों की वजह से वे हमेशा फिक्र में डूबी रहती थीं.

कमरे से बेटी जाहिदा की सिसकियों की आ रही आवाज सुन कर शरीफन उस की फूटी किस्मत को कोस रही थीं.

तभी थोड़ी देर बाद अचानक कमरे से जाहिरा की आवाज सुनाई दी, ‘‘अम्मी, इधर आओ. मुझे आप से कुछ बात करनी है.’’

कमरे में झाड़ू लगाती अम्मी ने पूछा, ‘‘अरी बेटी, क्या बात है? थोड़ा रुक, मैं झाड़ू लगा कर आती हूं तेरे पास.’’

बहुत देर तक अम्मी को आते नहीं देख जाहिदा कमरे से धीरेधीरे चल कर उन के सामने आ कर खड़ी हो गई. बड़ी देर तक रोते रहने से उस की आंखें सूजी हुई थीं.

जाहिदा कहने लगी, ‘‘अम्मी, मैं ने फैसला कर लिया है कि मैं तब तक शादी नहीं करूंगी जब तक मैं कोई बड़ा मुकाम हासिल न कर लूं.

‘‘मैं समाज को कुछ बन कर दिखाना चाहती हूं ताकि दकियानूसी सोच में जकड़ी इस कौम को पता चले कि तन की खूबसूरती के सामने काबिलीयत और मन की खूबसूरती में क्या फर्क है…’’

जाहिदा बोले जा रही थी, ‘‘अम्मी, लोग किसी इनसान के सांवले रंग पर उस को बेइज्जत क्यों करते हैं? क्या गोरा रंग होने से ही लड़की में सभी खूबियां आ जाती हैं?’’

फिर आखिर में जाहिरा ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा, ‘‘सुनो अम्मी, अब आप मेरे लिए रिश्ते देखना बंद कर दें. अब मेरी जिंदगी का एक ही मकसद है कि मुझे सरकारी अफसर बन कर दिखाना है. इस की तैयारी के लिए मुझे दिल्ली पढ़ाई करने जाना पड़ेगा.’’

अपने सामने खड़ी बेटी के इस फैसले से परेशान शरीफन ने कहा, ‘‘लेकिन बेटी, तू सोच तो सही कि आखिर मैं इतनी महंगी पढ़ाई के लिए इतने सारे पैसे कहां से लाऊंगी?’’

10-15 दिन तो पैसों के जुगाड़ की उधेड़बुन में गुजर गए लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. एक दिन अचानक जयपुर सचिवालय में सैक्शन अफसर के पद पर काम कर रहे शरीफन के छोटे भाई शहजाद अली मिलने आए.

शरीफन ने भाई को जाहिदा के फैसले के बारे में बताते हुए उन से मदद करने की गुजारिश की.

भानजी के बुलंद इरादों और लगन की बातें सुन कर शहजाद ने बहन से फौरन कहा, ‘‘आप बिलकुल बेफिक्र हो जाओ. जाहिदा बेटी की पढ़ाई की जिम्मेदारी अब उस के मामा की है. मैं सब संभाल लूंगा. देखना हमारा बेटी हमारे खानदान का नाम रोशन करेगी.’’

इस बीच 5 साल गुजर गए. एक दिन दोपहर बाद शरीफन के घर के सामने लालबत्ती लगी 2 कारों के साथ पुलिस और कई सरकारी जीपें आ कर रुकीं. पहली कार से एक गोराचिट्टा नौजवान उतर कर आगे आया और उस ने झुक कर शरीफन के पैर छू कर नमस्कार किया. तभी पिछली कार से उतर कर जाहिदा ने शरीफन को गले लगा लिया.

जाहिदा बोली, ‘‘अम्मी देखो, आप की बेटी एसडीएम बन गई है. मैं ने अपना मुकाम हासिल कर लिया है. लेकिन अभी मेरी उड़ान बाकी हैं.

‘‘अम्मी, ये हैं आप के दामाद सुरेश. ये यहां के जिला समाज कल्याण अधिकारी हैं,’’ जाहिदा ने पास खड़े अपने पति सुरेश का परिचय कराते हुए कहा.

थोड़ी देर रुक कर जाहिदा ने कहा, ‘‘अम्मी, अभी हमें पास के गांव में दौरे पर जाना है. इजाजत दें. बाद में वक्त निकाल कर मिलने आएंगे.’’

शरीफन दूर जाती गाडि़यों के काफिले को बड़ी देर तक खड़ी देखती रहीं. अपनी बेटी की कामयाबी देख उन की आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़े.